- मुहम्मद शहाबुद्दीन खान
राही मासूम रजा का जन्म 1 सितंबर 1925 को ग़ाज़ीपुर जिले के गंगौली गांव में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गंगा किनारे गाजीपुर शहर में हुई थी। बचपन में पैर में पोलियो हो जाने के कारण उनकी पढ़ाई कुछ सालों के लिए छूट गयी, लेकिन इंटरमीडिएट के बाद वह अलीगढ़ आ गये और यहीं से ‘एमए’ करने के बाद उर्दू में ‘तिलिस्म-ए-होशरुबा’ पर पीएचडी किया। इसके बाद वे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग में प्राध्यापक हो गये और अलीगढ़ के ही एक मुहल्ले बदरबाग में रहने लगे। अलीगढ़ में रहते हुए ही वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के वे सदस्य भी हो गए थे। अपने व्यक्तित्व के इस निर्माण-काल में वे बड़े ही उत्साह से साम्यवादी सिद्धांतों से समाज के पिछड़ेपन को दूर करना चाहते थे और इसके लिए वे सक्रिय प्रयत्नशील रहे। 1968 से राही मुंबई में रहने लगे थे। रोजी रोटी का मसला था और लिखने का शौक भी। फिल्मों में लिख कर पैसा तो कमाया लेकिन सुकून तो लिखने में मिलता था। अपनी साहित्यिक गतिविधियों के साथ-साथ फिल्मों के लिए भी स्क्रिप्ट लिखते थे। राही स्पष्टतावादी व्यक्ति थे और अपने धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रीय दृष्टिकोण के कारण अत्यंत लोकप्रिय हो गए थे। यहीं रहते हुए राही ने ’आधा गांव’, ‘दिल एक सादा कागज’, ‘ओस की बूंद’, हिम्मत जौनपुरी उपन्यास एवं 1965 ई० के भारत-पाक युद्ध में शहीद हुए परमवीर चक्र विजेता वीर अब्दुल हमीद की जीवनी और छोटे आदमी की बड़ी कहानी लिखी। उनकी ये सभी कृतियां हिंदी में थीं। इससे पहले वह उर्दू में एक महाकाव्य 1857 ई. जो बाद में हिन्दी में क्रांति कथा नाम से प्रकाशित हुआ तथा छोटी-बड़ी उर्दू नज़्में व ग़ज़लें भी लिखे चुके थे। आधा गांव, नीम का पेड़, कटरा बी आर्जू, टोपी शुक्ला, ओस की बूंद और सीन 75 उनके प्रसिद्ध उपन्यास हैं।
उन्होंने तकरीबन 300 फिल्में और 100 के आस पास सीरियल के स्क्रिप्ट लिखे। निम्नलिखित लेखन के विभिन्न शैलियों में उनके कार्यों की एक सूची है। उपन्यास आधा गाव (विभाजित गांव) दिल एक सादा कागज, टोपी शुक्ला, ओस की बूंद कटरा बीआरजू दृश्य संख्या 75 कविता मौज-ए-भूत मौज-ए-साबा (उर्दू) अजनबी शहार अजनबी रास्त (उर्दू) मेन एक वन फालीवाला (हिंदी) शीशे के मकान वाले (हिंदी) आत्मकथा- चट्टानी आप की बडी कहानी (एक छोटा आदमी की बड़ी कहानी) मूवी और टीवी स्क्रिप्ट में नीम का पेड, टीवी सीरीयल में किसी से ना कहने, तुलसी तेरे आंगन की, डिस्को डांसर, महाभारत, मूवी संवाद ऐना, (1993) पैरापाद, (1992) लम्हे, (1991) नाचे माउरी, (1986) करज, (1980) जुदाई (1980), हम पान (1980) गोल मौल (1979), अलैप (1977), बात बन जाय (1986), अवम (1987), मूवी गीत- अलैप (1977) आदि है।
गाजीपुर के गली कुचों रीती रिवाजों से परे, गंगौली का वीर सुपुत्र, गाजीपुर जिले की आन बान शान फिल्मों-धरवाईकों के लिए स्क्रिप्ट लिखने वाले राही मासूम रजा ने अपनी प्रचलित किताब आधा गांव पेज न०12 पर लिखते हैं- ‘नाम का ब्यक्तिव से कोई अटूट रिश्ता नही होता, क्योंकि ऐसा होता तो गाजीपुर बनकर गाजीपुरी को भी बदल जाना चाहिए था। गाजीपुर के लोग जिन शहरों में रहते है अपने अटूट छाप छोड़ देते है।
राही मासूम रजा ने करीब आधा दर्जन किताब लिखे जिन पर आधा गांव की लोकप्रियता भारी पड़ी और इसी उपन्यास को उनके सिग्नेचर उपन्यास के तौर पर देखा जाता है। राही के करीबी साथियों में एक पंजाबी साथी जो इंडो-पाक बटवारे में इंडिया चले आए थे, उस साथी का नाम राम लाल था जो एक बेहतरीन अफसाना नेगार थे और नॉर्थरन रेलवे में लखनऊ स्टेशन पर कार्यरत थे जिन्हें राही मासूम रजा अक्सर मिलने लखनऊ को आया करते थे। यदि सोचकर देखा जाए तो ताज्जुब होता है कि ये सारे आयाम और ये सारे काम किसी एक शख्स के है। उस करिश्माई शख्स के जिसकी बादशाही कलम ने उसे आज भी समूचे हिंदुस्तान में जीवित रखा है। जिसने जिस पर हाथ रखा वो कामयाबी की भाषा में सोना हो गई। राही मासूम रजा 15 मार्च 1992 को 64 साल की उम्र में अपना जादुई हुनर समेटे दुनिया से चले गए। आज हमारे बीच रही मासूम रजा भले न हों मगर उनकी कृतियां समाज को दिशा दे रही हैं। साहित्य के बुलन्द मकाम पर रही मासूम रजा उस रौशनी की तरह नुमाया हैं जो लोगों की रहबरी करता है।
(गुफ्तगू के अक्तूबर-दिसंबर 2018 अंक में प्रकाशित)
RAHI MASOOM RAZA |
उन्होंने तकरीबन 300 फिल्में और 100 के आस पास सीरियल के स्क्रिप्ट लिखे। निम्नलिखित लेखन के विभिन्न शैलियों में उनके कार्यों की एक सूची है। उपन्यास आधा गाव (विभाजित गांव) दिल एक सादा कागज, टोपी शुक्ला, ओस की बूंद कटरा बीआरजू दृश्य संख्या 75 कविता मौज-ए-भूत मौज-ए-साबा (उर्दू) अजनबी शहार अजनबी रास्त (उर्दू) मेन एक वन फालीवाला (हिंदी) शीशे के मकान वाले (हिंदी) आत्मकथा- चट्टानी आप की बडी कहानी (एक छोटा आदमी की बड़ी कहानी) मूवी और टीवी स्क्रिप्ट में नीम का पेड, टीवी सीरीयल में किसी से ना कहने, तुलसी तेरे आंगन की, डिस्को डांसर, महाभारत, मूवी संवाद ऐना, (1993) पैरापाद, (1992) लम्हे, (1991) नाचे माउरी, (1986) करज, (1980) जुदाई (1980), हम पान (1980) गोल मौल (1979), अलैप (1977), बात बन जाय (1986), अवम (1987), मूवी गीत- अलैप (1977) आदि है।
गाजीपुर के गली कुचों रीती रिवाजों से परे, गंगौली का वीर सुपुत्र, गाजीपुर जिले की आन बान शान फिल्मों-धरवाईकों के लिए स्क्रिप्ट लिखने वाले राही मासूम रजा ने अपनी प्रचलित किताब आधा गांव पेज न०12 पर लिखते हैं- ‘नाम का ब्यक्तिव से कोई अटूट रिश्ता नही होता, क्योंकि ऐसा होता तो गाजीपुर बनकर गाजीपुरी को भी बदल जाना चाहिए था। गाजीपुर के लोग जिन शहरों में रहते है अपने अटूट छाप छोड़ देते है।
राही मासूम रजा ने करीब आधा दर्जन किताब लिखे जिन पर आधा गांव की लोकप्रियता भारी पड़ी और इसी उपन्यास को उनके सिग्नेचर उपन्यास के तौर पर देखा जाता है। राही के करीबी साथियों में एक पंजाबी साथी जो इंडो-पाक बटवारे में इंडिया चले आए थे, उस साथी का नाम राम लाल था जो एक बेहतरीन अफसाना नेगार थे और नॉर्थरन रेलवे में लखनऊ स्टेशन पर कार्यरत थे जिन्हें राही मासूम रजा अक्सर मिलने लखनऊ को आया करते थे। यदि सोचकर देखा जाए तो ताज्जुब होता है कि ये सारे आयाम और ये सारे काम किसी एक शख्स के है। उस करिश्माई शख्स के जिसकी बादशाही कलम ने उसे आज भी समूचे हिंदुस्तान में जीवित रखा है। जिसने जिस पर हाथ रखा वो कामयाबी की भाषा में सोना हो गई। राही मासूम रजा 15 मार्च 1992 को 64 साल की उम्र में अपना जादुई हुनर समेटे दुनिया से चले गए। आज हमारे बीच रही मासूम रजा भले न हों मगर उनकी कृतियां समाज को दिशा दे रही हैं। साहित्य के बुलन्द मकाम पर रही मासूम रजा उस रौशनी की तरह नुमाया हैं जो लोगों की रहबरी करता है।
(गुफ्तगू के अक्तूबर-दिसंबर 2018 अंक में प्रकाशित)
2 टिप्पणियाँ:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (30-12-2018) को "नये साल की दस्तक" (चर्चा अंक-3201) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अच्छी जानकारी
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