सोमवार, 11 जून 2012

‘गुफ्तगू’ ने आयोजित की काव्य गोष्ठी


गुफ्तगूकी तत्वावधान में करैली, इलाहाबाद स्थित 'अदब घर' में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ शायर एहतराम इस्लाम द्वारा की गई, तथा मुख्य अतिथि तलब जौनपुरी थे। संचालन इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने किया। इस अवसर पर गुफ्तगू के तकनीकी व्यवस्थापक वीनस केसरी के द्वारा घोषणा की गई की अब से हर महीने के दूसरे शनिवार को 'गुफ्तगू' की और से 'अदब घर' में काव्य गोष्ठी आयोजित की जाएगी, जिसका सभी शायरों तथा कवियों ने खुले दिल से स्वागत किया तथा गुफ्तगू के इस शुरुआत की सराहना की

कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए नवोदित कवि अजय कुमार ने हरिवंश राय बच्चन की कृति मधुशाला को समर्पित कविता पढ़ी-

कृष्ण काल की सुरमय भीतर रखती मधुशाला
कर लेता आकर्षित सबको मुरली के जैसा प्याला।

मधुशाला है कृष्ण यहां पर, प्याला है मुरली जैसे,
राधा का किरदार निभाताा, इस युग में पीने वाला।
 



खुर्शीद हसन ने कहा-

गर्मी से बिलखता है हर एक बशर भाई,
राह में लगा देना तुम एक शजर भाई।

 


डाॅ. नईम साहिलने कहा-

बदल दी शक्लो-सूरत आंधियों ने,
मकां सारे पुराने लग रहे हैं।

हालात ऐसे होंगे ये सोचा न था कभी,
होगा मज़े में आइना पत्थर के साथ।

कवि सौरभ पांडेय ने अपनी कविताओं में गांव का चित्रण किया-

सरकारिया बयान सुधर गांव-गांव है
बरबादियों का दौर मगर गांव-गांव है।

जिन कुछ सवाल से सदा बचते रहे थे तुम
हर वो सवाल आज मुखर गांव-गांव है।

 



वीनस केसरी की ग़ज़ल ने सभी का प्रभावित किया-

एक रानी ने गढ़ा गुड्डे का इक किरदार है।
और गुड्डा भी तो बस चाभी भरो तैयार है।

बढ़ती महंगाई के मुद्दे पर बहस की आड़ में,
काले धन पर मौन हर इक पक्ष को स्वीकार है।


 अजीत शर्मा आकाशने अच्छी ग़ज़ल सुनाई-

एक तिनके का सहारा चाहता है,
और क्या गर्दिश का मारा चाहता है।

नोच खाएगा उसे जिसको कहोगे,
पालतू कुत्ता इशारा चाहता है।


संचालन कर रहे इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी की ग़ज़ल काफी सराही गई-

रस्मे उल्फ़त अदा कीजिए,
आप मुझसे मिला कीजिए।

गर सलीक़ा नहीं इश्क़ का,
बस ग़ज़ल पढ़ लिया कीजिए।

प्यार करते हैं गर आप भी,
एसएमएस कर दिया कीजिए।




सलाह ग़ाज़ीपुरी ने कहा-

नुमाइश जिस तरह अब हो रही है सारी दुनिया में,
खुली सड़कों पे यह आवारगी देखी नहीं जाती।

मुझे वह मुफलिसी के दिन कभी जो याद आते हैं,
किसी घर की भी मुझसे मुफलिसी देखी नहीं जाती।


युवा कवि शैलेंद्र जय की कविताओं ने काफी प्रभावित किया-

त्योंरियां चढ़ाना भी फैशन हो गया।
कितना यांत्रिक मानव जीवन हो गया,

मुस्कुराता है नफा-नुकसान देखकर
आदमी भी आज एक विज्ञापन हो गया।



फरहार बनारसी ने ग़ज़ल पढ़ी-

दुश्मनों की बात क्या थी सारे अपनों ने मुझे
ज़ह्र का प्याला पिलाया, बात जब सच्ची कही।


फरमूद इलाहाबादी की ग़ज़ल को लोगों ने काफी पंसद किया-

किसी तरह नहीं ममता से कमतर बाप का साया,
सभी हाथों के साए से हैं बेहतर बाप का साया।आसिफ ग़ाज़ीपुरी ने कहा-

फूल खिलने भी न पाये थे के मौसम बदला,
लग गयी आग गुलिस्तां में बहारों के करीब

आपकी बज़्म से उठकर मैं चला आया था,
क्या सबब इसका था के आपने पूछा भी नहीं।

शाहिद इलाहाबाद ने कहा-

अब सोचता हूं ईंट का पत्थर से दूं जवाब,
लेकिन रसूले पाक को क्या मुंह दिखाउंगा।

शायर अख़्तर अज़ीज ने तरंन्नुम में ग़ज़ल सुनाकर खूब वाहवाही बटोरी-

छबी चिनगारियां कम कर रहे हैं।
कि हम शोलों को शबनम कर रहे हैं।

खुशी उस शख़्स को क्यों मिल रही है,
इसी इक बात का ग़म कर रहे हैं।


मुख्य अतिथि तलब जौनपुरी ने कहा-

माहौल का अजीब सा तेवर है आजकल।
गुमराहियों में मुब्तिला घर-घर है आजकल।

ज़ालिम ने मेरे सर पे ज़रा हाथ क्या रखा,
रुतबा मेरा जहान से उपर है आजकल।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे एहतराम इस्लाम की ग़ज़ल को खूब दाद मिली-
वार्ताएं, योजनाएं, घोषणाएं फैसले
इतने पत्थर और तन्हा आइना निष्कर्ष का।
 



1 टिप्पणियाँ:

Saurabh ने कहा…

कुछ पल रोशनाई हुआ करते हैं. अहसास की कलम से निकलते हैं और बस जम जाते हैं. ऐसे तमाम चाहे-अनचाहे थक्के-थक्के पलों का कुल जमा ज़िन्दग़ी होती है. उस रोज़ हम एक ज़िन्दग़ी जी आये. अल्लाह, ज़िन्दग़ी उस रोज़ भी अपने हिसाब में लगी थी.

-सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)

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