शनिवार, 3 सितंबर 2016

गुलशन-ए-इलाहाबाद : अजीत पुष्कल

ajit pushkal

                                                                         
                                                 -इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी
अजीत पुष्कल जी वर्तमान समय में इलाहाबाद के सबसे अधिक बुजुर्गों में से एक हैं। 81 वर्ष की उम्र में भी बेहद सक्रिय हैं, आज भी साहित्य सृजन करते हुए विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में खूब छप रहे हैं, देश और समाज की भलाई के लिए चिंतित रहते हैं। आपका जन्म 08 मई 1935 को बांदा जिले के पैगंबरपुर गांव में हुआ। पिता देवी प्रसाद श्रीवास्तव गांव में ही खेती बाड़ी करते थे। अजीत पुष्कल ने प्रारंभिक शिक्षा गांव में पूरी करने के बाद आगरा विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ‘प्रेमचंद की शब्दावली’ पर शोध कार्य शुरू किया, लेकिन विभिन्न कारणों से यह शोध पूरा नहीं हो पाया। फिर कुछ इलाहाबाद के जुमना क्रिश्चिय कालेज में अध्यापक कार्य किया, इसके बाद सन 1961 में केपी इंटर कालेज में हिन्दी के अध्यापक के तौर कार्य शुरू किया, जहां से 1995 में सेवानिवृत हुए। कुछ दिन पहले ही आपकी पत्नी का देहांत हो गया। आपके एक पुत्र और एक पुत्री है। बेटा नई दिल्ली के मिनिस्टी आफ लॉ एंड जस्टिस में अधिकारी है। बेटी लखनउ में भारतेंदु नाट्य एकेडेमी कार्यरत है।
साहित्य के क्षेत्र में आप शुरू से ही सक्रिय रहे हैं। कविता, कहानी, लधुकथा, नाटक और एकांकी लिखते रहे हैं। छात्र जीवन से ही केदारनाथ अग्रवाल और नागुर्जन के संपर्क रहे हैं, उनके  साथ बहुत कुछ देखा और समाज के लिए कार्य किया है। प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़कर विभिन्न आंदोलनों के सहभागी रहे हैं, इलाहाबाद इकाई के अध्यक्ष रहने के अलावा 1980 में प्रलेस के उत्तर प्रदेश इकाई के महासचिव रहे हैं। इनके नेतृत्व में कई बार प्रलेस के ऐसे कार्यक्रम हुए हैं, जिनमें सरदार जाफ़री से लेकर मज़रूह सुल्तानपुरी तक आते रहे। आपके लिखे नाटकों का मंचन इलाहाबाद के अलावा लखनउ, नई दिल्ली, भोपाल, शाहजहांपुर, आजमगढ़ आदि जगहों पर समय-समय पर किया जाता रहा है। रेडियो का बहुचर्चित कार्यक्रम ‘हवा महल’ में आपके लिखे 50 से अधिक नाटकों का प्रसारण हो चुका है, अब भी समय-समय पर उन नाटकों का प्रसारण होता है। अब तक आपकी प्रकाशित पुस्तकों में काव्य संग्रह ‘पत्थर के बसंत’, तीन कहानी संग्रह ‘नई इमारत’, ‘नरकुंड की मछली’ और ‘जानवर जंगल और आदमी’ हैं। कई नाटकों ,एकांकी, कविताओं आदि का प्रकाशन धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, सारिका आदि पत्रिकाओं में हुआ है। इनके लिखे ‘चेहरे की तलाश’, ‘प्रजा इतिहास रचती है’, ‘भारतेंदु चरित्र’,‘जनविजय’, ‘घोड़ा घास नहीं खाता’ और ‘जल बिन जीयत पियासे’ आदि नाटक बेहद मक़बूल हुए हैं, इनका मंचन देश के अधिकर शहरों में समय-समय पर होता रहा है। ‘भारतेंदु चरित्र’ पर शोधकार्य भी हुआ, एनएसडी में इसका कई बार मंचन किया गया। ‘जनविजय’ नामक नाटक प्रकाशन भारतीय ज्ञानपीठ ने किया था। बुंदेलखंड ग्रामांचल पर आपने काफी काम किया है, इसकी पृष्ठभूमि में कई छोटे-छोटे नाटक और एंकाकी आपने लिखा है। इनमें ‘अनुबंधहीन’, ‘नई धरती के लोग’ और ‘किट्टी’ काफी मशहूर हुए हैं। फिल्म ‘नदिया के पार’ के निर्देशक गोविंद मौलिस इनके लिखे नाटक ‘किट्टी’ को पढ़ने के बाद इलाहाबाद आए थे, उन्होंने इस पर फिल्म बनाने की इच्छा जाहिर की और इनक सहमति से ‘किट्टी’ पर फिल्म बनाने के लिए काम शुरू कर दिया। लेकिन बाद में किसी व्यवधान के कारण फिल्म नहीं बन पाई।
अजीत पुष्कल आजकल इलाहाबाद के झूंसी में रहते हैं। पत्नी के देहांत और बच्चों के दूसरे शहरों में नौकरी करने की वजह से आजकल वृद्धावस्था में खुद ही भोजन बनाना पड़ता हैं, इसके बावजूद लेखन में बेहद सक्रिय हैं। आजकल कविता लेखन की ओर अधिक सक्रिय हैं।
( गुफ्तगू के जुलाई-सितंबर 2016 अंक में प्रकाशित)

2 टिप्पणियाँ:

Unknown ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (04-09-2016) को "आदमी बना रहा है मिसाइल" (चर्चा अंक-2455) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

adarsh ने कहा…

Nice...

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