-इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी
उर्दू अदब में शम्सुरर्हमान फ़ारूक़ी का नाम एक चमकते सितारे की तरह से है। आज की तारीख़ में उन्होंने अपनी मेहनत और क़ाबलियत से जो मुकाम हासिल कर लिया है, वह किसी मील के पत्थर से कम नहीं है। पद्मश्री से लेकर पाकिस्तान सरकार के ‘निशान-ए-इम्तियाज़’ तक के एवार्ड इनके हिस्से में अब तक आ चुके हैं। 30 सितंबर 1935 को प्रतापगढ़ में पैदा होने वाले श्री फ़ारूक़ी छह बहन और सात भाइयों में पांचवें नंबर पर है, आप से बड़ी चार बहने हैं, भाइयों में आप सबसे बड़े हैं। पिता मोहम्मद खलीकुर्रहमान फ़ारूक़ी डिप्टी इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल थे। प्रतापगढ़ में प्रारंभिक शिक्षा हासिल करने के बाद आप पढ़ाई के लिए इलाहाबाद आ गये। 1955 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से अंग्रेज़ी में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की। अपने बैच में प्रथम स्थान हासिल किया, लेकिन लेक्चरशिप नहीं मिला। हताश नहीं हुए और सतीश चंद्र डिग्री कालेज बलिया में और इसके बाद शिब्ली नेशनल कालेज आजमगढ़ में अंग्रेजी के प्रवक्ता के रूप में अध्यापन कार्य करने लगे। 1958 में भारतीय प्रशासनिक सेवा (एलाइड) के लिए आप चयनित हो गए। भारतीय डाक सेवा में कार्य करते हुए आपने विभिन्न राज्यों में अपनी सेवाएं दीं, 1994 में रिटायर हुए। रिटायर होने के बाद आपके साहित्य लेखन में और तेजी आई। अलीगढ़ मुसलिम यूनिवर्सिटी ने 2002 में और मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी हैदराबाद ने 2007 में आपको डी.लिट की मानद उपाधियों से विभूषित किया।
1991 से 2004 तक यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसलवानिया, फ़िलाडेल्फ़िया (यूएसए) में मानद प्रोफेसर रहे, 1997 से 1999 तक ‘खान अब्दुल गफ्फार खां प्रोफेसर’ के पद पर कार्यरत रहे। नेशनल कौंसिल फ़ार प्रमोशन ऑफ़ उर्दू (नई दिल्ली) के वाइस चेयरमैन के रूप में उर्दू की तरक्की के लिए किया गया काम आपकी महत्वपूर्ण सेवाओं में से है। उर्दू की सेवा के लिए अब तक अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, रूस, हालैंड, न्यूजीलैंड, थाईलैंड, बेल्जियम, कनाडा, तुर्की, पश्चिमी यूरोप,सउदी अरब और कतर आदि देशों का दौरा कर चुके हैं। अमेरिका, कनाडा और इंग्लैंड के कई विश्वविद्यालयों में कई बार लेक्चर दे चुके हैं। उर्दू अदब के स्तंभ शायरों में से एक मीर तक़ी मीर के व्यक्तित्व और कृतित्व पर श्री फ़ारूक़ी ने चार खंडों में ‘शेर-शोर अंगेज़’ नामक किताब लिखकर तहलका मचा दिया। इस किताब पर 1996 में ‘सस्वती सम्मान’ प्रदान किया, सम्मान के रूप में मिला पांच लाख रुपये उस समय का सबसे बड़ी इनामी राशि वाला सम्मान था। 1996 में ही आपने ‘शबखून‘ नामक मासिक पत्रिका निकाली, जो दुनिया-ए-उर्दू अदब में चर्चा का विषय हुआ करती थी, दुनिया के जिस भी देश में उर्दू साहित्य में रुचि रखने वाले लोग हैं, वहां यह पत्रिका जाती थी, लोग बड़े चाव से पढ़ते थे। किसी लेखक-शायर का इस पत्रिका में प्रकाशित होना अपने आप में बड़ी बात थी। मगर सेहत ख़राब होने की वजह से सितंबर 2005 में इसका प्रकाशन बंद कर दिया। दिल का आपरेशन होने के कारण सेहत गिरती जा रही है, अल्लाह इन्हें सेहतयाब करे। इनकी किताब ‘उर्दू का इब्तिदाई ज़माना’ उर्दू और हिन्दी के अलावा अंग्रेज़ी में भी प्रकाशित हुआ है। अंग्रेज़ी में इसे आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ने प्रकाशित किया है। शायरी में चार किताबें छप चुकी हैं, जिनके नाम ‘गंजे-सोख्ता’, सब्ज अंदर सब्ज’,‘चार सिम्त का दरिया’ और ‘आसमां मेहराब’ हैं। गद्य की किताबों में ‘लफ्जी मआनी’,‘फ़ारूक़़ी के तब्सेरे’,‘शेर ग़ैर शेर और नस्र’,‘अफ़साने की हिमायत में’,‘तफ़हीमे-ग़ालिब’,‘दास्ताने अमीर हमज़ा का अध्ययन’ और ‘तन्क़ीदे अफ़कार’ आदि हैं। अंग्रेज़ी किताबों में ‘द सीक्रेट मिरर’,‘अर्ली उर्दू लिटेरेरी कल्चर एंड हिस्टी’,‘हाउ टु रीड इक़बाल‘ हिन्दी में ‘अकबर इलाहाबादी पर एक और नज़र’ वगैरह विशेष उल्लेखनीय हैं। हाल ही में अंग्रेजी में प्रकाशित उनका नाविल ‘कई चांद थे सरे आसमां’ का हिन्दी अनुदित संस्करण काफी चर्चा में है। ‘उर्दू की नई किताब’ और ‘इंतिख़ाबे-नस्रे’ समेत कई किताबों का संपादन भी किया है। श्री फ़ारूक़ी ने कुछ किताबों का अंग्रेज़ी से उर्दू अनुवाद भी किया है, जिनमें अरस्तू की पुस्तक ‘पाएटिक्स’ का उर्दू अनुवाद ‘शेरियत’ है। ‘शेर शोर अंग़ेज नामक पुस्तक चार खंडों वाली किताब में मीर तक़ी मीर के एक-एक शेर की व्याख्या और उसके विशलेषण में उसी विषय के कवियों के अश्आर की मिसालें दे-देकर ऐसा लिखा है की उर्दू अदब में तहलका सा मच गया, बड़े-बड़े आलिम चौंक पड़े। आपकी आगामी पुस्तकों में ‘एसेज़ इन उर्दू क्रिटिसिज्म एंड थ्योरी’ के अलावा ग़ालिब और मुसहफ़ी की ज़िदगी पर आधारित कहानियां हैं। उर्दू में ऐसे शब्दों और मुहावरों को शामिल करते हुए एक शब्दकोश की पुस्तक प्रकाशित करवाने जा रहे हैं, जो आम शब्दकोश में मिलना लगभग असंभव है। श्री फ़ारूक़ी का पता-29सी, हेस्टिंग रोड, इलाहाबाद, मोबाइल नंबरः9415340662 है।
गुफ्तगू के मार्च-14 अंक में प्रकाशित
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