सोमवार, 3 फ़रवरी 2025

   निरंतर संघर्ष करते रहे गुलाम रब्बानी 

                                                                 -  सरवत महमूद खान 

  आज़ादी की आंदोलन के दौरान जब मुस्लिम लीग ग़ाज़ीपुर में अपने पूरे वर्चस्व में था, तब गुलाम रब्बानी अब्बासी ने कशंग्रेस का दामन थामा और आंजादी के आंदोलन में सक्रिय हो गए। गांधी टोपी पहनने के कारण ही वर्ष 1938 में इन्हें जेल भेज दिया गया। इसके बाद 1940 में गोंडा जेल में और 1941-42 में लखनऊ जेल में बन्द किए गए थे। जब वह लखनऊ जेल में बन्द थे, तभी मुस्लिम लीगी कार्यकर्ताओं ने यह अफवाह उड़ा दी कि रब्बानी साहब को गोली मार दी गई है। यह सदमा उनकी मां बर्दाश्त न कर सकीं और उनका इंतिकाल हो गया। मां के मरने के बाद मुस्लिम लीग के लोग जनाजे में शामिल नहीं हुए। मुस्लिम लीग ं के कट्टर विरोध के कारण कभी-कभी इनको आर्थिक एवं शारीरिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता था। एक बार लीग के लोगों द्वारा इन्हे ट्रेन से बाहर फेंकने की साजिश की गई थी। लेकिन गुलाम रब्बानी अपने रास्ते पर अडिग रहकर देश की आज़ादी के लिए लड़ते रहे।


गुलाम रब्बानी 


 गुलाम रब्बानी अब्बासी का जन्म 31 मई 1914 को गाजीपुर के मुहम्माबाद युसुफपुर के साधारण परिवार में हुआ था। तब देश अंग्रेज़ों की गुलामी में जकड़ा हुआ था, इसे लेकर इनके गुलाम जिलानी अब्बासी आंदोलनरत थे। गुलाम जब बहुत छोटे थे, उसी वक़्त इनके पिता का देहांत हो गया। मां ने बड़े संयम और संघर्षपूर्ण हालात में इनका भरण-पोषण किया। तंगहाली की वजह से ही इनकी पढ़ाई कक्षा आठ तक ही पूरी हो पाई थी। कक्षा आठ  तक की पढ़ाइ मदरसा अंसारीया में हुई जहां आपके उस्ताद मौलाना मुहम्मद वकीअ ने इन्होंने तालीम हासिल की। इन्हीं की प्रेरणा से गुलाम रब्बानी मुस्लिम लीग के विरोध में उतरे और कांग्रेस के पक्के समर्थक हो गए। इस समय ग़ाज़ीपुर जिले में मुस्लिम लीग का वर्चस्व था।  रब्बानी साहब गांधी टोपी धारण करते थे, मुस्लिम लीगी कभी उनकी टोपी उछाल देते कभी कुर्ता फाड़ देते इसके अलावा भी उन्हे तरह-तरह के यातनाये लीग के द्वारा दी जाती, लेकिन रब्बानी साहब कभी भी वतन परस्ती से विचलित नही हुए और स्वतंत्रता आन्दोलन के मशाल को जलाये रखा।

 आर्थिक तंगी के कारण गुलाम रब्बानी अब्बासी को बीड़ी की दुकान खोलनी पड़ी। मुस्लिम लीग के लोगों नें इनकी बीड़ी की दुकान का ही बहिष्कार कर दिया। कई बार प्राण घातक हमले किए गए हुए। इनकी तंगी की ख़बर जब मौलाना हुसैन अहमद मदनी को मिली तो उन्होंने उनके घर छह रूपया प्रति माह मनीआर्डर भेजने लगे। आपका घनिष्ठतम संबंध फरीदुल हक अंसारी से था। उनके विचारों से प्रभावित होकर समाजवादी विचारधारा के करीब हो गये थे। जब भी राष्ट्रीय स्तर का कोई नेता युसुफपुर मुहम्माबाद आता उसके स्वागत में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते थे। सन् 1928 में ड़ॉ. मुख्तार अहमद अंसारी के निमंत्रण पर पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरोजनी नाइडू और मौलाना हुसैन अहमद मदनी मुहम्माबाद आये तो जनसभा के आयोजन की जिम्मेवारी फरीदुल हक अंसारी के साथ-साथ आपने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। सुभाष चंद्र बोस से आपकी अच्छी जान पहचान थी। फारवर्ड ब्लाक से भी संपर्क रहा।

स्वतंत्रता के बाद आपको दो बार मुहम्माबाद म्युनिसिपलीटी बोर्ड का चेयरमैन बनाया गया था। अपने जीवन के अन्तिम समय में अक्सर यह शेर पढा करते थे। 18 अगस्त 1990 को गुलाम रब्बानी अब्बासी का निधन हो गया।


( गुफ़्तगू के जनवरी-मार्च 2024 अंक में प्रकाशित )


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