प्रो. सोम ठाकुर हिन्दी साहित्य में अपना विशेष स्थान रखते हैं. उन्होंने नवगीत को नया आयाम दिया. हिन्दी साहित्य में उनकी सफलता प्रमाण की मोहताज नहीं है. इनकी साहित्य जीवन पर कुल तीन शोध पत्र विभिन्न विश्वविद्यालयों में लिखे जा चुके हैं. वे उ.प्र. हिन्दी संस्थान के कार्यकारी उपाध्यक्ष भी रहे हैं. आपका जन्म 1934 में उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में स्व. दीप ठाकुर के यहां हुआ था. आगरा कालेज और सेन्ट जोन्स कालेज में अध्यापन करने के बाद आप मैनपुरी के नेशनल कालेज में हिन्दी विभाग के विभागाध्यक्ष भी रहे, बाद में वहां से त्यागपत्र देकर आप अमेरिका चले गये तथा अमेरिका के 29 शहरों और कनाडा के 10 शहरों में आपने अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति का गठन किया. उसके बाद आपको मारिशस सरकार ने बुला लिया, वहां से लौटने के पश्चात सन् 2004 में आपको उ.प्र. हिन्दी संस्थान का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया. आपके अनेक काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके है. जिनके नाम एक ऋचा पाटल को, अभिराम, चन्दन और अबीर, सोम सतसई, लोकप्रिय आदि है. आपको यश भारती, निराला पुरस्कार तथा अन्य छोटे बड़े सम्मान प्राप्त है. गुफ़्तगू के संवाददाता अजय कुमार ने उनसे बात की, जिसका संपादित अंश प्रस्तुत हैः-
सवाल-आप गीतों का क्या भविष्य देखते हैं?
जवाब- गीतों का भविष्य तो अच्छा है क्योंकि बिना गीतों के काम नहीं चलेगा, क्योंकि जब आदमी संवेदनशील स्थिति में होता तो गीत ही उसका साथ देते हैं और कोई चीज़ उसका साथ नहीं देती, जब आदमी परेशान होता है तो गुनगुनाने लगता है, तो गीत का भविष्य मुझे तो अच्छा लग रहा है.
सवाल-हिन्दी कवियों में ग़ज़ल की लोकप्रियता बढ़ने की क्या वज़ह है?
जवाब- ग़ज़ल का प्रयोग बढ़ने के दो तीन कारण है, जिसमें पहली बात ये है कि ग़ज़ल अगर अच्छी ग़ज़ल कहनी हो तो वो बहुत मुश्किल है और वैसे तो रदीफ़ और क़ाफि़या मिलाकर चाहे जो कहा जा सकता है. इसके लिये जरूरी है व्यक्ति सबसे पहले अच्छे साहित्य को पढ़े और फिर लिखे और फिर प्रकाशित कराये. ग़ज़ल एक ऐसी संस्कृति की विधा है जो पश्चिम से आये जो जुझारू लोग रहे. आज यहां कल वहां रहे जहां रहे वहीं झण्डा गाड़ लिया उनका स्थायित्व नहीं था यही कारण है कि जितने भी शेर होते हैं. उनमें एक शेर में कहीं और की बात कही जायेगी दूसरे में कहीं और की विचारों की निरन्तरता नहीं है. गीत में है और हमारा सबसे अच्छा साहित्य वो है जो कुटिया में और झोपडि़यों में लिखा गया है और उनका वो साहित्य दरबार में लिखा गया है, दरबार में हमारे यहां भी लिखा गया पर वह भक्तिकाल से कम माना गया. उसमें कलात्मक ऊँचाई तो बहुत है पर विचारों एवं भावों की ऊँचाई कम है.
सवाल- चुटकुलेबाजी के दौर में मंच की कितनी महत्ता रह गई है.
जवाब- चुटकुलेबाजी के दौर में जो लोग बहुत अच्छा लिखने पढ़ने वाले हैं उनकी महत्ता है और बाकी ये लोग बहुत जल्द खत्म हो जायेगें जो चुटकुलेबाज है. चुटकुला पहली बार सुनने में अच्छा लगता है फिर उसके लुत्फ में कमी आ जाती है और ये तो खत्म ही होना है गीत ही जिन्दा रहेंगें.
सवाल- फिल्मों में जो गीत गाये जा रहे हैं उनमें प्रायः हिन्दी के शब्दों का प्रचलन कम तथा उर्दू के शब्दों का प्रचलन ज्यादा देखने को मिल रहा है, इस पर आप क्या कहेंगें?
जवाब-नहीं, ऐसाा नहीं है उर्दू के शब्दों का एक जमाना था जब प्रचलन बढ़ता जा रहा था लेकिन इस समय प्रचलन बढ रहा है. पंजाबी भाषा का. बिरला ही कोई फिल्म होगी जिसमें पंजाबी का गीत या मुखड़ा न होगा तो मेरे अनुसार उर्दू को जानने वाले कम हो रहे है, धीरे-धीरे, जितना पहले जानते थे उर्दू को उतना अब नहीं जानते नई पीढ़ी तो बिल्कुल नहीं जानती.
सवाल-नई कविता का क्या भविष्य है?
जवाब- नई कविता का कोई भविष्य नहीं है, कारण यह है कि कविता का काम है आदमी को तनाव से दूर रखना है और नई कविता तनाव ग्रस्त करती है तो ये तो आदमी को बीमार बनाती है. गीत भावनाओं का उदास्तीकरण करता है मन को विश्राम देता है तो गीत ही जिन्दा रहेगा नई कविता तो खत्म हो जायेगी.
सवाल- छन्द कविता के लिए कितना महत्व रखते हैं?
जवाब- छन्द कविता के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि छन्द का सबसे बड़ा गुण यह है कि वह याद होता है और नई कविता याद नहीं होती और छन्द की लयवत्ता के कारण वह धारणा शक्ति में स्थान बनाती है. नई कविता बहुत कम ऐसी मिलती है जो मन पर प्रभाव डालती है.
सवाल- साहित्यिक पुरस्कारों की वर्तमान स्थिति पर आपके क्या विचार हैं.
जवाब- साहित्यिक पुरस्कार तो अलग-अलग संस्थायें देती हैं. उनके अपने जीवन मूल्य होते हैं जिनके अनुसार दिये जाते हैं.
सवाल- आपने हिन्दी संस्थान की उपाध्यक्षता के दौरान कौन-कौन से उल्लेखनीय कार्य किये, तथा क्या करना शेष रह गया?
जवाब- सबसे पहले तो मैने वाचनालय को पब्लिक लाइब्रेरी बना दिया, दूसरा काम ये किया कि जो लोग अहिन्दी भाषी साहित्य रचते थे वो अपने क्षेत्र तक ही रहते थे, मैंने केरल, तामिलनाडु, गुजरात जैसे राज्यों में हिन्दी भाषी लोगों के कार्यक्रम कराये. फि़र इंग्लैण्ड और अमेरिका में भी उनको ले गया. मैं ‘धर्मयुद्ध’ जैसी ही एक पत्रिका निकालना चाहता था पर नहीं निकाल पाया क्योंकि सरकार गिर गई. दूसरे मैं चाहता था, जिस प्रकार केदारनाथ, ब्रदीनाथ पीठ है उसी तरह हिन्दी पीठ स्थापित की जाये चारों दिशाओं में, जिसके लिए 5 करोड़ रुपये के लिए हमने मुलायम सिंह से बात कर ली थी, और मेरे जो असिस्टेन्ट आई.ए.एस.अधिकारी थे उन्होंने कहा की उनकी ही बैच के लोग सब जगह पर हैं, वो मुफ्त में जमीन दिला देंगें. मुलायम सिंह ने 5 करोड़ रुपये स्वीकार कर लिया था ताकि वहां पर एक तो हालबनाया जा सके और एक हास्टल जहां लोग ठहर सकें, वहां एक-एक महीने का कार्यक्रम रखा जाये, उस एक माह में वहां के स्थानीय रचनाकारों को भी शामिल किया जाये और कुछ बाहर के भी शामिल हों लेकिन हो नहीं सका. तीसरा काम मैं करना चाहता था, हिन्दी को रोजगार की भाषा नहीं मानते हैं, मैं न्यूयार्क में गया वहां के विभागाध्यक्ष से बात की. बहुत लोग ऐसे है जो अंग्रेजी से एम.ए. किये बिगड़ गया तो उन्होंने हिन्दी से एम.ए. किया और पी.एच.डी की और यहां आकर पढ़ाने लगे. ऐसे लोगों को हैण्डसम रेमुनेरेशन देकर 3-3 वर्षो के लिए बुलाते तो हिन्दी रोजगार की भाषा बनती वो मैं नहीं कर पाया.
सवाल- लघु पत्रिकाओं को किस नजर से देखते हैं?
जवाब- लघु पत्रिकायें बहुत जरूरी तो है क्योंकि जो आंचलिक प्रयोग छोटी-छोटी जगहों पर किये जा रहे हैं वो यहां तक नहीं पहुंच पाते है. जो पहुंचने चाहिये. किस्सों में ही सही. आजकल मैं देखता हूं बिहार में छोटे-छोटे गांवो से पत्रिकायें निकल रही है, जहां तक मेरा ख्याल है तो बिहार में सबसे ज्यादा लघु पत्रिकायें निकल रही है. थोड़े ही लोग हैं और वो भी खुद को प्रकाशित करते हैं तो कुछ तो दायरा है उनका, कुछ तो क्षेत्र है जहां तक वो पहुंच रहे हैं.
सवाल- गुफ़्तगू पर आपकी क्या राय है?
जवाब- गुफ्तगू बहुत अच्छी पत्रिका है. इसमें हमको चतुर्दिक दर्शन होते हैं. सृजन के भी इन्टरव्यू के भी, कवितायें भी निकालते है और साथ ही एक व्यक्ति पर विशेषांक निकालते हैं तो एक सामूहिक रूप में उजागर होता है ‘सृजन’.
सवाल- नये लिखने वालों को क्या सन्देश देना चाहेंगें?
जवाब- सबसे पहले तो नवलेखकों को खूब पढ़ना चाहिये, जरुरी नहीं है कि आप नई कविता लिखेतभी नई कविता पढ़े सब कुछ पढ़ना चाहिये और आपको रास्तें मिलेंगे कि अपनी बात को लोगों ने कैसे कहा है. ये देखेंगे तो आपको अपना एक रास्ता भी मिलेगा, जिससे आप अपना विकास कर सकेंगे, खूब पढि़ये और लिखिये उसमें से छटा हुआ प्रकाशित कराइये, इससे बहुत लाभ होगा हिन्दी कविता का ऐसा मेरा ख्याल है.
गुफ्तगू के मार्च-2013 अंक में प्रकाशित
सवाल-आप गीतों का क्या भविष्य देखते हैं?
जवाब- गीतों का भविष्य तो अच्छा है क्योंकि बिना गीतों के काम नहीं चलेगा, क्योंकि जब आदमी संवेदनशील स्थिति में होता तो गीत ही उसका साथ देते हैं और कोई चीज़ उसका साथ नहीं देती, जब आदमी परेशान होता है तो गुनगुनाने लगता है, तो गीत का भविष्य मुझे तो अच्छा लग रहा है.
सवाल-हिन्दी कवियों में ग़ज़ल की लोकप्रियता बढ़ने की क्या वज़ह है?
जवाब- ग़ज़ल का प्रयोग बढ़ने के दो तीन कारण है, जिसमें पहली बात ये है कि ग़ज़ल अगर अच्छी ग़ज़ल कहनी हो तो वो बहुत मुश्किल है और वैसे तो रदीफ़ और क़ाफि़या मिलाकर चाहे जो कहा जा सकता है. इसके लिये जरूरी है व्यक्ति सबसे पहले अच्छे साहित्य को पढ़े और फिर लिखे और फिर प्रकाशित कराये. ग़ज़ल एक ऐसी संस्कृति की विधा है जो पश्चिम से आये जो जुझारू लोग रहे. आज यहां कल वहां रहे जहां रहे वहीं झण्डा गाड़ लिया उनका स्थायित्व नहीं था यही कारण है कि जितने भी शेर होते हैं. उनमें एक शेर में कहीं और की बात कही जायेगी दूसरे में कहीं और की विचारों की निरन्तरता नहीं है. गीत में है और हमारा सबसे अच्छा साहित्य वो है जो कुटिया में और झोपडि़यों में लिखा गया है और उनका वो साहित्य दरबार में लिखा गया है, दरबार में हमारे यहां भी लिखा गया पर वह भक्तिकाल से कम माना गया. उसमें कलात्मक ऊँचाई तो बहुत है पर विचारों एवं भावों की ऊँचाई कम है.
सवाल- चुटकुलेबाजी के दौर में मंच की कितनी महत्ता रह गई है.
जवाब- चुटकुलेबाजी के दौर में जो लोग बहुत अच्छा लिखने पढ़ने वाले हैं उनकी महत्ता है और बाकी ये लोग बहुत जल्द खत्म हो जायेगें जो चुटकुलेबाज है. चुटकुला पहली बार सुनने में अच्छा लगता है फिर उसके लुत्फ में कमी आ जाती है और ये तो खत्म ही होना है गीत ही जिन्दा रहेंगें.
सवाल- फिल्मों में जो गीत गाये जा रहे हैं उनमें प्रायः हिन्दी के शब्दों का प्रचलन कम तथा उर्दू के शब्दों का प्रचलन ज्यादा देखने को मिल रहा है, इस पर आप क्या कहेंगें?
जवाब-नहीं, ऐसाा नहीं है उर्दू के शब्दों का एक जमाना था जब प्रचलन बढ़ता जा रहा था लेकिन इस समय प्रचलन बढ रहा है. पंजाबी भाषा का. बिरला ही कोई फिल्म होगी जिसमें पंजाबी का गीत या मुखड़ा न होगा तो मेरे अनुसार उर्दू को जानने वाले कम हो रहे है, धीरे-धीरे, जितना पहले जानते थे उर्दू को उतना अब नहीं जानते नई पीढ़ी तो बिल्कुल नहीं जानती.
सवाल-नई कविता का क्या भविष्य है?
जवाब- नई कविता का कोई भविष्य नहीं है, कारण यह है कि कविता का काम है आदमी को तनाव से दूर रखना है और नई कविता तनाव ग्रस्त करती है तो ये तो आदमी को बीमार बनाती है. गीत भावनाओं का उदास्तीकरण करता है मन को विश्राम देता है तो गीत ही जिन्दा रहेगा नई कविता तो खत्म हो जायेगी.
सवाल- छन्द कविता के लिए कितना महत्व रखते हैं?
जवाब- छन्द कविता के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि छन्द का सबसे बड़ा गुण यह है कि वह याद होता है और नई कविता याद नहीं होती और छन्द की लयवत्ता के कारण वह धारणा शक्ति में स्थान बनाती है. नई कविता बहुत कम ऐसी मिलती है जो मन पर प्रभाव डालती है.
सवाल- साहित्यिक पुरस्कारों की वर्तमान स्थिति पर आपके क्या विचार हैं.
जवाब- साहित्यिक पुरस्कार तो अलग-अलग संस्थायें देती हैं. उनके अपने जीवन मूल्य होते हैं जिनके अनुसार दिये जाते हैं.
सवाल- आपने हिन्दी संस्थान की उपाध्यक्षता के दौरान कौन-कौन से उल्लेखनीय कार्य किये, तथा क्या करना शेष रह गया?
जवाब- सबसे पहले तो मैने वाचनालय को पब्लिक लाइब्रेरी बना दिया, दूसरा काम ये किया कि जो लोग अहिन्दी भाषी साहित्य रचते थे वो अपने क्षेत्र तक ही रहते थे, मैंने केरल, तामिलनाडु, गुजरात जैसे राज्यों में हिन्दी भाषी लोगों के कार्यक्रम कराये. फि़र इंग्लैण्ड और अमेरिका में भी उनको ले गया. मैं ‘धर्मयुद्ध’ जैसी ही एक पत्रिका निकालना चाहता था पर नहीं निकाल पाया क्योंकि सरकार गिर गई. दूसरे मैं चाहता था, जिस प्रकार केदारनाथ, ब्रदीनाथ पीठ है उसी तरह हिन्दी पीठ स्थापित की जाये चारों दिशाओं में, जिसके लिए 5 करोड़ रुपये के लिए हमने मुलायम सिंह से बात कर ली थी, और मेरे जो असिस्टेन्ट आई.ए.एस.अधिकारी थे उन्होंने कहा की उनकी ही बैच के लोग सब जगह पर हैं, वो मुफ्त में जमीन दिला देंगें. मुलायम सिंह ने 5 करोड़ रुपये स्वीकार कर लिया था ताकि वहां पर एक तो हालबनाया जा सके और एक हास्टल जहां लोग ठहर सकें, वहां एक-एक महीने का कार्यक्रम रखा जाये, उस एक माह में वहां के स्थानीय रचनाकारों को भी शामिल किया जाये और कुछ बाहर के भी शामिल हों लेकिन हो नहीं सका. तीसरा काम मैं करना चाहता था, हिन्दी को रोजगार की भाषा नहीं मानते हैं, मैं न्यूयार्क में गया वहां के विभागाध्यक्ष से बात की. बहुत लोग ऐसे है जो अंग्रेजी से एम.ए. किये बिगड़ गया तो उन्होंने हिन्दी से एम.ए. किया और पी.एच.डी की और यहां आकर पढ़ाने लगे. ऐसे लोगों को हैण्डसम रेमुनेरेशन देकर 3-3 वर्षो के लिए बुलाते तो हिन्दी रोजगार की भाषा बनती वो मैं नहीं कर पाया.
सवाल- लघु पत्रिकाओं को किस नजर से देखते हैं?
जवाब- लघु पत्रिकायें बहुत जरूरी तो है क्योंकि जो आंचलिक प्रयोग छोटी-छोटी जगहों पर किये जा रहे हैं वो यहां तक नहीं पहुंच पाते है. जो पहुंचने चाहिये. किस्सों में ही सही. आजकल मैं देखता हूं बिहार में छोटे-छोटे गांवो से पत्रिकायें निकल रही है, जहां तक मेरा ख्याल है तो बिहार में सबसे ज्यादा लघु पत्रिकायें निकल रही है. थोड़े ही लोग हैं और वो भी खुद को प्रकाशित करते हैं तो कुछ तो दायरा है उनका, कुछ तो क्षेत्र है जहां तक वो पहुंच रहे हैं.
सवाल- गुफ़्तगू पर आपकी क्या राय है?
जवाब- गुफ्तगू बहुत अच्छी पत्रिका है. इसमें हमको चतुर्दिक दर्शन होते हैं. सृजन के भी इन्टरव्यू के भी, कवितायें भी निकालते है और साथ ही एक व्यक्ति पर विशेषांक निकालते हैं तो एक सामूहिक रूप में उजागर होता है ‘सृजन’.
सवाल- नये लिखने वालों को क्या सन्देश देना चाहेंगें?
जवाब- सबसे पहले तो नवलेखकों को खूब पढ़ना चाहिये, जरुरी नहीं है कि आप नई कविता लिखेतभी नई कविता पढ़े सब कुछ पढ़ना चाहिये और आपको रास्तें मिलेंगे कि अपनी बात को लोगों ने कैसे कहा है. ये देखेंगे तो आपको अपना एक रास्ता भी मिलेगा, जिससे आप अपना विकास कर सकेंगे, खूब पढि़ये और लिखिये उसमें से छटा हुआ प्रकाशित कराइये, इससे बहुत लाभ होगा हिन्दी कविता का ऐसा मेरा ख्याल है.
गुफ्तगू के मार्च-2013 अंक में प्रकाशित
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