कोरोना से जूझ रहे शकील ग़ाज़ीपुरी का इंतिकाल
प्रयागराज के कसारी-मसारी निवासी बुजुर्ग शायर शकील ग़ाज़ीपुरी का 05 मई को इंतिकाल हो गया। वे कोरोना से संक्रमित थे, उन्हें हृदय रोग भी था, जिसकी वजह से हार्ट लाइन में उनका इलाज चल रहा था। उनके परिवार में पत्नी, दो बेटे और एक बेटी है। एक सितंबर 1948 को ग़ाज़ीपुर जिले के वाजिदपुर में जन्में शकील ग़ाज़ीपुरी माध्यमिक परिषद विभाग में कार्य करते हुए सेवानिवृत्त हुए थे। उनकी दो पुस्तकें ‘लम्हे-लम्हे ख़्वाब के’ और ‘अभिलाषा’ प्रकाशित हुई हैं। आकाशवाणी और दूरदर्शन से भी उनकी ग़ज़लें समय-समय पर प्रकाशित होती रही हैं। उन्हें ‘शान-ए-इलाहाबाद सम्मान’, ‘प्रयाग गौरव सम्मान’, ‘प्रयाग पुष्पम् सम्मान’ और ‘सरदार अली जाफरी एवार्ड’ प्रदान किए गए थे।
बहुत शानदार इंसान थे सुरेश चंद्र द्विवेदी
मशहूर साहित्यकार और टीम गुफ़्तगू के सक्रिय साथी प्रो. सुरेश चंद्र द्विवेदी का 13 मई की शाम दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। उनके परिवार में पत्नी, दो पुत्रियां और एक पुत्र हैं। 29 मार्च 1952 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले जन्मे प्रो. द्विवेदी वर्ष 2011 से 2013 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के विभागाध्यक्ष थे। अंग्रेजी, हिन्दी और भोजपुरी में वे लेखन करते थे। उनकी लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं, जिनमें ‘माउथ आफ ट्रुथ, ‘प्रेसपेक्टिव आफ इजैकिला’, ‘कृष्णा श्रीनिवासरू ए पोएट आफ टोटल एक्सपीरियंस’, ‘द पोयट्री आफ राबर्ट फ्रोस्ट’ आदि प्रमुख हैं।
कोरोना से जूझ रहे दरियाबाद निवासी शायर शोएब अब्बास उर्फ़ तूफान इलाहाबादी का 19 अप्रैल को इंतिकाल हो गया। 10 अगस्त 1966 को जन्मे तूफान इलाहाबादी के परिवार में एक पुत्र, एक पु़त्री और पत्नी हैं। इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर और एलएलबी किया था। इनका एक काव्य संग्रह ‘मौजे कौसर’ प्रकाशित हुआ है।
अपनी ख़ास प्रस्तुति के लिए जाने जाते थे अशोक स्नेही
वरिष्ठ कवि अशोक कुमार स्नेही का 18 अप्रैल की सुबह निधन हो गया। आठ दिन पहले उनकी पत्नी स्नेहलता श्रीवास्तव का निधन हो गया था, तब से वे डिस्प्रेशन में थे, उनका इलाज चल रहा था। उनकी तीन पु़ित्रयां और दो पुत्र हैं, एक अन्य पुत्री का लगभग 20 वर्ष पहले निधन हो गया था। अशोक कुमार स्नेही का जन्म 11 नवंबर 1944 को फतेहपुर जिले के लालीपुर गांव में हुआ था। इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर किया था, सिंचाई विभाग में नौकरी करते हुए सेवानिवृत्त हुए थे। इनका एक काव्य संग्रह ‘इन्हीं कविताओं से’ प्रकाशित हुआ था। इनकी एक पुत्री का लगभग 20 वर्ष पहले निधन हो गया था। कवि सम्मेलनों में अपनी इसी पुत्री को समर्पित गीत ‘बह गया अब तो खाली घडे़ रह गए/जब कफन जल गया चीथड़े रह गए/लाश बेटी की गंगा बहा ले गई/हम किनारे खड़े के खड़े रह गए’ पढ़ते हुए रोने लगते थे।
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