गुरुवार, 1 फ़रवरी 2018

ख़्याल की नज़ाकत से बनते हैं ग़ज़ल के शेर

गुफ्तगू के ग़ज़ल विशेषांक का विमोचन और मुशायरे का आयोजन


इलाहाबाद। ग़ज़ल जिनती मक़बूल है, उतनी है ही नाजुक विधा है, ख़्याल की नज़ाकत से ग़ज़ल के शेर बनते हैं, गुफ्तगू के ग़ज़ल में विशेषांक में प्रकाशित ग़ज़लें इसकी तरजुमानी करती हैं। इस अंक की बड़ी खासियत यह है कि इसमें सरदार जाफ़री, फ़िराक़ गोरखपुरी, शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी जैसे लोगों के आलेख शामिल हैं, जो इस अंक को ख़ास बना रहे हैं। यह बात प्रो. अली अहमद फ़ातमी ने ‘गुफ्तगू’ के ग़ज़ल विशेषांक के विमोचन के मौके पर 28 जनवरी को इलाहाबाद के सिविल लाइंस स्थित बाल भारती स्कूल में कही। कार्यक्रम अध्यक्षता कर रहे प्रो. फातमी ने कहा कि बाज़ारवाद के दौर में गुफ्तगू जैसी पत्रिका का निरंतर प्रकाशन बेहद कठिन काम है, लेकिन टीम गुफ्तगू ने यह काम करके दिखाया है। लगातार 15 वर्षों से पत्रिका का प्रकाशन और समय-समय पर विशेषांक का निकालना बड़ी बात है।
देहरादून से आए मुख्य अतिथि इक़बाल आज़र ने कहा कि इलाहाबाद में टीम गुफ्तगू हिन्दी-उर्दू साहित्य के लिए बहुत शानदार काम कर रही है, पिछले तीन-चार सालों से इस टीम से जुड़कर मुझे बहुत ही अच्छा लगा, बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है। इसका मौजूद ग़ज़ल विशेषांक तो कई मायन में बेहद ख़ास है। सरदार जाफरी, फिराक गोरखपुरी, प्रो. अली अहमद फ़ातमी आदि जैसे लोगों के आलेख कई बिंब को खोजने में कामयाब दिख रहे हैं, इलाहाबाद की साहित्यि धरती से ही इस तरह के शानदान काम किए जा सकते हैं।
गुफ्तगू के अध्यक्ष इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने कहा कि ग़ज़ल आज के समय की सबसे लोकप्रिय विधा है, आज सबसे ज़्यादा ग़़ज़ल लिखी, पढ़ी और सुनी जा रही है, इसे देखते हुए इस विशेषांक का प्रकाशन किया गया है। टीम गुफ्तगू अपने इस काम में कितना कामयाब हुई है, इसे पाठक बताएंगे, टीम ने अपने तौर पर बेहतर काम करने का प्रयास किया है।
डाॅ. अशरफ़ अली बेग ने कहा कि इस मुश्किल दौर में साहित्य की पत्रिका का प्रकाशन बेहद कठिन काम है, लेकिन गुफ्तगू ने ऐसे माहौल में भी ग़ज़ल विशेषांक का प्रकाशन करके एक नजीर पेश किया है। मिर्जापुर से आए भोलानाथ कुशवाहा ने कहा कि गुफ्तगू का ग़ज़ल विशेषांक कई मायने में बेहद ख़ास है, इसकी जितनी तारीफ की जाए कम है। कार्यक्रम का संचालन मनमोहन सिंह तन्हा ने किया।
दूसरे दौर में मुशायरे का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता पं. बुद्धिेसन शर्मा ने किया। प्रभाशंकर शर्मा, अनिल मानव, शैलेंद्र जय, शिवपूजन सिंह, शहाब अख़्तर अंसारी, शिवशरण बंधु, अंजली मालवीय ‘मौसम’, जमादार धीरज, सागर होशियारपुरी, अपर्णा सिंह, अजीत शर्मा आकाश, सुनील दानिश, शजली ग्यास खान, संपदा मिश्रा, ललिता पाठक नारायणी, संजू शब्दिता, अमित वागर्थ, योगेंद्र मिश्रा, प्रमोद चंद गुप्ता, विजय लक्ष्मी विभा, विपिन विक्रम सिंह, रमोला रूथ लाल, माहिर मजाल और अरशद ठाकुर आदि ने कलाम पेश किया। 

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