इलाहाबाद। साहित्यिक संस्था ‘गुफ्तगू’ के तत्वावधान में 22 मार्च की शाम काव्य गोष्ठी एवं नशिस्त का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता बुद्धिसेन शर्मा ने की, मुख्य अतिथि नायाब बलियावी थे। संचालन इम्तियाज अहमद गाजी ने किया।
सबसे पहले युवा कवि मनीष सिंह ने कविता पेश की-
आंखों में सपने लेकर उड़ना चाहा नीले आकाश में,
मोड़ना चाहती थी संसार को सच की तरफ इस विश्वास में।
चाहती थी फर्क बताना जिन्दा और मुर्दा लाश में,
परिवर्तन तो हो जाता है अगर हिम्मत हो हर सास में।
प्रभाशंकर शर्मा ने कहा-
अबकी भाई हम फंसिन गए, अंधरन के आंख-मिचैली में।
चेहरे की सारी चमक गई, रगड़ाई गए हम होली में।
रोहित त्रिपाठी ‘रागेश्वर’ की कविता यूं थी-
दुश्मनों का जोर इतना था कि क्या करते,
एक तरफा शोर इतना था कि क्या करते।
इसलिए महफिल में आया हूं अदब की दोस्तो,
दिल मेरा कमज़ोर इतना था कि क्या करते।
डाॅ. शाहनवाज़ आलम-
पत्थरों से सवाल करते हो, यार तुम भी कमाल करते हो।
पूछते क्यों नहीं ज़माने से, आइने से सवाल करते हो।
लोकेश श्रीवास्तव की कविता यूं थी-
खाना बना चुकने के बाद, इंतज़ार कर रहा हूं मैं।
उस भूख का जो, सिर्फ़ भोजन की ही है।
अजय कुमार ने कहा-
जब जब उनका आना होगा, आंखों को समझाना होगा।
कब तक भागूंगा सच में मैं, इक दिन तो अपनाना होगा।
अनुराग अनुभव ने तरंनुम में ग़ज़ल पेश किया-
तंज भी समझती है फब्तियां समझती हैं,
हर नज़र की फितरत को लड़कियां समझती हैं।
इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने कहा-
शक्ल पर तो शराफ़त मिली, और भीतर सियासत मिली।
शाहिद अली शाहिद ने कहा-
शिकस्ते खवाब का इक सिलसिला अभी तक है।
मेरे खिलाफ़ मेरा हमनवा अभी तक है।
नायाब बलियावी ने तरंनुम में प्रभावी ग़ज़ल पेश किया-
तेरी इक तरफ़ की कशिश ने ही मेरी जि़न्दगी को बचा लिया।
बुद्धिसेन शर्मा ने कहा-
अभी सच बोलता है ये, अभी कुछ भी नहीं बिगड़ा।
अगर डांटोगे तो बच्चा बहना सीख जाएगा।
धर्मेंद्र श्रीवास्तव ने सबके प्रति धन्यवाद ज्ञापन किया
शिवपूजन सिंह, नरेश कुमार ‘महरानी’, अखलाक खान,संजय सागर आदि ने भी कलाम पेश किया।
1 टिप्पणियाँ:
हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार (07-04-2015) को "पब्लिक स्कूलों में क्रंदन करती हिन्दी" { चर्चा - 1940 } पर भी होगी!
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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