- जयकृष्ण राय तुषार
गुफ़्तगू का शाब्दिक अर्थ होता है बातचीत निश्चित रूप से यह पत्रिका आम जन या अपने पाठकों से बखूबी संवाद करती रही है। यह संवाद विगत दस वर्षों से सहजता
से जारी है। अभी हाल में गजल के
व्याकरण पर एक अतिरिक्तांक निकालकर यह पत्रिका चर्चा में है। यह किसी
सम्पादक की दूरदर्शिता का स्पस्ट प्रमाण है कि आज जिस तरह हिंदी में गजल
लेखन या कहन की परम्परा बढ़ रही है उस दृष्टि से यह अंक बहुत उपयोगी है, अब
उस्ताद परम्परा गायब होती जा रही है ऐसे में स्वयंभू कवि शायर ग़ज़लें तो
कह रहे हैं लेकिन उनमें व्याकरण के अनेक दोष मिलते हैं। अगर इस अतिरिक्तांक
को पढ़ लिया जाये तो काफी हद तक व्याकरण के दोष से बचा जा सकता है। इस
पत्रिका में मुख्य विन्दु हैं ग़ज़ल लेखन का इतिहास और परम्परा, गजल लेखन
की जानकारी ,बह्र विज्ञान, इल्मे काफिया, ग़ज़ल के विभिन्न पहलुओं को
रेखांकित करते आलेख संपादकीय के अतिरिक्त इसमें प्रोफेसर अली अहमद फातमी
,एहतराम इस्लाम ,मुनव्वर राना ,उपेन्द्रनाथ अश्क ,नक्श इलाहाबादी, अशोक
रावत ,श्याम सखा श्याम, वीनस केसरी, आर० पी० शर्मा ‘महर्षि’, आसी पुरनवी,
रमेश प्रसून आदि के सहज और पठनीय आलेख हैं। छन्दशास्त्र चाहे गीत का हो या
ग़ज़ल का इसे जाने बिना बेहतरीन शायरी या गीत का सृजन नहीं हो सकता, यह अलग
बात है कि केवल व्याकरण जान लेने से भी अच्छा रचनाकार नहीं बना जा सकता
लेकिन जो किसी महल की नींव का महत्व है वही महत्व शायरी में व्याकरण का है।
नींव मजबूत होने पर यह आपके हुनर पर निर्भर करता है कि आप महल के अन्य
हिस्सों को कितना खुबसूरत बना सकते हैं।
गुफ़्तगू के अब तक लगभग 29 विशेषांक सफलतापूर्वक निकल चुके हैं। कैलाश गौतम और बेकल उत्साही के विशेषांक काफी चर्चित रहे थे। इस पत्रिका की शुरुआत बिना किसी दावे के बिना किसी बड़े उद्देश्य के एक दुबले-पतले नौजवान इम्तियाज गाजी ने सन 2000 जून में की थी तब यह पत्रिका छः मासिक थी और दो अंकों के प्रकाशन के बाद यह त्रैमासिक हो गयी जो आज तक जारी है। बहुत कम मूल्य पर उपलब्ध यह पत्रिका देश की सरहदों के बाहर भी अपनी पहुँच रखती है। अपने मुल्क के कई नामचीन शायरों कवियों और आलोचकों तक इसे पहुंचा देना सम्पादकीय हुनर की एक उम्दा मिसाल है। इस लघु पत्रिका का विगत दस वर्षों से लगातार प्रकाशित होना बहुत बड़ी उपलब्धि है। मीर ,गालिब ,दुष्यंत के साथ इसमें नवोदित शायरों कवियों की भी जगह सुरक्षित रहती है। यही इसकी सफलता का राज है। गुफ्तगू साहित्य का काम दिलों को जोड़ना भी होता है आज जब लघु पत्रिकाएं असमय काल के गाल में विलीन हो रही हैं तब यह पत्रिका खिलाफ हवा में निरंतर गतिमान है शक्तिमान की तरह शीघ्र ही हमारे बीच ‘उर्दू ग़ज़ल विशेषांक’ होगा जिसका अतिथि सम्पादन प्रो० अली अहमद फातमी ने किया है।
पत्रिका -गुफ्तगू अतिरिक्तांक
अतिथि संपादक-इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी
----------
112 पेज वाले इस अतिरिक्तांक का मूल्य 50 रुपए है। मनीआर्डर भेजकर या सीधे ‘गुफ्तगू’ के एकाउंट में पैसा जमाकर यह मंगाया जा सकता है। रजिस्टर्ड डाक अथवा कोरियर से मंगवाने के लिए 25 रुपए अतिरिक्त जोड़ें।
संपादक- गुफ्तगू
123ए-1, हरवारा, धूमनगंज, इलाहाबाद-211011
मोबाइल नंबर: 9889316790, 9335162091
गुफ्तगू का एकाउंट डिटेल इस प्रकार है- एकाउंट नेम- गुफ्तगू
एकाउंट नंबर:538701010200050
यूनियन बैंक आफ इंडिया, प्रीतमनगर, इलाहाबाद
IFSC CODE - UBINO553875
गुफ़्तगू के अब तक लगभग 29 विशेषांक सफलतापूर्वक निकल चुके हैं। कैलाश गौतम और बेकल उत्साही के विशेषांक काफी चर्चित रहे थे। इस पत्रिका की शुरुआत बिना किसी दावे के बिना किसी बड़े उद्देश्य के एक दुबले-पतले नौजवान इम्तियाज गाजी ने सन 2000 जून में की थी तब यह पत्रिका छः मासिक थी और दो अंकों के प्रकाशन के बाद यह त्रैमासिक हो गयी जो आज तक जारी है। बहुत कम मूल्य पर उपलब्ध यह पत्रिका देश की सरहदों के बाहर भी अपनी पहुँच रखती है। अपने मुल्क के कई नामचीन शायरों कवियों और आलोचकों तक इसे पहुंचा देना सम्पादकीय हुनर की एक उम्दा मिसाल है। इस लघु पत्रिका का विगत दस वर्षों से लगातार प्रकाशित होना बहुत बड़ी उपलब्धि है। मीर ,गालिब ,दुष्यंत के साथ इसमें नवोदित शायरों कवियों की भी जगह सुरक्षित रहती है। यही इसकी सफलता का राज है। गुफ्तगू साहित्य का काम दिलों को जोड़ना भी होता है आज जब लघु पत्रिकाएं असमय काल के गाल में विलीन हो रही हैं तब यह पत्रिका खिलाफ हवा में निरंतर गतिमान है शक्तिमान की तरह शीघ्र ही हमारे बीच ‘उर्दू ग़ज़ल विशेषांक’ होगा जिसका अतिथि सम्पादन प्रो० अली अहमद फातमी ने किया है।
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