विश्वनाथ सिंह गहमरी |
शहाब खान गोड़सरावी
स्वतंत्रता आंदोलन में 1939-42 तक जेल अंग्रेज़ों में रहने वाले विश्नाथ सिंह ने तीसरी लोकसभा (1962-1967) में गाजीपुर संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। 1962 में लोकसभा में गहमरी ने संसद को बताया कि ग़ाज़ीपुर में गरीबी यह हाल है कि वहां के लोग जानवरों के गोबर से निकलने वाले अनाज से रोटी बनाते हैं और उसी से अपना पेट मिटाते है। इस अभिभाषण के बाद प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरु के आदेश पर बी.पी. पटेल की अध्यक्षता में फौरन पटेल आयोग का गठन किया गया। पटेल आयोग के जिम्मे चार जनपदों गाजीपुर, जौनपुर, आजमगढ़ और देवरिया थे। आयोग की रिपोर्ट के बाद गाजीपुर को व्यावसायिक केंद्र बनाने के लिहाज से गाजीपुर मुख्यालय के पास गंगा नदी पर रेल तथा सड़क पुल का निर्माण, फल संरक्षण, कैनिंग इंडस्ट्रीज, चर्म उद्योग, हैंडलूम उद्योग, प्लास्टिक खिलौना उद्योग की स्थापना तथा कृषि के लिए सिंचाई संसाधन बढ़ाने की संस्तुति की गई। संस्तुति के आधार पर सड़क पुल का निर्माण तो हो गया लेकिन रेल पुल (जो दिलदारनगर-ताड़ीघाट से गाजीपुर को जोड़ता) व अन्य संस्तुतियां थी जो आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी 1962 में पूर्वांचल के लोगों द्वारा बार-बार भेजे गए पत्र के बावजूद शीर्ष नेतृत्व की अनदेखी की शिकार है।
विश्वनाथ सिंह का जन्म 6 सितंबर 1901 को गाजीपुर जिले के गहमर गांव के परमा रॉय पट्टी में महाराज सिंह के घर हुआ था। गहमरी का प्राम्भिक पढ़ाई पैतृक गांव के मिडिल स्कूल से कक्षा आठ तक हुई। मैट्रिक की पढ़ाई गाजीपुर के विसेसरगंज में किया। उसके बाद इंटरमीडिएट की पढ़ाई बिहार के डुमरांव स्थित डुमरांव महाराज के कॉलेज से अपने चचेरे बड़े भाई केदारनाथ सिंह (तहसीलदार) के यहां पूरी की। 1920 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में वकालत करने के लिए दाखिला लिया। सन 1930 में असहयोग आंदोलन के नेतृत्व तत्पश्चात विश्वनाथ सिंह गहमरी का पहला विवाह बिहार के हाजीपुर स्थित महानार गांव में हुआ। पहली धर्मपत्नी से केवल एक संतान स्व. गणेश सिंह जो उत्तर प्रदेश पुलिस में सब-इंस्पेक्टर थे। पहली धर्मपत्नी के मृत्यु तत्पश्चात सन.1945 में उनका दूसरा विवाह बिहार के मोकामा में बद्दूपुर में गृहणी अभिराज देवी से हुआ। उनसे तीन लड़के और दो बेटियां थी। उनके तीन बेटों अजय सिंह (साहित्यिक समाजसेवी), विजय कुमार सिंह (अधिकारी मर्चेंट नेवी, मुम्बई), अरुण कुमार सिंह (किसान, गहमर) है। उनकी दो बेटियों मुनेस्वरी व भुनेस्वरी देवी है। बनारस से वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद वो छात्र जीवन में रहते महामना राजनेता काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रणेता पंडित मदन मोहन मालवीय के सानिध्य में स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े रहे। सन.1967 में लोकसभा चुनाव के दौरान विश्वनाथ गहमरी तीन हजार वोटों से कॉमरेड सरजू पांडेय से हार गये थे। सन.1964 में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत बाद कांग्रेस पार्टी की कमजोरी गहमरी जी के हार का कारण बना। सांसदीय चुनाव हारने के बाद वो फिर चुनावी मैदान में नहीं उतरे। उनका आखिरी वक्त बीमारी में गुजरा और आखिरकार 4 जुलाई 1976 ई. को काशी में उनका निधन हो गया।
गहमरी जी का राजनैतिक सफ़र आचार्या नरेंद्र देव से प्रभावित होकर मुख्य रूप से समाजवादी विचारधारा से शुरू हुआ था। 1942 में स्वतंत्रता संग्राम के दरम्यान कांग्रेस पार्टी के गरम दल के नेताओं से खासकर प्रभावित होकर ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक के संस्थापक सुभाष चंद्र बोश नेताजी के युवा संगठना ऑल इंडिया यूथ लिंग में शामिल हो गए। सन.1943-44 के दरम्यान नेताजी सुभाष चंद्र बोश के साथ विश्वनाथ सिंह गहमरी जी की करीबी इस कदर थी कि उनके बेटे संजय सिंह के मुताबिक सुभाष जी अपने आखिर वक़्त में एक बार रात्री विश्वनाथ जी के घर गाजीपुर में आये और तकरीबन चार घंटे मेरे घर रुके रहे। प्रधानमंत्री पंडित लाल बहादुर शास्त्री जी से गहमरी जी का काफी घनिष्ट मित्रता थी। अक्सर लाल जी उनके घर गाजीपुर को आया करते और जब गहमरी दिल्ली जाते अक्सर उनके आवास में ठहरा करते थे। दिलदारनगर के रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार एवं हिंदी कवि धीरेंद्र नाथ श्रीवास्तव बताते हैं कि गहमरी जी का लगाव दलित और मुस्लिमों से रहा। यही मुख्य वजह थी जो गाजीपुर के पहला जमीनी राजनेता व लोकप्रिय हिन्दू सांसद रहे। गहमरी जी के स्मृति में गाजीपुर स्थित विसेसरगंज से पहाड़पुर का पोखरा वाली रोड़ का नामकरण और पैतृक गांव गहमर में उनके नाम पर पार्क और प्रतिमा है। स्टेडियम और गाजीपुर से बिहार को जोड़ने वाली टीबी रोड़ का नामकरण करने हेतु वर्तमान जमानिया विधायिका सुनीता सिंह ने उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री को ज्ञापन देकर पहल की है।
(गुफ़्तगू के जुलाई-सितंबर 2021 अंक में प्रकाशित )
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