- शहाब खान गोड़सरावी
15 जुलाई 1912 को जन्मे ब्रिगेडियर उस्मान बहादुर ब्रिटिश भारत के सैन्य उच्च अधिकारी थे। इनके पूर्वज अफगानिस्तान के सिराज के रहने वाले थे। ब्रिगेडियर उस्मान के परिवार से कांग्रेस के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. मुख्तार अंसारी के घर से काफी गहरा संबंध था। क्योंकि ब्रिगेडियर उस्मान के पिता पुलिस ऑफिसर मोहम्मद फारूख खुनमबीर की शादी ग़ाज़ीपुर के युसुफपुर अन्सारी परिवार में जन्मी अब्दुल कबीर अंसारी की बेटी जमीलुन बीबी से हुई थी। जिससे ब्रिगेडियर उस्मान की परिवार का ग़ाज़ीपुर से काफी गहरा लगाव रहा। ब्रिगेडियर उस्मान की तीन बड़ी बहने एवं दो भाई थे। उस्मान की प्रारंभिक शिक्षा बनारस स्थित हरीश चन्द्रा हाईस्कूल से हुई। आजाद भारत के पराक्रमी सिपहसलारों की फेहरिस्त में सबसे पहला नाम आता है ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान का। इन्हें पाकिस्तान के पितामह कहे जाने वाले मोहम्मद अली जिन्ना और राजनेता लियाकत अली ने मुस्लिम होने का वास्ता दे कर पाक फौज में जनरल बनाने का न्यौता दिया था, लेकिन मोहम्मद उस्मान ने ठुकरा दिया। नौशेरा का शेर, नाम से पुकारे जाने वाले ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान, पहले अघोषित भारत-पाक युद्ध (1947-48) में शहीद होने वाले पहले उच्च सैन्य अधिकारी भी थे।
ब्रिगेडियर उस्मान महज 12 साल की उम्र में अपने एक मित्र को बचाने के लिए कुएं में कूद पड़े थे और उसे बचा भी लिया था। थोड़ा बड़े होने पर सेना में जाने का मन बनाया और उन्हें सन 1932 में ब्रिटेन की रायल मिलिटरी एकेडमी, सैंडहस्ट में चुन लिए गए। जिनका प्रशिक्षण ब्रिटेन में हुआ। द्वितीय विश्व युद्ध में अपने नेतृत्व के लिए प्रशंसा पाने वाले ब्रिगेडियर उस्मान को 10वीं बलूच रेजीमेंट में 19 मार्च 1935 को पोस्टिंग मिली। इधर भारत-पाक का बंटवारा हो रहा था। बंटवारे के बाद बलूच रेजीमेंट पाकिस्तानी सेना के हिस्से चली गयी। तब उस्मान डोगरा रेजीमेंट में आ गये। बंटवारे के बाद (1947-48) दोनों देशों में अघोषित लड़ाई चल रही थी। पाकिस्तान भारत में घुसपैठ करा रहा था। कश्मीर घाटी और जम्मू तक अशांत था। उस्मान पैराशूट ब्रिगेड की कमान संभाल रहे थे। उनकी झनगड़ में तैनाती थी। झनगड़ का पाक के लिए सामरिक महत्व था। 25 दिसंबर, 1947 को पाकिस्तानी सेना ने झनगड़ को कब्जे में ले लिया। उस समय लेफ्टिनेंट जनरल के. एम. करिअप्पा वेस्टर्न आर्मी कमांडर का नेतृत्व कर रहे थे। उन्होंने जम्मू को अपनी कमान का हेडक्वार्टर बनाया। लक्ष्य था - झनगड़ और पुंछ पर कब्जा करना और मार्च, 1948 में ब्रिगेडियर उस्मान की वीरता, नेतृत्व व पराक्रम से झनगड़ भारत के कब्जे में आ गया। तब पाक की सेना के हजारों जवान मारे गए थे और इतने ही घायल हुए थे, जबकि भारत के 102 घायल हुए थे और 36 जवान शहीद हुए थे। पाकिस्तानी सेना झनगड़ के छिन जाने और अपने सैनिकों के मारे जाने से परेशान थी। उसने घोषणा कर दी कि जो भी उस्मान का सिर कलम कर लायेगा, उसे 50 हजार रुपये दिए जाएंगे।
पाकिस्तानी सेना के आंखों का किरकिरी बने ब्रिगेडियर उस्मान 3 जुलाई, 1948 की शाम तकरीबन पौने छ बजे होंगे उस्मान जैसे ही अपने टेंट से बाहर निकले। तभी उन पर सुरंगी ग्रेनाईट के साथ 25 पाउंड का गोला अचानक पाक सेना ने घाट लगाकर दाग दिया। उनके अंतिम शब्द थे- ‘हम तो जा रहे हैं, पर जमीन के एक भी टुकड़े पर दुश्मन का कब्जा न होने पाये।’ पहले अघोषित भारत-पाक युद्ध (1947-48) में शहीद होने वाले वे पहले उच्च सैन्य अधिकारी थे। राजकीय सम्मान के साथ उन्हें जामिया मिलिया इसलामिया कब्रगाह, नयी दिल्ली में दफनाया गया। अंतिम यात्रा में गवर्नर जनरल लार्ड माउंटबेटन, प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, केंद्रीय मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद और शेख अब्दुल्ला भी थे। मरणोपरांत उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। उस्मान अलग ही मिट्टी के बने थे। वो सेना में रहते हुए भी एल्कोहलीक पेय से हमेशा दूर रहे। इसके अलावा वह अपने वेतन का पूरा हिस्सा नौशेरा के गरीब बच्चों की पढ़ाई एवं जरूरतमंदों पर अक्सर खर्च किया करते थे।
(गुफ़्तगू के अक्तूबर-दिसंबर 2019 अंक में प्रकाशित)
ब्रिगेडियर उस्मान बहादुर |
ब्रिगेडियर उस्मान महज 12 साल की उम्र में अपने एक मित्र को बचाने के लिए कुएं में कूद पड़े थे और उसे बचा भी लिया था। थोड़ा बड़े होने पर सेना में जाने का मन बनाया और उन्हें सन 1932 में ब्रिटेन की रायल मिलिटरी एकेडमी, सैंडहस्ट में चुन लिए गए। जिनका प्रशिक्षण ब्रिटेन में हुआ। द्वितीय विश्व युद्ध में अपने नेतृत्व के लिए प्रशंसा पाने वाले ब्रिगेडियर उस्मान को 10वीं बलूच रेजीमेंट में 19 मार्च 1935 को पोस्टिंग मिली। इधर भारत-पाक का बंटवारा हो रहा था। बंटवारे के बाद बलूच रेजीमेंट पाकिस्तानी सेना के हिस्से चली गयी। तब उस्मान डोगरा रेजीमेंट में आ गये। बंटवारे के बाद (1947-48) दोनों देशों में अघोषित लड़ाई चल रही थी। पाकिस्तान भारत में घुसपैठ करा रहा था। कश्मीर घाटी और जम्मू तक अशांत था। उस्मान पैराशूट ब्रिगेड की कमान संभाल रहे थे। उनकी झनगड़ में तैनाती थी। झनगड़ का पाक के लिए सामरिक महत्व था। 25 दिसंबर, 1947 को पाकिस्तानी सेना ने झनगड़ को कब्जे में ले लिया। उस समय लेफ्टिनेंट जनरल के. एम. करिअप्पा वेस्टर्न आर्मी कमांडर का नेतृत्व कर रहे थे। उन्होंने जम्मू को अपनी कमान का हेडक्वार्टर बनाया। लक्ष्य था - झनगड़ और पुंछ पर कब्जा करना और मार्च, 1948 में ब्रिगेडियर उस्मान की वीरता, नेतृत्व व पराक्रम से झनगड़ भारत के कब्जे में आ गया। तब पाक की सेना के हजारों जवान मारे गए थे और इतने ही घायल हुए थे, जबकि भारत के 102 घायल हुए थे और 36 जवान शहीद हुए थे। पाकिस्तानी सेना झनगड़ के छिन जाने और अपने सैनिकों के मारे जाने से परेशान थी। उसने घोषणा कर दी कि जो भी उस्मान का सिर कलम कर लायेगा, उसे 50 हजार रुपये दिए जाएंगे।
पाकिस्तानी सेना के आंखों का किरकिरी बने ब्रिगेडियर उस्मान 3 जुलाई, 1948 की शाम तकरीबन पौने छ बजे होंगे उस्मान जैसे ही अपने टेंट से बाहर निकले। तभी उन पर सुरंगी ग्रेनाईट के साथ 25 पाउंड का गोला अचानक पाक सेना ने घाट लगाकर दाग दिया। उनके अंतिम शब्द थे- ‘हम तो जा रहे हैं, पर जमीन के एक भी टुकड़े पर दुश्मन का कब्जा न होने पाये।’ पहले अघोषित भारत-पाक युद्ध (1947-48) में शहीद होने वाले वे पहले उच्च सैन्य अधिकारी थे। राजकीय सम्मान के साथ उन्हें जामिया मिलिया इसलामिया कब्रगाह, नयी दिल्ली में दफनाया गया। अंतिम यात्रा में गवर्नर जनरल लार्ड माउंटबेटन, प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, केंद्रीय मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद और शेख अब्दुल्ला भी थे। मरणोपरांत उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। उस्मान अलग ही मिट्टी के बने थे। वो सेना में रहते हुए भी एल्कोहलीक पेय से हमेशा दूर रहे। इसके अलावा वह अपने वेतन का पूरा हिस्सा नौशेरा के गरीब बच्चों की पढ़ाई एवं जरूरतमंदों पर अक्सर खर्च किया करते थे।
(गुफ़्तगू के अक्तूबर-दिसंबर 2019 अंक में प्रकाशित)
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