सोमवार, 11 अप्रैल 2022

सलीक़े से ज़िन्दगी गुजारने का हुनर

                                                                  - डॉ. वारिस अंसारी 

                                          


 अल्लाह का बेशुमार एहसान है कि हमें उसने रसूल की उम्मत ने पैदा किया। दीन से वाबस्ता किया, दीन समझने और उस पर अमल करने का शऊर अता किया। यक़ीनन वह लोग बहुत खुशनसीब हैं जो दिन की बातों पर अमल करने के साथ-साथ दूसरों को भी दीन सिखा रहे हैं, ऐसे अज़ीम लोगों की फेहरिस्त में एक अहम नाम मौलाना शर्फ़उद्दीन ख़ान कादरी का भी है, जिन्होंने ‘खुतबात-ए-क़ादरी’ जैसी आसान किताब लिखकर उम्मते मुसलमान की जिं़दगी को ताबनाक बनाने का काम अंजाम दिया है। इस किताब में आपने अच्छी तकरीरों को बहुत ही आसान जबान में समझाने की कोशिश की है। जिसमें वालिदैन के एहसान और उनके हुकूक के साथ-साथ मौत पर भी रोशनी डाली है। जुमा के फ़ज़ाइल, रमजान की अहमियत और मीलादे मुबारक का भी पुरअसर अंदाज़ में जिक्र किया है। मैं यक़ीन के साथ कह सकता हूं कि इस किताब को पढ़ने से ईमान में ताज़गी व सलीके से जिं़दगी गुजारने का हुनर ज़रूर मिलेगा। 86 पेज की इस किताब की कीमत 40 रुपये है, जिसे कादरी बुक डिपो इलाहाबाद ने प्रकाशित किया है। 


   इस्लामी मालूमात के लिए सवाल-जवाब


  आज की इस भागमभाग ज़िंदगी में किसे फुर्सत है कि वह ज़ख़ीम किताबों का मुतआला करे। शायद इसी लिहाज़ से मौलाना शरफुद्दीन खान ने बेहद आसान ज़़बान में सवाल-जवाब की शक्ल में एक खूबसूरत इस्लामी किताब ‘इस्लामी मालूमात’ अवाम को अता किया है, जोकि मदारिस के लिए भी एक कारामद किताब है। इस किताब को पढ़ कर आप इस्लामी मालूमात के साथ-साथ अपनी जिं़दगी को और भी खूबसूरत बना सकते हैं। जे़रे नज़र किताब में  कुरआन करीम, हदीसे-मुस्तफ़ा, तफ़सीर, फकह और तारीख़ के पांच सौ नब्बे (590) सवाल और जवाब मौजूद हैं। जिनको पढ़ कर मसरूफ लोग भी बहुत कम वक़्त में ज़्यादा मालूमात हासिल कर सकते हैं। किताब की बड़ी खूबी ये है कि मुसन्निफ़ ने इसे बहुत ही सादा और आसान ज़बान में तखलीक की है। 110 पेज की इस किताब को कादरी बुक डिपो इलाहाबाद ने प्रकाशित किया है, जिसकी कीमत सिर्फ 50 रूपये है। यक़ीनन इस किताब को हर मोमिन के घर की ज़ीनत होनी चाहिए, जिससे इस्लामी मालूमात में मज़ीद इज़ाफा हो सकेगा।


’शरफ-ए-खिताबत’ मोमिन के लिए एक तोहफ़ा



 मौलाना शरफुद्दीन ख़ान की किताब ‘शरफ़-ए-खि़ताबत’ का पूरा मोतआला किया। बेहद पसंद आई, ईमान ताज़ा हो गया। दिल इस क़दर खुश हुआ कि बयान मुमकिन नहीं। दुआ है अल्लाह हज़रत मौलाना शरफुद्दीन खान की उम्र व सेहत में बरकतें अता फरमाए-आमीन। ज़ेरे नज़र किताब में मौसूफ ने शरफ़-ए-खि़ताबत में सीरत-ए-नबी, औलिया अल्लाह की जिं़दगी, वसीला, एहकाम-ए-वालिदैन, मोहर्रम शरीफ और रिज्क हलाल के मौजू पर जिस खूबसूरत अंदाज़ में बयान फरमाया है वह काबिलेकद्र है। यही अंदाजे़ बयां लोगों को इस किताब को पढ़ने के लिए अपनी तरफ माइल करता है। इस किताब की तखलीक में मौसूफ़ ने बेहद सादा ज़बानी से काम लिया है, जिससे ये किताब अवामुन्नास व तलबा को पढ़ने और समझने में काफी सहूलत होती है। 96 पेज की ये किताब कादरी बुक डिपो इलाहाबाद से प्रकाशित हुई है, जिसकी कीमत सिर्फ़ तीस रूपये है।


  इंसानी नफ़सियात की अक्कासी करते अफसांचे



 आइये सबसे पहले जान लेते हैं कि अफसांचा है क्या ? दर असल ये फारसी के लफ्ज़ अफसाना से बना है जिसका मतलब होता है किस्सा कहानी। अफसांचे को हिंदी में लघु कथा कहते हैं। जब भी अफसांचों की बात होती है तो डॉ. नज़ीर मुश्ताक का नाम सरे-फेहरिस्त आता है। इससे पहले मैंने भी आपके तमाम अफसांचे अलग-अलग रिसालों में पढ़े। ये मेरी खुशनसीबी है कि आज आपके अफसांचों की किताब ‘तिनका’ मेरे हाथ में है। अब तक मैने इस किताब के चालीस अफसांचो को बागौर पढ़ा-पढ़ कर लुत्फअंदोज हुआ। ज़ह्न सोचने पर मजबूर हुआ कि आखिर इतने कम सेंटेंस (वाक्यों) में इतनी संजीदा बातें लिखना मामूली काम नहीं, ये हुनर मंदाना काम एक बाकमाल इंसान ही कर सकता है, जो कि डॉ. नज़ीर साहब के यहां बखूबी मिलता है। मैं आपके कुछ अफसंचो के नाम लूं जैसे तावीज़, इश्क़, मजदूर, गुर्दा, बाप, दासी, भिकारी, गुनाह, करामात, क़ातिल, बदला वगैरह पढ़ने के बाद ज़ेह्न व दिल जिस तरह मुतासिर होते हैं बयान कर पाना मुमकिन नहीं। पूरी किताब में एक से बढ़ कर एक अफसांचे दिल को झकझोर देने वाला है। डॉ. नज़ीर के अफसांचों की बहुत बड़ी खूबी ये है कि वह इंसानी नफ़सियात की अक्कासी सलीके से करते हैं और अफसाने के मेयार को बरकरार रखने की सलाहियत रखते हैं। उनके यहां इंसानी फितरत का तजरुबा भी है और मुशाहेदात का शऊर भी। आपके अफसानों में बेवजह की तूल न होने के बाद भी बलंद ख़्याली है, संजीदगी है, अदब है, एहतेजाज है, समाज की जिम्मेदारियों का एहसास और जिं़दगी के उतार चढ़ाव के रंग भी। किताब में कुल 100 अफसांचे हैं। 188 पेज की इस किताब को जीएनके पब्लिकेशन (चरार शरीफ) ने प्रकाशित किया है, जिसकी कीमत 300 रुपये है। 


   फिक्र और एहसास की खूबसूरत तर्जुमानी 



राजा रानी देव परी लकड़हारा वगैरा की कहानियां हम बचपन में सुना करते थे, धीरे-धीरे लोग बदले, वक़्त बदला हमारा वातावरण बदला और इसी बदलाव ने हमारी कहानियों का भी रुख मोड़ दिया। आज हम जिस जगह हैं, वहां इंसान की फिक्र और पल-पल बदलते  एहसास से गिरे हुए हैं, और इन्हीं एसासात को डॉ. ज़ाकिर फ़ैज़ी ने खूबसूरत अंदाज़ में टालकर अफसानो की शक्ल में आवाम को दिया। ‘नया हमाम’ में 25 अफसाने और पांच अफसांचे हैं। ‘मेरा कमरा’, ‘नया हमाम’, ’स्टोरी में दम नहीं’ और किताब में मौजूद पांचो अफसांचे दिलचस्प हैं। इन कहानियों को पढ़ने के बाद अंदाजा हो गया कि डॉ. फ़ैज़ी का नाम कहानीकारों की सफ में अहम मुकाम रखता है आज रोजमर्रा के होने वाले मसाइलों को कहानी में ढालने का हुनर जानते हैं। ‘नया हमाम’ इसकी खूबसूरत मिसाल है आपने अपनी कहानी में मीडिया को भी जबरदस्त तरीके से नंगा किया है, उन्होंने बताया कि मीडिया को जिस एहतराम की नजर से देखा जाता था, आज मीडिया ने सिर्फ़ टीआरपी के चक्कर में अपना वक़ार खो दिया और दौलत कमाने की मशीन बन गई। इसी किताब में मौजूद अफसांचा ‘झटके का गोश्त’ भी इंसान को सोचने पर मजबूर कर रहा है। 204 पेज की सजिल्द पुस्तक की कीमत 250 रुपए है, इसे एजुकेशनल पब्लिशिंग हाउस से प्रकाशित किया है।


( गुफ़्तगू के अक्तूबर-दिसंबर 2021 अंक में प्रकाशित )


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