शनिवार, 5 मार्च 2011

किशन स्वरूप के अशआर

किशन स्वरूप हिंदी गज़ल की दुनिया में किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। अबतक ग़ज़लों की उनकी १८ किताबें छप चुकीं हैं। ३० दिसम्बर १९४२ को अलीगढ में श्री स्वरूप ने बीएससी की डिग्री हासिल की है। कई संस्थाओं ने अबतक उनकी साहित्यिक सेवा के लिए उन्हें सम्मानित किया है। गुफ्तगू ने उनके ऊपर विशेष अंक भी प्रकाशित किया था, जिसकी खूब चर्चा हुई। वे 108/3 मंगल पांडे नगर, मेरठ में रहते हैं। उनका मोबाइल नंबर ९८३७००३२१६ है। उन्हें अपनी शायरी में माँ को प्रमुख विषय बनाया है। प्रस्तुत है उनके ऐसे ही अशआर।



कांपते हाथों से अम्मा जो दुआ देती है।

मेरे मालिक तेरे होने का पता देती है।


ऐ खुदा मुझको मेरी माँ से जुदा मत करना,

वो मुझे तेरी इबादत का सिला देती है।


माँ ने क्यों कर याद किया,

शायद छप्पर टूटा है।


माँ के आँचल में आंसूं का गीलापन,

इस पानी का क़र्ज़ चुकाना मुश्किल है।


मुझे माँ ने कहा था, माँ, बहन,बेटी, बहुनारी,

यही वैसारिवायाँ अपनी इन्हें अबला नहीं समझो।


गलत कहूँ तो डांटा कर,

माँ को ये समझाता हूँ।


वृद्ध आश्रम तलाशा माँ के लिए,

माँ परेशान हो तो अलग बात है।


मुसीबत में खुदा भी याद आता है मगर यारों,

अचानक याद करती है तो माँ ही याद करती है।


माँ से जब दूर हुआ,

छूता एक ज़माना है।


दवाएं बेअसर हों तो दुआएं काम आती हैं,

मुझे माँ की दुआएं हैं अगर तो क्यों दावा सोचूं।


माँ यही कहती रही बेटा सच बोलना,

और ये हालात कहते हैं कि तू ऐसा न कर।


नजदीकी माँ से है और खुदा से है,

दर्द-दाह में केवल उनका नाम लिया।


माँ ने कहा था गाव को जाना न छोड़कर,

निकला जो एक बार, न लौटा तमाम उम्र.


माँ उदास है इसलिए,

कल बेटे कि बारी है.


माँ के आँचल में बहुत ममता मुहब्बत है तो है,

खून के रिश्तों से उम्मीदों का ये मौसम नहीं.


हँसती रही तंगी में भी खुधियाँ ही लुटाकर,

माँ कि जो मोहब्बत है बसा नूर बहुत है।

मुझे माँ ने सिखाया है,सही क्या है गलत क्या है,

मगर इस दौर में ये मशवरा अच्छा नहीं लगता।

माँ कभी कभी भी याद करती है गए दीन कि व्यथा,

पांच बेटे हाय मेरी गोद सुनी कर गए।

माँ कभी आकर मुझे पुचकार भी तो ले,

ख्वाब में ही आ कभी, फ़रियाद करते हैं।

बच्चे ने एक गेंद चुरा ली दूकान से,

माँ ने उसे दुलार कर अच्छा नहीं किया।

कितना झूठ कहा,सच कितना समझ गई,

चेहरा देखा सब कुछ अम्मा समझ गई।

इन दुआओं में माँ है कहीं,

हम जो गिरकर सम्भलने लगे।

माँ से मुद्दत बाद मिला,

सोचा तीरथ कर आये।

कब मुझको क्या हुई ज़रूरत बिन पूछे बतला देगी,

उसको ठंड लगे मेरी माँ चादर मुझे उढ़ा देगी।

न जाने माँ मुझे अक्सर तुम्हारी याद आती है,

तलब करती रही फटकार कुछ शैतानियत मेरी।

भाई बहन पिता महतारी संबंधों की छांव घनी,

केवल माँ थी जिसने जीवन भर आँचल का प्यार दिया।

तेरी रहमत तो है वो दर-ब-दर भी नहीं,

पर दुआ माँ की कभी होगी बे-असर भी नहीं।

जो बुलाती रात को परियां कई,

माँ सुनाती थी कहानी दे मुझे।

आँखों में पढ़ लेती है हालात सभी,

मेरी अम्मा बाखबर होती है।

दूध नहाओ,पुट फलो माँ कहती थी,

माँ की तो हर दुआ बा-असर होती है।

मैं हादसे से बचा हूँ तो इसे क्या समझूँ,

अपनी किस्मत है कि अम्मा कि दुआ समझूँ।

पिताजी मारते तो थे मगर वो प्यार भी करते,

पीटें या पीटकर आयें ये माँ से कह तो लेते थे।

कभी जब ठंड लगती है कभी नहीं उससे,

मैं माँ के पास जा आँचल का कोना ओढ़ लेता हूँ।

माँ-बाप दोनों को साथ रखें कैसे,

दोनों भाई मिलकर बंटवारा कर लें।

माँ जब तक थी गांव अगों सा लगता था,

कितने दीन से आना जाना भूल गए।

माँ जहाँ है वहाँ तो घर भी है,

कौन घर छोड़कर मकाँ लेगा।

मेरे सपने माँ ने पूरे किये मगर,

अमा के भी कुछ सपने हैं, सोचा क्या।

तू नहीं है पर यही लगता है तू है माँ,

काम कोई भी गलत करता नहीं डर से।

उसने मेरी गलतियों पर जब कभी डांटा मुझे,

फख्र है माँ आज तेरी बेरुखी, अच्छी लगी।

देख चेहरे पर पसीना और माथे पर शिकन,

माँ परीशां सी लगी और उसका मुस्काना गया।

मुझ से काश रूठती अम्मा,

मैं भी उसे मनाना सीखूं।

माँ से यही गुजारिश है,

मेरे सर पर हाथ रखे।

माँ गई तो साथ सब रिश्ते गए,

हर नया रिश्ता कभी आया, गया।

हमें माँ ने दिखाया था सही रस्ता कभी यारो,

मगर हम हैं वही गाहे-बगाहे भूल जाते हैं।

माँ कभी ज्यादा खफा होती तो अक्सर बोलती,

जिस घडी पैदा हुआ तू, वक्त कैसा था मुआ।

माँ अगर है तो खुदा खैर करे,

माँ नहीं तो खुदा ज़रुरी है।

खुदा है,सदा या है माँ साथ मेरे,

मुझे कोई सदमा डराता नहीं है.

माँ की मुहब्बतों का सिला ये दिया स्वरूप.

उसको अकेला छोड़ दिया अजनबी के साथ.

याद करता हूँ गए दीन की व्यथाएँ,

माँ तुम्हारी याद ने बस चश्मेतर पैदा किया.

हमें माँ ने सिखाया है हमेशा प्यार से रहना,

मगर ता-उम्र खोजा वो खजाना मिल नहीं पाया.

उसके पास फकीरों वाली झोली है सौगात भरी,

माँ के पाँव छुए जो कोई, लाखों लाख दुआ देगी.

माँ ने सारी उम्र गुजारी माटी सोना करने में,

हमने दो गज लत्ता लेकर सारा क़र्ज़ उतार दिया.

भाइयों के बीच जिम्मेदारियां बांटी गयीं,

माँ किसी के साथ में, बापू किसी के साथ में.

माँ की दुआ है या करम परवरदिगार का,

तंगी मिली तो साथ कई मेहरबां मिले.





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