इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी |
25 दिसंबर की सुबह दिल्ली से प्रयागराज पहुंचने के थोड़ी देर बाद ही शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी ने दुनिया को अलविदा कह दिया। एक महीना से भी अधिक तक दिल्ली में इलाज करा रहे फारूकी साहब को जैसे अपने जन्मभूमि पहुंचने की ही प्रतीक्षा थी। पूरी दुनिया में उर्दू अदब की आलोचना जगत में उनका नाम सरे-फेहरिस्त है। पाकिस्तान के ‘निशान-ए-इम्तियाज’ एवार्ड से लेकर पद्मश्री तक सफर उन्होंने तय किया। उर्दू की सेवा के लिए अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, रूस, हालैंड, न्यूजीलैंड, थाईलैंड, बेल्जियम, कनाडा, तुर्की, पश्चिमी यूरोप,सउदी अरब और कतर आदि देशों का दौरा किया था। अमेरिका, कनाडा और इंग्लैंड के कई विश्वविद्यालयों में कई बार लेक्चर दिया था। 30 सितंबर 1935 को प्रतापगढ़ में पैदा होने वाले श्री फारूकी छह बहन और सात भाइयों में पांचवें नंबर पर थे। पिता मोहम्मद खलीकुर्रहमान फारूकी डिप्टी इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल थे। प्रतापगढ़ में प्रारंभिक शिक्षा हासिल करने के बाद आप पढ़ाई के लिए इलाहाबाद आ गये। 1955 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से अंग्रेजी में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की। अपने बैच
में प्रथम स्थान हासिल किया, लेकिन लेक्चरशिप नहीं मिला। हताश नहीं हुए और सतीश चंद्र डिग्री कालेज बलिया में और इसके बाद शिब्ली नेशनल कालेज आजमगढ़ में अंग्रेजी के प्रवक्ता के रूप में अध्यापन कार्य करने लगे। 1958 में भारतीय प्रशासनिक सेवा (एलाइड) के लिए आप चयनित हो गए। भारतीय डाक सेवा में कार्य करते हुए आपने विभिन्न राज्यों में अपनी सेवाएं दीं, 1994 में रिटायर हुए थे। अलीगढ़ मुसलिम यूनिवर्सिटी ने 2002 में और मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी हैदराबाद ने 2007 में आपको डी.लिट की मानद उपाधियों से विभूषित किया। 1991 से 2004 तक यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसलवानिया, फिलाडेल्फिया (यूएसए) में मानद प्रोफेसर रहे, 1997 से 1999 तक ‘खान अब्दुल गफ्फार खां प्रोफेसर’ के पद पर कार्यरत रहे। नेशनल कौंसिल फार प्रमोशन ऑफ उर्दू (नई दिल्ली) के वाइस चेयरमैन के रूप में उर्दू की तरक्की के लिए किया गया काम आपकी महत्वपूर्ण सेवाओं में से है।
शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी |
मीर तकी मीर के व्यक्तित्व और कृतित्व पर श्री फारूकी ने चार खंडों में ‘शेर-शोर अंगेज’ नामक किताब लिखकर तहलका मचा दिया। इस किताब पर 1996 में ‘सरस्वती सम्मान’ प्रदान किया, सम्मान के रूप में मिला पांच लाख रुपये उस समय का सबसे बड़ी इनामी राशि वाला सम्मान था। 1996 में ही आपने ‘शबखून‘ नामक मासिक पत्रिका निकाली, जो दुनिया-ए-उर्दू अदब में चर्चा का विषय हुआ करती थी। इनकी किताब ‘उर्दू का इब्तिदाई जमाना’ उर्दू और हिन्दी के अलावा अंग्रेजी में भी प्रकाशित हुआ है। अंग्रेजी में इसे आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ने प्रकाशित किया है। शायरी में चार किताबें छप चुकी हैं, जिनके नाम ‘गंजे-सोख्ता’, सब्ज अंदर सब्ज’,‘चार सिम्त का दरिया’ और ‘आसमां मेहराब’ हैं। गद्य की किताबों में ‘लफ्जी मआनी’,‘फ़ारूक़ी के तब्सरे’,‘शेर गैर शेर और नस्र’,‘अफसाने की हिमायत में’, ‘तफहीमे-ग़ालिब’,‘दास्ताने अमीर हमजा का अध्ययन’ और ‘तन्कीदे अफकार’ आदि हैं। अंग्रेजी किताबों में ‘द सीक्रेट मिरर’,‘अर्ली उर्दू लिटेरेरी कल्चर एंड हिस्टी’,‘हाउ टु रीड इकबाल‘ हिन्दी में ‘अकबर इलाहाबादी पर एक और नजर’ वगैरह विशेष उल्लेखनीय हैं। हाल ही में अंग्रेजी में प्रकाशित उनका नाविल ‘कई चांद थे सरे आसमां’ का हिन्दी अनुदित संस्करण काफी चर्चा में रहा है। ‘उर्दू की नई किताब’ और ‘इंतिख़ाबे-नस्रे’ समेत कई किताबों का संपादन भी किया। श्री फ़ारूक़ी ने कुछ किताबों का अंग्रेजी से उर्दू अनुवाद भी किया है, जिनमें अरस्तू की पुस्तक ‘पाएटिक्स’ का उर्दू अनुवाद ‘शेरियत’ है। ‘शेर शोर अंगेज’ नामक पुस्तक चार खंडों वाली किताब में मीर तक़ी मीर के एक-एक शेर की व्याख्या और उसके विशलेषण में उसी विषय के कवियों के अश्आर की मिसालें दे-देकर ऐसा लिखा है की उर्दू अदब में तहलका सा मच गया, बड़े-बड़े आलिम चैंक पड़े। उनकी पुस्तक ‘एसेज इन उर्दू क्रिटिसिज्म एंड थ्योरी’ के अलावा गालिब और मुसहफी की जिदगी पर आधारित कहानियां हैं। उर्दू में ऐसे शब्दों और मुहावरों को शामिल करते हुए एक शब्दकोश की पुस्तक तैयार किया, जो आम शब्दकोश में मिलना लगभग असंभव है।
( गुफ़्तगू के जनवरी-मार्च 2021 अंक में प्रकाशित)
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