काॅमरेड ज़ियाउल हक़ |
- इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी
22 नवंबर की दोपहर 100 वर्ष की उम्र में ज़िया भाई ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है। 28 सितंबर 1920 को इलाहाबाद के दोंदीपुरी मुहल्ले में जन्मे श्री ज़ियाउल हक़ के पिता का नाम सैयद जीमल हक़ है। तीन भाई-तीन बहनों में आप सबसे बड़े थे। प्राइमरी तक की शिक्षा घर में ही हासिल की। गर्वमेंट कालेज में कक्षा पांच से इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई पूरी की। 1940 में स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण करते ही कम्युनिष्ट पार्टी से जुड़ गए थे। इन्हें पार्टी के अंडरग्राउंड काम के लिए नामित किया। इस काम को अंज़ाम देने के लिए इन्होंने बिना किसी को बताये ही अपना घर छोड़ दिया। तत्कालीन पोलित ब्यूरो सदस्य आरडी भारद्वाज के साथ पार्टी का काम करने के लिए इन्हें लगाया, घर छोड़ते ही इनके परिवार में कोहराम मच गया। इनके वालिद ने अपने सू़त्रों से बहुत खोज की इनकी, घर के बड़े लड़के के ही अचनाक लापता हो जाने से परिवार काफी परेशान हुआ। आप श्री भारद्वाज के लिए आने वाले डाक और उनके निदेर्शों को उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में पहुंचाने का काम करते रहे। इनके पिता ने इनके रहने के ठिकाने का पता लगा लिया और कम्युनिष्ट पार्टी के उस समय के बड़े नेता अजय घोष पर दबाव बनाया कि उनके लड़के को घर के लिए रवाना कर दिया जाए। छह महीने अंडरग्राउंड रहने के बाद वे घर लौट आए। लेकिन अंडरग्राउंड रहने के कारण इनका नाम सीआईडी में आ गया, जिसकी वजह से इनका घर में रहना मुमकिन नहीं था। इसी कारण फ़ैज़ाबाद में रहने वाले अपने मामू के यहां चले गए, फिर कुछ दिनों बाद इलाहाबाद लौटे और फिर एलएलबी भी किया।
सन 1941-42 में देश में राजीनतिक बदलाव आया। कम्युनिष्ट पार्टी को कानूनी मान्यता भी मिल गई। 1942 में कम्युनिष्ट पार्टी का जीरो रोड पर कार्यालय खुला, कार्यालय खुलते ही एक बार फिर इन्होंने घर छोड़ दिया और पार्टी कार्यालय में ही रहने लगे। फिर पार्टी का कार्यालय जानसेनगंज में खुला, जो आज भी कायम है, यहीं आप रहने लगे, इस दौरान इन्हें पार्टी की तरफ से 15 रुपए प्रति माह वेतन मिलने लगा। 1947 तक इसी दफ्तर में काम करते रहे। 1948 में आप तीन महीने नैनी जेल में रहे, कांग्रेस ने कम्युनिष्ट पार्टी पर यह इल्जाम लगाते हुए इनके साथ अन्य लोगों को जेल भिजवा दिया, ये लोग कांग्रेस की हुकुमत नहीं बनने दे रहे हैं। विभिन्न मामलों केा मिलाकर श्री हक़ कुल तीन बार नैनी जेल गए। इसी दौरान बीमारी के चलते इनके छोटे भाई का इंतिकाल हो गया। इनके पिता पर बहुत दबाव पड़ने लगा कि वे परिवार के साथ पाकिस्तान चले जाएं, पिता के बहुत से दोस्त अपने परिवार के साथ पाकिस्तान चले गए थे। ऐसे में पिता परिवार के साथ पाकिस्तान चले गए, लेकिन श्री ज़ियाउल हक़ यहीं रहे। आज भी आपकी तीन बहनें और एक भाई अपने परिवार के साथ पाकिस्तान में रहते हैं।
1952 में आम चुनाव हुआ, कांग्रेस की सरकार बनी। कम्युनिष्ट पार्टी दूसरे नंबर पर रही। पार्टी का उर्दू अख़बार ‘हयात’ शुरू हुआ तो आपको दिल्ली भेज दिया गया। फिर अंग्रेज़ी साप्ताहिक ‘न्यू ऐज़’ के लिए आपको विशेष संवाददाता बनाया गया। इस दौरान पंडित जवाहर लाल नेहरू का प्रेस कांफ्रेंस भी कवर करते रहे। 1955 में वल्र्ड यूथ फेस्टेविल का आयोजन ‘पौलैंड’ में किया गया, आप वहां कवरेज करने गए। वहीं से पूरा इंडियन डेलीगेशन मास्को गया। उस समय वियतनाम की लड़ाई जारी थी। कम्युनिष्ट पार्टी के सचिव अजय घोष उन दिनों मास्को में थे, उन्होंने आपको वियतनाम भेज दिया। तीन महीने वियतनाम में रहे। फिर सोवियत संघ और जर्मनी में भी ख़बरें कवरेज करने गए। 1960 में सोवियत संघ और अमेरिका के राष्टृपति की बैठक पेरिस में होनी थी, इसको कवर करने के लिए आपको भेजा गया। बैठक से ठीक पहले सोवियत संघ के राष्ट्रपति ने अमेरिका पर आरोप लगाया कि आपने जासूसी करने के लिए मेरे देश में प्लेन भेजा था, जिसे हमने मार गिराया है, इसके लिए आपको माफी मांगनी पडे़गी। अमेरिकी राष्ट्रपति ने माफी मांगने से इनकार कर दिया, जिसके वजह से बैठक नहीं हुई। फिर रूस में लेनिन की सौवां सालगिरह पर वहां गए। रसियन ऐम्बेसी ने भारत के तीन सीनियर पत्रकारों को इस मौके पर बुलाया था। इन लोगों में निखिल चतुर्वेदी और ए. राघवन के साथ जियाउल हक़ भी थे। 1978 में अंतिम बार रूस गये।1963-64 में क्यूबा में आजादी के पांचवीं वर्षगांठ पर भी आपको बुलाया गया। फिर कम्युनिष्ट पार्टी में फूट गई। आप भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी में रहे।
जनवरी 1965 में आपने विवाह कर लिया और इसके कुछ ही दिनों फिर से इलाहाबाद लौट आए। इस दौरान बीच-बीच में अपने भाई-बहनों और उनके परिवार से मिलने पाकिस्तान भी जाते रहे। अंतिम बार 2005 में भाई के बेटे की शादी में पाकिस्तान गए थे।
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