बुधवार, 26 अक्तूबर 2011

पत्रकारिता फिर से कलेवर व तेवर की तरफ रुख करेगी-श्रीधर


पत्रकारिता अपने मानदंडों से गिरती जा रही है। पीत पत्रकारिता सामान्य बात हो गई है।आधुनिकता और बाजारीकरण ने आदर्श पत्रकारिता को बहुत पीछे छोड़ दिया है। राष्टृीय और अंतरराटृीय घटनाक्रमों पर पैनी नजर रखने वाले इलाहाबाद के वरिष्ठ पत्रकार पंडित श्रीधर द्विवेदी ने ‘गुफ्तगू’ से एक विशेष साक्षात्कार में आज की पत्रकारिता के संदर्भ में उक्त विचार व्यक्त किया। पिछले पांच दशकों से पत्रकारिता से जुड़े श्री द्विवेदी का कहना है कि समाचारपत्र निकालना अब मिशन नहीं रह गया,बल्कि पूरी तरह व्यापार हो गया है। जिसमें संपादक की हैसियत महज एक कठपुतली की रह गई है और मालिकान निजी हितों में उसकी प्रतिभा का शोषण और दोहन करने से बाज नहीं आते। उन्होंने कहा कि अखबार संपादकों के हाथ से निकलकर अब पूरी तरह से प्रबंधतंत्र के हाथ का खिलौना बन चुका है। प्रबंधतंत्र जैसे चाहता है वैसे अखबार को चलाता है। उनका मानना है कि अखबरों की भाषा भी अब बदल गई है। हिन्दी अखबारों में अंग्रेजी की मिलावट से आम आदमी को कठिनाई होती है और इससे भाषा भी प्रदूषित होती है। श्री द्विवेदी का कहना है कि अखबार अब वर्ग विशेष और क्षेत्र विशेष को ध्यान में रखकर प्रकाशित किए जाते हैं, इसमें अखबारों की सार्वभौमिकता पर भी प्रश्नचिन्ह लगता है। अब अखबारों की नौकरी के लिए योग्यता से ज्यादा संपर्कों और बाजार में पकड़ को महत्व दिया जाता है,यही कारण है कि अब अखबारों में प्रायः चाटुकारों की फौज ही दिखाई देती है, जिसके चलते अखबारों का स्तर गिरता चला जा रहा है। पत्रकारिता के भविष्य के संबंध में उनका कहना है कि अच्छे दिन नहीं रहे तो बुरे दिन भी नहीं रहेंगे। एक न एक दिन फिर से बदलाव का दौर शुरू होगा और पत्रकारिता फिर अपने कलेवर व तेवर की तरफ रुख करेगी। समाज को सबसे ज्यादा राजनीति प्रभावित करती है, राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार भी पत्रकारिता में मानदंडों को गिराने के लिए उत्तरदायी कारक है। श्री को उम्मीद है कि राजनीति में शुचिता एक न एक दिन जरूर आएगी और पत्रकारिता अपने पुराने मानदंडों को फिर से गौरवांवित करेगी। बहुमुखी प्रतिभा के धनी पंडित श्रीधर द्विवेदी का जीवन संघर्षों से भरा रहा है। कांटों के बीच राह बनाने वाले श्री द्विवेदी का जन्म 23 जुलाई 1936 को आजमगढ़ के एक सामान्य परिवार में हुआ था। बचपन में ही अभाव और कठिनाइयों ने उन्हें संघर्षशील बनाया और आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। पांचवीं तक गांव में पढ़ाई करने के बाद नेशनल इंटर कालेज आजमगढ़ से इंटर की परींक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की लेकिन आगे की पढ़ाई का मार्ग आर्थिक तंगी के कारण बंद हो गया। छह वर्षों तक कोलकाता में एक प्राइवेट कंपनी में काम किया लेकिन मन नहीं लगा तो वापस लखनउ आ गए। 1959 में लखनउ में आने के बाद त्रिपथगा पत्रिका में बतौर सहायक कार्य मिला तो रोजीरोटी के साथ ही साहित्य सेवा क गाड़ी चल निकली। काम के बाद ट्यूशन और फिर अपनी पढ़ाई। जीवन की यही दिनचर्या बन गई। न साइकिल न रिक्शे के पैसे। ऐसी स्थिति में पांव ही साइकिल बन गए और समय बचाने के लिए दौड़-दौड़ कर ट्यूशन पढ़ाने जाना शगल बन गया। स्नातक किया फिर हिन्दी और इतिहास से परास्नातक की डिग्री हासिल की। पत्रकारिता की नियमित शुरूआत 1965 में तरुण भारत से हुई। 1971 में स्वतंत्र भारत में नौकरी मिली। 1977 में ‘अमृत प्रभात’के प्रकाशन शुरू होने के साथ ही यहां काम शुरू किया, यहीं से 1996 में सेवामुक्त हुए। पत्रकारिता के उच्च मानदंडों को अपने जीवन में उतारने वाले श्री द्विवेदी की देश-विदेश राजनैतिक गतिविधियों पर हमेशा पैनी नजर रहती है। अमृत प्रभात,स्वतंत्र भारत, नार्दन इंडिया पत्रिका, युनाइटेड भारत, सहजसत्ता सहित अनेक दैनिक पाक्षिक और साप्ताहिक सामचार पत्रों में नियमित रूप से श्री द्विवेदी सम सामयिक घटना पर लिखे गए लेख तत्कालीन दृश्य के आइना होते हैं। देशांतर के रूप् में उनके लेखों की एक लंगी श्रंखला इतिहाल की धरोहर है। तथागत शिखावन महाकाव्य जीवन के विविध पक्षों पर एक हजार गीतों को संग्रह ‘भावना’, पांच लघु व्यंग्य नाटिकाओं का संग्रह ‘साक्षात्कार’ संपूर्ण नाटक समाजवाद व महार दीवारी और हिन्दी के अलावा घुंघरू के बोले, राही, समस्या,बानी पुत्र और दशरथ इनकी उत्कृष्ट रचनाओं में शामिल हैं।
विजय शंकर पांडेय

मोबाइल नंबरः 9305771175

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