रविवार, 2 नवंबर 2025

पाकिस्तान न जाओ...

                                                                    - असग़र वजाहत

                                    



मैं लघु उपन्यास ‘चहारदर’ को लिखने के सिलसिले में अमृतसर की अजनाला तहसील में घूम रहा था.। रावी के इधर भारत था और उधर पाकिस्तान। एक गांव से गुजरते हुए कुछ दूरी पर पेड़ों के पीछे मस्जिद की मीनार दिखाई  देने लगी. मुझे बड़ी हैरानी हुई क्योंकि मेरी जानकारी के अनुसार इस इलाके में अब कोई मुसलमान नहीं बचा था सब पाकिस्तान चले गए थे।

 गाड़ी मोड़ कर हम लोग मस्जिद तक पहुंचे। मस्जिद बहुत साफ सुथरी और रंगी पुती थी। मस्जिद के बराबर खेत में एक किसान काम कर रहा था। उससे पता चला कि अब उस गांव में कोई मुसलमान नहीं है, लेकिन मस्जिद है और गांव वाले उसे अपने गांव की मस्जिद मानते हैं इसलिए उसकी पूरी देखभाल और सफाई होती रहती है। मैंने उससे पूछा, क्या इस इलाके में अब कोई मुसलमान नहीं रहता? उसने जवाब दिया की एक मुस्लिम परिवार है जो पाकिस्तान नहीं गया और पास के ही गांव में रहता है।

हम लोग उस गांव पहुंच गए. पूछने पर पता चला कि उस आदमी का नाम युसूफ है। गांव की बाजार में एक सरदार जी ने कहा यूसुफ उनका दोस्त है। वे हमें यूसुफ के घर तक ले जा सकते हैं। युसूफ से बातचीत होने लगी. मैंने दीगर सवालों के बाद पूछा, जब पूरे इलाके के सभी मुसलमान पाकिस्तान जा रहे थे तो तुम्हारा परिवार क्यों नहीं गया ?. 

 यूसुफ ने जवाब दिया कि उसके अब्बा जी सांप काटने का मंत्र जानते थे। गांव में अगर किसी को सांप काटता था तो वही मंत्र पढ़ कर ज़हर उतारते थे। इसलिए विभाजन के  समय गांव वालों ने बहुत विनती  करके और सुरक्षा का पूरा भरोसा दिला कर उन्हें पाकिस्तान जाने से रोक लिया था।


( गुफ़्तगू के अप्रैल-जून 2025 अंक में प्रकाशित )