‘अकबर इलाहाबादी के सौ साल बाद’ कार्यक्रम में बोले जस्टिस अशोक कुमार
तीन पुस्तकों का विमोचन, सात लोगों को मिला ‘शान-ए-इलाहाबाद’ सम्मान
न्यायमूर्ति अशोक कुमार |
प्रयागराज। यह वर्ष जहां अकबर इलाहाबादी के निधन का 100वां साल है, वहीं उनके जन्म का भी 175वां वर्ष है। ऐसे मौके पर अकबर इलाहाबादी को याद करना बेहद ज़रूरी था। अकबर ने अपनी शायरी में अपने समय की बेहतरीन चित्रण किया है। उस समय अंग्रेज़ों का देश पर कब्जा था, पूरा देश उनकी जुल्म से परेशान था, ऐसे अकबर ने बिना डरे हुए शायरी की और अंग्रेजों का मुकाबला अपनी शायरी के जरिए किया। यह बात राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति अशोक कुमार ने 19 सितंबर 2021 को गुफ़्तगू की ओर से हिन्दुस्तानी एकेडेमी में आयोजित ‘अकबर इलाहाबादी के सौ साल बाद’ कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि कही। उन्होंने कहा कि अकबर इलाहाबादी की शायरी से इलाहाबाद की ख़ास पहचान भी हैं, हमें ऐसे शायर को ठीक से पढ़ना भी चाहिए। कार्यक्रम के दौरान सात लोगों को ‘शान-ए-इलाहाबाद सम्मान’ दिया गया। इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी की संपादित पुस्तक ‘सदी के मशहूर ग़ज़लकार’, विजय लक्ष्मी विभा की पुस्तक ‘हम हैं देश के पहरेदार’ और जया मोहन की पुस्तक ‘रूठा बसंत’ का विमोचन किया गया।
गुफ़्तगू के अध्यक्ष इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने कहा कि अबकर इलाहाबादी की शायरी की मक़बूलियत इतनी अधिक है कि उनकी शायरी को बडे़-बड़े गायकों ने अपनी आवाज़ दी है, पाकिस्तान से लेकर पूरे एशिया में उनके लिखे नग़में गाए जाते हैं। साहित्यकार रविनंदन सिंह ने कहा कि अकबर की शायरी में अनेक पर्तें हैं, अपने समय के तमाम पात्रों को अकबर ने उल्लेखित किया है। उन पर आरोप लगता है कि वे अंग्रेज़ी के खिलाफ थे, लेकिन हक़ीक़त यह है कि वो अंग्रेज़ी के खिलाफ नहीं थे, बल्कि अंग्रेजियत के खिलाफ थे। अंग्रेजियत की वजह से भारतीय संस्कृति नष्ट हो रही थी, जिस पर अकबर ने शायरी की।
डॉ. ताहिरा परवीन ने कहा कि अकबर के ज़माने में दो संस्कृतियों में टकराव थी। अंग्रेजियत और हिन्दुस्तानियत के टकराव की वजह से उन्होंने इस विषय पर काफी शायरी है। उनका खिला नज्म ‘गांधीनामा’ बहुत ही मशहूर है, जिसमें उन्होंने उस समय भारत में गांधी जी के काम को शानदार ढंग से रेखांकित किया है। डॉ. मोहम्मद शाहिद ख़ान ने कहा कि अकबर की शायरी हमारे लिए एक नज़ीर है कि वक्त के साथ कैसे शायरी की जाती है। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. असलम इलाहाबादी ने किया।
दूसरे दौर में मुशायरे का आयोजन किया गया। संचालन मनमोहन सिंह तन्हा ने किया। नरेश महरानी, प्रभाशंकर शर्मा, अर्चना जायसवाल, इश्क़ सुल्तानपुरी, डॉ. नीलिमा मिश्रा, शिवाजी यादव, विजय प्रताप सिंह, डॉ. राकेश तूफ़ान, नीना मोहन श्रीवास्तव, संजय सक्सेना, अफसर जमाल, शिवपूजन सिंह, संजय सागर, सरिता जायसवाल, डॉ. मधुबाला सिन्हा, सुजाता सिंह, नाज़ खान, हकीम रेशादुल इस्लाम, शैलेंद्र जय, विजय लक्ष्मी विभा, शिबली सना, अर्शी बस्तवी, उस्मान उतरौलवी, साजिद अली सतरंगी, बहर बनारसी, बसंत कुमार शर्मा, सागर होशियारपुरी, अंदाज़ अमरोहवी, रईस सिद्दीक़ी, राज जौनपुरी, अतिया नूर, रजिया सुल्ताना आदि ने कलाम ने पेश किया।
इन्हें मिला ‘शान-ए-इलाहाबाद सम्मान’
इफ्तेख़ार अहमद पापू (मरणोपरांत), सरदार जोगिंदर सिंह (मरणोपरांत), नीलकांत, राजेंद्र कुमार तिवारी उर्फ दुकान जी, अतुल यदुवंशी, डॉ. सविता दीक्षित, डॉ. सोनिया सिंह
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