इलाहाबाद। होली नजदीक आते ही हर तरफ माहौल रंगीन नजर आने लगा है, इसे देखते हुए साहित्यिक पत्रिका ‘गुफ्तगू’ ने कवि सम्मेलन और मुशायरे का आयोजन करैली स्थित अदब घर में 24 मार्च को किया। अध्यक्षता वरिष्ठ कवि अजामिल ने किया, मुख्य अतिथि सागर होशियापुरी और विशिष्ट अतिथि बुद्धिसेन शर्मा थे। संचालन इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने किया।
अजय कुमार -
ये भारतवर्ष है इसकी तरक्की के तो क्या कहने,
कमीशन आज पंडित से यहां जजमान लेते हैं।
ये भारतवर्ष है इसकी तरक्की के तो क्या कहने,
कमीशन आज पंडित से यहां जजमान लेते हैं।
इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी-
बात सदियों की सिमटी तो पल हो गयी।
बात सदियों की सिमटी तो पल हो गयी।
उनसे नज़रें मिलीं और ग़ज़ल हो गयी।
वीनस केसरी -
एक दिन पव्वा पिला, वो रहनुमा हो जाएगा
चार दिन अध्धी पिला दे तो खुदा हो जाएगा
उसकी आंखों में नशा है उसकी बातों में नशा
नालियां कहती हैं वो इक दिन मेरा हो जाएगा।
एक दिन पव्वा पिला, वो रहनुमा हो जाएगा
चार दिन अध्धी पिला दे तो खुदा हो जाएगा
उसकी आंखों में नशा है उसकी बातों में नशा
नालियां कहती हैं वो इक दिन मेरा हो जाएगा।
पीयूष मिश्र-
अब क्या तुमका बतलाउं मैं आंखें नम हो जाती हैं
रामकृष्ण की इस धरती से पापों की बू आती है।
नादानी में भूले ‘पीयूष’ जिसने तुम्हें बनाया है
जिसके हाथों में देखो तो सारे घर की चाबी है।
अब क्या तुमका बतलाउं मैं आंखें नम हो जाती हैं
रामकृष्ण की इस धरती से पापों की बू आती है।
नादानी में भूले ‘पीयूष’ जिसने तुम्हें बनाया है
जिसके हाथों में देखो तो सारे घर की चाबी है।
रमेश नाचीज़-
कैसा-कैसा फ़जऱ् निभाना पड़ा मुझे
विष का प्याला भी पी जाना पड़ा मुझे
प्रेम का धागा टूट गया अंजाने में
फिर क्या करता गंाठ लगाना पड़ा मुझे।
कैसा-कैसा फ़जऱ् निभाना पड़ा मुझे
विष का प्याला भी पी जाना पड़ा मुझे
प्रेम का धागा टूट गया अंजाने में
फिर क्या करता गंाठ लगाना पड़ा मुझे।
शैलेंद्र जय-
ख़्वाबों से ही कुछ राहत होती है
जि़न्दगी तो पल-पल आहत होती है
चाहता हूं मैं मुस्कुराना मगर
ख़्वाबों से ही कुछ राहत होती है
जि़न्दगी तो पल-पल आहत होती है
चाहता हूं मैं मुस्कुराना मगर
गमों की भी एक विरासत होती है।
चांद जाफरपुरी-
हुनर ऐसा है ऐ हमदम तेरी चढ़ती जवानी का
लगा दे आग ये पल में तलातुमख़ेेज पानी में
तुझे जब देखता हूं यूं उमड़ती है तमन्नाएं
बड़ी हलचल सी होती है बदन की राजधानी में।
हुनर ऐसा है ऐ हमदम तेरी चढ़ती जवानी का
लगा दे आग ये पल में तलातुमख़ेेज पानी में
तुझे जब देखता हूं यूं उमड़ती है तमन्नाएं
बड़ी हलचल सी होती है बदन की राजधानी में।
जफर सईद जिलानी-
अपने किरदार अगर तुम ने संवारे होते
दिन बुर इतने कभी फिर न तुम्हारे होते
हौसले उसके जवां हो नहीं सकते थे ‘जफर’
गरचे क़ातिल को तुम्हारे न इशारे होते।
अपने किरदार अगर तुम ने संवारे होते
दिन बुर इतने कभी फिर न तुम्हारे होते
हौसले उसके जवां हो नहीं सकते थे ‘जफर’
गरचे क़ातिल को तुम्हारे न इशारे होते।
आसमा हुसैन-
होली के मौके पर खुशियों से झोली भर लेना
होली के मौके पर खुशियों से झोली भर लेना
गुझिया खाते याद हमें भी कर लेना
हुमा अक्सीर-
क्यों भला वक़्त के हाथों से गंवाया जाए
क्यों भला वक़्त के हाथों से गंवाया जाए
आज होली है ता होली को मनाया जाए
सौरभ पांडेय -
कचनार से लिपटकर महुआ हुआ गुलाबी
फिर रात से सहर तक मौसम रहा गुलाबी
करने लगीं छतों पर कानाफुसी निगाहें
कचनार से लिपटकर महुआ हुआ गुलाबी
फिर रात से सहर तक मौसम रहा गुलाबी
करने लगीं छतों पर कानाफुसी निगाहें
कुछ नाम बुदबुदाकर फागुन हुआ गुलाबी
शादमा बानो शाद-
मैं वर्तमान हूं इस कलयुग का
मैं वर्तमान हूं इस कलयुग का
अपने इस भारत महान का
सबा ख़ान -
कुछ रमक आफताब से कम है, मेरी शोहरत जनाब से कम है।
वो निगाहों से बात करते हैं, क्या ये नश्शा शराब से कम है।
कुछ रमक आफताब से कम है, मेरी शोहरत जनाब से कम है।
वो निगाहों से बात करते हैं, क्या ये नश्शा शराब से कम है।
शकील ग़ाज़ीपुरी-
उस की सब बेवफाइयों को ‘शकील’
उस की सब बेवफाइयों को ‘शकील’
खुबियों में शुमार करते हैं।
विपिन श्रीवास्तव-
परवीन मैं डीएसपी जि़याउल हक़ बोल रहा हूं
परवीन मैं डीएसपी जि़याउल हक़ बोल रहा हूं
मैं साजि़श में फंसाकर मारा जा रहा हूं।
शादमा जै़दी शाद-
फागुन बनके आ गये देखो केसरिया कचनार
बिन अबीर के हो गया गोरा मुख कचनार
चलती फिरती वाटिका लगे बसंती नार
फागुन बनके आ गये देखो केसरिया कचनार
बिन अबीर के हो गया गोरा मुख कचनार
चलती फिरती वाटिका लगे बसंती नार
सजन होली में
शाहीन-
होली में साजन की होली
ऐसह होली कभी न खेेली
चली सासरे जब मेरी डोली
होली में साजन की होली
ऐसह होली कभी न खेेली
चली सासरे जब मेरी डोली
सबने मारी पिचकारी
राजेश कुमार-
दर्द शीशे में जब जड़ा होगा, उसने तब आईना गढ़ा होगा।
सिर्फ़ रफ्तार कुछ नहीं होती, वक़्त का फैसला बड़ा होगा।
दर्द शीशे में जब जड़ा होगा, उसने तब आईना गढ़ा होगा।
सिर्फ़ रफ्तार कुछ नहीं होती, वक़्त का फैसला बड़ा होगा।
अजीत शर्मा ‘आकाश’-
हर नौजवान बूढ़ा और बच्चा पुकारे,
हर नौजवान बूढ़ा और बच्चा पुकारे,
हम साथ हैं संघर्ष करो अन्ना हजारे।
शाहिद अली शाहिद -
शहर गया था शहर से आया
सच्चाई की हार देखकर, हाथों में हथियार देखकर
मतलब के सब यार देखकर, खादी का भंडार देखकर।
शहर गया था शहर से आया
सच्चाई की हार देखकर, हाथों में हथियार देखकर
मतलब के सब यार देखकर, खादी का भंडार देखकर।
तलब जौनपुरी-
नहीं इब्तिदा है नहीं इन्तिहा है,
नहीं इब्तिदा है नहीं इन्तिहा है,
ये दुनिया रवानी का इक सिलसिला है।
सागर होशियारपुरी-
दरख़्त धूप को साये में ढाल देता है,
दरख़्त धूप को साये में ढाल देता है,
गुरूर शम्स का गोया निकाल देता है।
बुद्धिसेन शर्मा-
मछली कीचड़ में फंसी सोचे या अल्लाह
मछली कीचड़ में फंसी सोचे या अल्लाह
आखिर कैसे पी गये दरिया को मल्लाह।
अजामिल व्यास-
दरवाजे खोलो, और दूर तक देखो
खुली हवा में, मर्दों की इस तानाशाही दुनिया में
औरतें जहां भी हैं, जैसी भी हैं
पूरी शिद्दत के साथ मौजूद हैं
दरवाजे खोलो, और दूर तक देखो
खुली हवा में, मर्दों की इस तानाशाही दुनिया में
औरतें जहां भी हैं, जैसी भी हैं
पूरी शिद्दत के साथ मौजूद हैं
वो हमारे बीच
2 टिप्पणियाँ:
होली की महिमा न्यारी
सब पर की है रंगदारी
खट्टे मीठे रिश्तों में
मारी रंग भरी पिचकारी
होली की शुभकामनायें
Holi me sabhi rang aapke badan par rang jaye...holi ki subh kamnaye...
एक टिप्पणी भेजें