-इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी
इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी |
‘बन्द मुट्ठियों में क़ैद धूप’ एक लधुकथा संग्रह है। विजय लक्ष्मी भट्ट शर्मा ‘विजया’ के इस लधुकथा संग्रह में 37 लधुकथाएं संग्रहित हैं। इस विधा में आमतौर पर समाज में घटने वाली छोटी-छोटी घटनाओं को मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया जाता है, विडंबनाओं और प्रताड़ना के साथ आपसी सौहाद्र और प्रेम-प्रसंग के वाकए को चुटेले अंदाज़ प्रस्तुत करके पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत करना ही लधुकथा कहलाता है। बड़ी कहानियों की अपेक्षा लधुकथा पढ़ना लोग अधिक पसंद करते हैं। विजय लक्ष्मी जी ने भी इसी तरह की लधुकथाओं का सृजन मार्मिक ढंग से सजगता के साथ किया है। ‘परिचय’ नामक लधुकथा में लेखिका स्त्री मन के दुख-दर्द का बयान करती है, बताती है कि स्त्रियों को किन हालात का सामना करना पड़ता है। इस लधुकथा में कहती है-‘हमने कभी मां के उस दुःख को समझने की कोशिश नहीं की जो उनके अंदर जमा होकर नासूर बन रहा था, शायद ये ही ममता का असली रूप है कि अपने दुःख को पीकर अपनी संतान की खुशी के लिए जीना। आज जब मैं भी मां हूं दो बच्चों की तो इस बात का मतलब समझ पा रही हूं, उनका दुःख महसूस कर पा रही हूं। आज उस बात का भी जवाब मिल रहा है कि क्यों मां चुपचाप पिताजी की हर ज़्यादती सह लेती थी। स्त्री को भगवान ने बहुत ही सहनशील बनाया है और ये ही वजह है रही होगी कि ईश्वर ने औरत को ही मां बनने का सौभाग्य दिया।’ इसी तरह लगभग हर कहानी में परिवार और समाज में स्त्री के काम-काज, दुखःदर्द और उसके परिदृश्य का वर्णन विभिन्न छोटी-छोटी घटनाओं के माध्यम से किया गया है। कुल मिलाकर स्त्री के परिदृश्य का एक बेहतरीन संग्रह यह पुस्तक। 128 पेज के इस सजिल्द पुस्तक की कीमत 300 रुपये है, जिसे केबीएस प्रकाशन ने प्रकाशित किया है।
नीमच, मध्य प्रदेश के रहने वाले ओम प्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ एक सक्रिय कलमकार हैं। अब तक सात किताबें प्रकाशित हो चुकी है। हाल में बाल कहानी संग्रह ‘चाबी वाला भूत’ प्रकाशित हुआ है। कभी तमाम बाल पत्रिकाएं निकलती थीं, अभिभावक अपने बच्चों को ये पत्रिकाएं खरीदकर पढ़ने के लिए देते थे, बच्चे भी खूब आनंद लेकर पढ़ते थे। इनमें प्रकाशित कहानियां काफी शिक्षाप्रद और नैतिक शिक्षा के प्रति सजग करने वाली होती थीं। अब वह माहौल हमारे समाज का नहीं रहा। बाल पत्रिकाएं बच्चे कम ही पढ़ते हैं। इसके बावजूद बाल कहानियों का अपना एक स्थान है, जो बच्चों में नैतिक शिक्षा का विकास करते हैं। इस पुस्तक में विभिन्न विषयों को रेखांकित करती हुई 17 बाल कहानियां संग्रहित की गई हैं। ‘राबिया का जूता’ नामक कहानी में बच्ची राबिया का नए जूता लेने की जिद का वर्णन बेहद मार्मिक ढंग से खूबसूरती के साथ किया गया। जिसमें राबिया नए जूते के बिना स्कूल न जाने की जिद करती है, तब उसके पिता उसकी जिद पूरी कर देते हैं, मगर सुबह पिताजी बिस्तर पर लेटे रहते हैं, उन्हें बहुत तेज बुखार होता, जिसकी वजह से आफिस नहीं जा पाते, दवा के लिए रखे पैसे से ही उसके पिता जूता ले आए थे और आज दवा के लिए पैसा नहीं था। इसकी जानकारी होते ही राबिया अपनी जूते की ख़्वाहिश को त्याग देती है और जूते को वापस करके अपनी पिता के लिए दवा ले आती है। कहानी में बच्ची की मार्मिकता और समझदारी का वर्णन शानदार ढंग से किया गया है। इसी तरह अन्य कहानियों में विभिन्न विषयों को बच्चों की चंचलता और समझादारी का वर्णन रोचक ढंग से किया गया है। 74 पेज के इस पेपर बैक संस्करण की कीमत 150 रुपये है, जिसे दीक्षा प्रकाशन ने प्रकाशित किया है।
सेना सेवानिवृत्त हुए दीपक दीक्षित आजकल लेखन के प्रति काफी सक्रिय और संवदेनशील हैं। कथा लेखन के प्रति अधिक रुचि है। हाल ही में इनका कथा संग्रह ‘दृष्टिकोण’ प्रकाशित हुआ है। 25 कहानियों के इस संग्रह में तमाम रोचक और ज्ञानवर्धक विषय वस्तु का चयन लेखक ने बड़ी होशियारी के साथ की है। लेखक खुद अपने बारे में लिखता है-‘कुछ कहानियां बहुत छोटी हैं पर शायद लधुकथ के मानकों पर खरी न बैठें। वैसे भी मैं अपनी बात को सीधे सपाट न कहते हुए अपने लहजे में उसका वर्णन करना ज्यादा पसंद करता हूं और इसमें मुझे आनंद आता है। इस संग्रह की अधिकतर कहानियां मैंने पिछले दो-तीन सालों लिखी हैं पर कुछ पुरानी कहानियां भी हैं।’ ‘सितारा’ नामक कहानी में नायिका के ख़्यालात यूं बयान किया गया है-‘क्या कुछ नहीं पा लिया उसने जीवन में- यश, धन। अब जो वो कहती थी वही हाजिर हो जाता था पलक झपकते ही, पर सारी चाहतें न जाने कहां गुम होती जा रही थीं।..... अचानक उसका ध्यान घड़ी पर गया और सारे ख़्यालों को एक तरफ झटक कर वो चल दी रात की पार्टी के लिए तैयार होने।’ इसी तरह वास्तविक जीवन के विभिन्न पहलुओं का वर्णन अलग-अलग कहानियों में किया गया है। 100 पेज के इस पेपरबैक संस्करण को लेखक ने खुद प्रकाशित किया है।
देवास, मध्य प्रदेश के रहने वाले अश्विन राम वर्तमान समय में प्रयागराज पाॅवर जनरेशन के.लि. बारा में कार्यरत हैं। कविता सृजन बहुत ही सजगता से कर रहे हैं। हाल ही में ‘एक टुकड़ा धूप’ नाम से इनका कविता संग्रह आया है। छोटी-छोटी 78 कविताओं का यह संग्रह बेहद पठनीय और रोचक भी है। छोटी-छोटी घटनाओं और उनसे उपजे एहसास को कविता के रूप में मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। नई कविता यह स्वरूप बेहद ख़ास सा प्रतीत होता है, वर्ना इस विधा में लोग चार-चार पांच-पांच पेज की बोझिल कविताएं लोग लिख रहे है, जिसे देखते ही मन उचट जाता और पढ़ने का तो बिल्कुल ही मन नहीं करता। लेकिन अश्विन राम ने ऐसा नहीं किया है, छोटी-छोटी कविताओं के माध्यम से मार्मिक, रोचक और पढ़नीय बात कहने का भरपूर प्रयास किया है। पुस्तक की एक कविता यूं है- ‘मैंने/तुमसे पूछा/प्रेम करती हो?/और तुमने कहा ‘हां’/निराश हुआ था उस दिन/मैंने इतना आसान/ सवाल तो नहीं किया था/कि तुम कह दो/तपाक से ‘हां’।’ एक कविता में अपनी अभिव्यक्ति यूं व्यक्त करते हैं-‘तुम्हारे/दरवाज़े पर/मेरी दस्तक देना/पसंद हो या न हो/तब भी दस्तक देता रहूंगा/हो सकता है/मेरी फ़कीरी/तुम्हारे बादशाह होने का/निमंत्रण बन जाए।’ इसी तरह की रोचक कविताएं पूरी किताब में जगह-जगह भरी पड़ी हैं, जिन्हें एक बार अवश्य पढ़ा जाना चाहिए। पुस्तक के लिए कवि बधाई का पात्र है। 100 पेज के इस पेपर बैक संस्करण को रश्मि प्रकाशन ने प्रकाशित किया है, जिसकी कीमत 199 रुपये है।
( गुफ़्तगू के जनवरी-मार्च 2020 अंक में प्रकाशित )
1 टिप्पणियाँ:
अच्छी समीक्षाएँ।
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