-इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी
प्रो. सैयद अक़ील रिज़वी का जन्म अक्तूबर 1928 को मंझनपुर तहसील के करारी नामक गांव में हुआ, तब मंझनपुर इलाहाबाद जिले का ही हिस्सा था, अब कौशांबी जिले की तहसील है। वर्तमान समय में प्रो. अक़ील इलाहाबाद के दरियाबाद मुहल्ले में रहते हैं। बेहद बुजुर्ग हो चुके हैं, लेकिन अब भी पढ़ने-लिखने से वास्ता समाप्त नहीं हुआ है। इनके आवास पर जाने या इनसे मिलने पर बात एजुकेशन और देश, समाज की ही करते हैं। साहित्य और समाज की विसंगतियों पर बहुत फिक्रमंद हैं। आपके पिता का नाम सैयद अकबर हुसैन और मां का नाम शफ़ा अतुन्निशां है। वादिल साहब की जमींदारी थी, चाचा डिप्टी कलेक्टर थे। तीन बहनों में दो पाकिस्तान में हैं। दूसरी मां से एक बड़े भाई भी थे। प्रो. अक़ील साहब के बेटे लंदन में रहते हैं। देश के बंटवारे के समय इनके कई रिश्तेदार और आपसपास के लोग पाकिस्तान जाने लगे, पूरे देश में एक तरह से हंगामा मचा था। इनको भी बहुत से लोग पाकिस्तान चलने की सलाह दे रहे थे, लेकिन तब इन्होंने कहा था कि मैं उस मुल्क में कभी नहीं जाउंगा जहां का आदमी जानवर बन गया है। इनका मतलब दंगों और मारपीट से था।
1946 में इलाहाबाद माडर्न स्कूल से हाईस्कूल की परीक्षा पास की, तब पूरे प्रदेश के मेरिट लिस्ट में आप दसवें स्थान पर थे। इविंग क्रिश्चियन कालेज से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की, तब प्रदेश के मेरिट लिस्ट में आप 14वें स्थान पर थे। 1950 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक की परीक्षा और 1952 में यहीं से स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की। इलाहाबाद विश्वविद्यालय की तीन फैकल्टी में टाॅप करने पर क्वीन इंप्रेस विक्टोरिया गोल्ड मेडल से आपको नवाज़ा गया। 1953 से ही इलाहाबाद विश्वविद्याल में आपने अध्यापन कार्य किया, जहां आप उर्दू के विभागाध्यक्ष भी रहे। जब आप अध्यापन कार्य कर रहे थे, उन दिनों इसी विश्वविद्लाय में फि़राक़ गोरखपुरी, प्रो. एहतेशाम हुसैन और हरिवंश राय बच्चन जैसे नामी-गिरामी लोग भी थे। आप छह माह के लिए जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली में बतौर विजिटिंग प्रोफेसर रहे। 1992 में इलाहाबाद विश्वविद्याल से सेवानिवृत्त हुए। 1985 में लंदन में हुए एक सेमिनार में शिकरत करने गए थे, जहां दुनियाभर के लोगों बीच इन्होंने बताय कि भारत में अवधी भाषा उर्दू के साथ-साथ चलती है। इसको लेकर कई लोगों से बातचीत हुई। आपकी मशहूर किताब में ‘गोधूल’ है। ‘गोधूल’ आत्मकथा है, जिसमें इलाहाबाद का इतिहास भी विस्तारपूर्वक बताया गया है। शाम के वक़्त जब मवेशी अपने घरों को लौटते हैं, तो उस वक़्त गाय के लिए पांव से उड़ने वाले धूल का नज़ारा क्या है, क्या-क्या चीज़ें इससे महसूस होती हैं और दिखाई देती हैं, यह सब चित्रण भी इस किताब में किया गया है। इसके अलावा इनकी ‘इलाहाबाद की संस्कृति और इतिहास’ नामक एक पुस्तक है, जिसे इलाहाबाद संग्रहालय ने प्रकाशित किया है। इस किताब में इलाहाबाद का नाम पड़ने से लेकर आज़ादी आंदोलन, देश के बंटवारे के समय लोगों के पाकिस्तान जाने का सिलसिला, उस दौरान पूरे इलाहाबाद शहर के हालात और रेलवे स्टेशन हो रहे हंगामे आदि का सजीव वर्णन किया गया है।
(गुफ्तगू के सितंबर 2015 अंक में प्रकाशित)
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