‘ग़ज़ल: सफ़र दर सफ़र’ विषय पर ‘गुफ्तगू’ ने किया सेमिनार इलाहाबाद। ग़ज़ल अरब देश से भारत में आयी, उर्दू की विधा बनी और फिर हिन्दी सहित तमाम देश-विदेशी भाषाओं की चहेती विधा बन गई है। आज सूरतेहाल यह है कि लगभग हर भाषा के काव्य में ग़ज़ल का सृजन हो रहा है। हिन्दी-उर्दू पाठकों के बीच तो यह सबसेे लोकप्रिय विधा बन गई है। यह बात प्रो. अब्दुल बिसमिल्लाह ने साहित्यिक संस्था गुफ्तगू आयोजित सेमिनार में कही। 9 जून की शाम इलाहाबाद स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्टृीय हिन्दी विश्वविद्याल के सभागार में ‘ग़ज़लः सफ़र दर सफ़र’ विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता पूर्व महाधिवक्ता एसएमए काज़मी ने की, मुख्य अतिथि प्रो. बिसमिल्लाह थे। संचालन इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने किया। सबसे पहले साहित्यकार न होते हुए साहित्यिक आयोजनों में भाग लेने वाले उमेश नारायण शर्मा, डाॅ.पीयूष दीक्षित, इं. अखिलेश सिंह, जीडी गौतम, मुकेश चंद्र केसरवानी, सीआर यादव और धनंजय सिंह को ‘शान-ए-इलाहाबाद’ सम्मान प्रदान किया गया। 8 जून की देर रात वरिष्ठ शायर अरमान गाजीपुर का निधन हो गया था, कार्यक्रम के दौरान उन्हें श्रद्धांजलि भी दी गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे पूर्व महाधिवक्ता एसएमए काजमी ने कहा कि उर्दू और हिन्दी काव्य विधा में ग़ज़ल लोगों की धड़कन बन गई है, साहित्य से मोहब्बत करने वाला इंसान ग़ज़ल ज़रूर सुनता-पढ़ता है। मीर, ग़ालिब के जमाने से लेकर आज बशीर बद्र, निदा फाजली, मुनव्वर राना, दुष्यंत कुमार आदि की मक़बूलियत की बुनियाद ग़ज़ल पर टिकी हुई है। उन्होंने कहाकि आज यह आयोजन बेहद कामयाब रहा है, लोग आखि़र तक सबका वक्तव्य सुनते रहे हैं, मैं इम्तियाज़ ग़ाज़ी ने कहूंगा कि वे ऐसे आयोजन प्रत्येक तीन महीने पर कराते रहें। प्रो. अली अहमद फातमी ने कहा कि ग़ज़ल बहुत ही नाजुकी मिजाज विधा है, इसके लिए इस्तेमाल किये जाने वाले अल्फाज में शीरीन मिठास होनी चाहिए, लेकिन प्रयोग के नाम पर ऐसे शब्द का इस्तेमाल भी किया जाने लगा है, जो ग़ज़ल की भाषा हो ही नहीं सकती। एहतराम इस्लाम ने कहा कि ग़ज़ल लिखने के लिए उसके व्याकरण से वाकिफ़ होना बेहद ज़रूरी है लेकिन केवल छंद ही ग़ज़ल नहीं है। ग़ज़ल की लोकप्रियता केा देखते हुए लोग ग़ज़ल लिखना तो शुरू कर देते हैं, लेकिन उसके व्याकरण को समझने की कोशिश नहीं करते, जिसकी वजह से कुछ हिन्दी भाषी कवियों पर ग़ज़ल के स्वरूप को बिगाड़ने का आरोप लगता रहा है, हालांकि हिन्दी में भी बहुत लोग बड़ी अच्छी ग़ज़लें लिख रहे हैं। कानपुर विश्वविद्यालय की डाॅ.नगीना जबीं ने ‘ग़ज़ल की शायरी में औरतों का योगदान’ विषय पर अपना वक्तव्य दिया, कहा कि परवीन शाकिर, अज़रा परवीन और फहमीदा रियाज जैसी महिला शायरायों ने ग़ज़ल के विकास में काफी अहम किरदार निभाया है। आज भी भारत समेत कई देशों में महिलाएं बहुत अच्छी ग़ज़लें कह रही हैं। डाॅ. असलम इलाहाबादी ने ‘गजलिया शायरी में इलाहाबाद’ विषय पर कहा कि इलाहाबाद हमेशा से अदब का अहम मरकज रहा है, नूह नारवी, अकबर इलाहाबादी, फिराक गोरखपुरी, राज इलाहाबादी आदि शायरों ने हिन्दुस्तानी ग़ज़ल को काफी आगे बढ़ाया है, देश के ग़ज़लिया शायरी का इतिहास इनके जिक्र बिना मुकम्मल नहीं हो सकता। आज भी इस शहर में कई लोग बहुत अच्छी ग़ज़लें लिख रहे हैं, नौजवानों का ग़ज़ल के प्रति बढ़ता रूझान इसका सुबूत है। ‘गुफ्तगू’ ने इस विषय पर आयोजन करके साबित कर दिया है कि साहित्य का गंभीर काम इलाहाबाद जैसे शहर में ही हो सकता है। कार्यक्रम के दौरान प्रो.संतोष भदौरिया, मुनेश्वर मिश्र, सागर होशियारपुरी, तलब जौनपुरी, वीनस केसरी, सौरभ पांडेय, संजय सागर, शुभ्रांशु पांडेय, अशरफ़ अली बेग, हसीन जिलानी, अख़्तर अज़ीज़, अजय कुमार, शिवपूजन सिंह, सफदर काजमी, असरार गांधी, निकहत बेगम, हसीन जिलानी, सुषमा सिंह, शिवाशंकर पांडेय, रविनंदन सिंह, नंदल हितैषी, शैलेंद्र जय, गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी, अनुराग अनुभव, गीतिका श्रीवास्तव, विवेक सत्यांशु, शाहीन, अजीत शर्मा ‘आकाश’ आदि लोग मौजूद रहे। |
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