रविवार, 29 जुलाई 2018

एसकेबीएम इंटर कालेज के संस्थापक डिप्टी सईद

डिप्टी सईद खान


                                          - मुहम्मद शहाबुद्दीन खान
                                            
ग़ाज़ीपुर जिले के दिलदानगर में स्थित एमकेबीएम इंटर कालेज के संस्थापक डिप्टी सईद खान ने कमासार के लोगों को शिक्षा से जोड़ने के लिए महत्वपूर्ण कार्य किया है। उनके प्रयास से ही आज इस कालेज में इलाके के बच्चे पढ़ते हैं, बच्चों को इंटरमीडिएट तक शिक्षा हासिल करने के लिए भटकना नहीं पड़ता। डिप्टी सईद का जन्म 1893 में उसिया गांव के दखिन-अधवार मुहल्ले में हुआ था, आपके वालिद का नाम सूबेदार आलमशाह खान था। आरंभिक शिक्षा के बाद सन् 1914-15 ई. में प्रेसीडेंसी कालेज से बीए ऑनर्स फस्र्ट क्लास में पास किया। इसके बाद डिप्टी बने थे। अपने इलाके लोगों को शिक्षा से जोड़ने की चिंता उन्हें सताती रही। यही वजह है कि उन्होंने कालेज की स्थापना की। इसके लिए उन्होंने क्षेत्र में घूम-घूम कर लोगों से चंदा मांगा। जिन लोगों से चंदा लिया, उनमें एक भिखारी भी शामिल है। भिखारी से चंदा लेने के बाद जो रसीद उन्होंने उसका दिया था, उस पर उन्होंने नोट लिखा है कि यह एक भिखारी से लिए गए चंदे की रसीद है। यह रसीद आज भी दिलदानगर गांव के दीनदार लाइबेरी में मौजूद है। 
डिप्टी सईद के बड़े कामों में से एक महत्वपूर्ण काम महात्मा गांधी की जमानत लेने का भी है। वे अपने इलाके लिए और भी कई काम करना चाहते थे। इसके लिए वह विधायक बनना चाहते थे। 1957 ई. में  उन्होंने कांग्रेस से चुनाव लड़ने के लिए टिकट लेनी चाही, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। फिर आजाद उम्मीदवार के रूप मे लड़े, चुनाव निशान ‘घोड़ा मय सवार’ मिला। लेकिन अपनों की ही बेरूखी की वजह से मामूली वोट से उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इस हार ग़म आजीवन उन्हें सताता रहा। वह हमेशा कहते रहे कि मेरे ही आंगन में मेरे घोड़े की टांग टूट गई, मुझे इन कमसारियों ने नहीं जीतने दिया। मुझे नहीं लगता कि अगले 50 सालों कोई कमसार का मुसलमान विधायक बन पाएगा। उनका अंदाज़ा बिल्कुल सही हुआ, अधिक तादाद में होने के बावजूद आजतक कोई मुस्लिम इस इलाके से विधायक नहीं बना पाया।
डिप्टी सईद ने अपने इलाके से ज़हेज जैसी कुप्रथा की रोकथाम के लिए एक समाजिक संगठन स्थापित किया गया था, जिसका नाम ‘अन्जुमन इस्लाह मुस्लिम राजपूत कमसार-व-बार फतहपुर दिलदारनगर’ रखा गया था। जिसके तहत सन् 1938 ई० मंे मुस्लिम राजपूत स्कूल वर्तमान में एसकेबीएम इण्टर कालेज दिलदारनगर की बुनियाद पड़ी थी। इस कॉलेज के आजीवन संस्थापक सद्र डिप्टी मुहम्मद सईद साहब रहे और मैनेजर मुहम्मद शमसुद्दीन खाँ साहब दिलदारनगरी व प्रिंसिपल मोइनुद्दीन हैदर खाँ मरहूमीन जैसी तीनों तिकड़ी शख्सियतों द्वारा कालेज की बुनियाद से इमारत तक खड़ी हुई थी और इन तीनों शख्सियतें अपनी-अपनी खून पसीने की मेहनत और कमाई से इस कालेज को उस मकाम तक पहुंचाया था। 10 फरवरी 1966 ई० को ‘पीएमसीएच’ हास्पिटल पटना में गालब्लेडर के ऑपरेशन के लिए भर्ती हुए और वहीं उनकी मौत हो गई। दुखद पहलू यह है कि उनकी मिट्टी में कमसार का कोई व्यक्ति शामिल न हो सका। उनके दोस्तों ने ही पटना में उन्हें दफना दिया, आज उनके कब्र का भी किसी को ठीक से पता नहीं है।
सन् 2012 ई० मे पटना में अपनी इंटरमीडिएट की पढ़ाई के दरम्यान मैंने (मुहम्मद शहाबुद्दीन खान) इनकी कब्र को लेकर महीनों खोजने का प्रयास किया। उस दरम्यान ‘पीएमसीएच’ हॉस्पिटल की सारी लवारिस डेड बॉडी ‘लवारिश मय्यत कमेटी’ सब्जीबाग पटना के नेतृत्व मंे पटना की सार्वजनिक कब्रिस्तान पटना जंक्शन के करीब ‘पीरमोहानी कब्रिस्तान’ में दफन की जाती थी, लेकिन उनकी हेड ऑफिस में पता करने पर उन दोनों जगहो की सन् 1966 ई. का सभी फाइल रेकॉर्ड नहीं मिले। 
(गुफ्तगू के जनवरी-मार्च: 2018 अंक में प्रकाशित )


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