रविवार, 30 मार्च 2025

 इलाहाबाद की संस्कृति को सहेजने का साहसिक कार्य 

                                                                                -  अजीत शर्मा ‘आकाश’

                                  


   वर्तमान प्रयागराज के साहित्यिक एवं सांस्कृतिक इतिहास से पाठकों को परिचित कराने हेतु शायर एवं पत्रकार इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी की पुस्तक ‘21 वीं सदी के इलाहाबादी’ पाठकों के समक्ष गत वर्ष आ चुकी है। इस पुस्तक में साहित्य, खेल, पत्रकारिता, चिकित्सा, राजनीति, न्याय, रंगमंच, सिने कलाकार तथा व्यापार इत्यादि विभिन्न क्षेत्रों से सम्बन्धित प्रयागराज के उन 106 महत्वपूर्ण एवं उल्लेखनीय व्यक्तियों का विवरण प्रस्तुत किया गया है, जिन्होंने अपने कार्यों एवं उपलब्धियों के माध्यम से अपनी एवं इस शहर की एक अलग पहचान बनाई है। अब ‘21 वीं सदी के इलाहाबादी, भाग-2’ प्रकाशित हुआ है, जिसमें अन्य 126 विभूतियों को सम्मिलित किया गया है। इसके लिए भी वही प्रक्रिया अपनायी गयी, जिस प्रक्रिया से पुस्तक के पहले भाग में व्यक्तियों को सम्मिलित किया गया था। इस भाग में भी विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण कार्य करने वाले उल्लेखनीय व्यक्तियों का विवरण सम्मिलित है। प्रत्येक व्यक्ति का विवरण 2-2 पृष्ठों में दिया गया है, जिसके अन्तर्गत उनका सामान्य परिचय, जीवन-परिचय, शिक्षा-दीक्षा, किये गये उल्लेखनीय कार्य तथा सम्मान, पुरस्कार जैसी विशिष्ट उपलब्धियों का समावेश किया गया है। पुस्तक के इस भाग में सम्मिलित कुछ नाम इस प्रकार से हैं- साहित्य के क्षेत्र में- शिवमूर्ति सिंह, एम.ए.क़दीर, नय्यर आक़िल। पत्रकारिता के क्षेत्र में- डॉ. भगवान प्रसाद उपाध्याय, लईक़ रिज़वी, छत्रपति शिवाजी। चिकित्सा के क्षेत्र में- डॉ. आर.के.एस. चौहान, डॉ. ए.के. बंसल, डॉ. मोहम्मद फ़ारूक़़। व्यापार के क्षेत्र में- विदुप अग्रहरि। राजनीति के क्षेत्र में- विश्वनाथ प्रताप सिंह, जनेश्वर मिश्र, रविकिरण जैन, डॉ. रीता बहुगुणा जोशी। फ़ोटोग्राफ़ी- कमल किशोर ‘कमल’। न्याय के क्षेत्र में- न्यायमूर्ति अशोक कुमार, न्यायमूर्ति डॉ. गौतम चौधरी। चित्रकला,, संगीत एवं रंगमंच- डॉ. मधुरानी शुक्ला, प्रो. रेनू जौहरी, डॉ. सरोज ढींगरा, मनीष कपूर और खेल जगत में मोहम्मद रूस्तम ख़ान, परवेज़ मूनिस, मनीष जायसवाल, राजन निषाद, राजश्री मिश्रा, श्रद्धा चौरसिया। पुस्तक के अन्त में गुफ़्तगू परिवार के संरक्षकों तथा कार्यकारिणी सदस्यों का परिचय प्रदान किया गया है।


  इस पुस्तक में सम्मिलित इलाहाबाद के कालखण्ड विशेष के असाधारण कोटि के व्यक्तियों की उल्लेखनीय उपलब्धियों के माध्यम से इलाहाबाद शहर की ख्याति में श्रीवृद्धि हुई है। पुस्तक के प्रकाशन के फलस्वरूप यह प्रतीत होता है कि हमारे साहित्य, संस्कृति कला एवं विज्ञान की धरोहर को सहेजा गया है। इस पुस्तक के माध्यम से 21वीं सदी के इलाहाबाद के साहित्य, संस्कृति एवं सामाजिकता के विकास की अत्यन्त स्पष्ट झलक परिलक्षित होती है। अपनी अलग पहचान बनाने वाले इस प्रकार के व्यक्तित्व निश्चित रूप से पाठकों तथा अन्य लोगों के लिए प्रेरणा-स्रोत हो सकते हैं। इस प्रकार की पुस्तक का श्रम साध्य लेखन अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं विशिष्ट श्रेणी का कार्य कहा जाएगा। शोध कार्य के दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह कहा जा सकता है कि इलाहाबाद शहर के साहित्य, संस्कृति एवं कला पर शोध करने वालों के लिए यह पुस्तक मार्ग प्रदर्शक का कार्य कर सकने में सक्षम है। इसके अतिरिक्त इलाहाबाद शहर की गंगा-जमुनी संस्कृति के पोषक तत्वों के सम्मिलित होने के कारण यह संग्रहणीय पुस्तक है। इसे विभिन्न पुस्तकालयों में रखा जा सकता है, जिससे जन सामान्य भी इस विषय में जानकारी प्राप्त कर सकें।पुस्तक का मुद्रण एवं गेट अप उत्तम कोटि का है तथा कवर पृष्ठ आकर्षक है। यह कहा जा सकता है कि लेखक का यह प्रयास अत्यन्त सराहनीय है तथा इलाहाबाद की संस्कृति को बनाये रखने एवं उसकी श्रीवृद्धि करने में इस पुस्तक का अमूल्य योगदान रहेगा। गुफ़्तगू पब्लिकेशन, प्रयागराज द्वारा प्रकाशित की गयी 264 पृष्ठों की इस सजिल्द पुस्तक का मूल्य 600/-रूपये है।


 आकर्षक एवं रंगीन चित्रों से सुसज्जित बाल-रचनाएं


 बाल कविता संग्रह ‘चंचल चुनमुन’ के माध्यम से कवि अशोक श्रीवास्तव ‘कुमुद’ ने बच्चों को उनके परिवेश, सामाजिक-सांस्कृतिक परम्पराओं, संस्कारों, जीवन मूल्यों, आचार-विचार एवं व्यवहार की अच्छी शिक्षा प्रदान करने का प्रयास किया है। इस संग्रह में देशभक्ति की भावना तथा प्रकृति प्रेम एवं विविध मानवीय मूल्यों से युक्त 74 कविताएं संकलित हैं, जो बाल-पाठकों को देशभक्ति एवं प्रकृति एवं पर्यावरण प्रेम की शिक्षा प्रदान करती हैं। सभी कविताएं रंग-बिरंगे तथा उत्तम श्रेणी के पृष्ठों एवं चित्रों से सुसज्जित हैं। आकर्षक आवरण पृष्ठ एवं प्रत्येक रचना के अनुसार सुसंगत सुन्दर चित्र पुस्तक को बाल-मन के और निकट लाते हैं।

 प्रस्तुत बाल कविता संग्रह में सम्मिलित कविताओं के अन्तर्गत व्यायाम, जंक फूड, शैतान बंदर, गली क्रिकेट, वृक्षारोपण, संयताहार शीर्षक कविताएँ शिक्षाप्रद है तथा वृक्ष लगाओ, स्वच्छता, मीठी बोली, अखबार, जंगल में लोकतंत्र शीर्षक कविताएँ बच्चों के मन को प्रेरणा प्रदान करने का कार्य करती हैं। ससुराल चले, चुनमुन बंदर, गरम जलेबी, जलेबी और मिस्टर मैंडोला  रचनाएँ विशु़द्ध हास्य-विनोद के रंग में सराबोर हैं, तो चिड़िया रानी, तितली, गिल्लू गिलहरी, परी, पतंग, मक्कार बिल्ली रोचक बन पड़ी हैं। तिरंगा झंडा, स्वतंत्रता दिवस शीर्षक कविताएँ बच्चों के मन में देशप्रेम की भावनाएँ जाग्रत करती हैं। इनके अतिरिक्त अन्य रचनाएँ भी सराहनीय हैं। प्रस्तुत हैं इस संग्रह की कुछ बाल कविताओं के अंशः-’चाह हो छूना अगर गगन/लक्ष्य पर बच्चो सदा नयन/अनुशासित रखो धैर्य लगन/नेक हो नीयत/रहो मगन।’, ‘तिरंगा- आज़ादी की तान तिरंगा/वीरों का अभिमान तिरंगा/लहर लहर लहराय गगन में/भारत का सम्मान तिरंगा।’, ‘वृक्ष लगाओ- जंगल बिना न सांस चलेगी/ना मनुष्य की जात बचेगी/इक दूजे पर निर्भर जीवन/वृक्ष लगाओ जान बचेगी।’, ‘कोयल सा मीठा बोलोगे/सबके प्यारे बन जाओगे/दोगे गर सम्मान सभी को/खुद भी आदर पा जाओगे।’, ‘बच्चो अगर बचाना जान/पर्यावरण का रखो ध्यान/पेड़ न काटो अब नादान/वृक्षारोपण हो अभियान।’

 कहा गया है कि बाल साहित्य बच्चों की एक भरी-पूरी, जीती-जागती दुनिया की समर्थ प्रस्तुति और बालमन की सूक्ष्म संवेदना की अभिव्यक्ति है। यही कारण है कि बाल साहित्य में वैज्ञानिक दृष्टिकोण व विषय की गम्भीरता के साथ-साथ रोचकता व मनोरंजकता का भी ध्यान रखना होता है, जो इस पुस्तक की विशेषता है। पुस्तक में रचनाकार ने कथ्य का विशेष रूप से ध्यान रखा है, किन्तु शिल्प पक्ष में कुछ कमियां भी झलकती हैं। सर्वप्रथम तो अधिकतर कविताओं में छन्दबद्धता का ध्यान नहीं रखा गया है, जिससे लय बाधित होने के कारण पठनीयता एवं गेयता प्रभावित होती है। पुस्तक का मुद्रण एवं गेट अप उत्तम श्रेणी का है तथा कवर पृष्ठ सहित सभी पृष्ठ रंगीन चित्रों से सुसज्जित एवं आकर्षक हैं। गुफ़्तगू पब्लिकेशन, प्रयागराज द्वारा प्रकाशित की गयी रचनाकार अशोक श्रीवास्तव ‘कुमुद’की 80 पृष्ठों की इस पुस्तक का मूल्य 200 रूपये है।


नये सृजन के साथ नये कवि का आगमन 

  


लेखक राजेन्द्र यादव की पुस्तक ‘रसा’ उनकी काव्य-रचनाओं का एक संग्रह है, जिसमें उनकी कुछ कवितायें संग्रहीत हैं। कथ्य की दृष्टि से देखा जाए तो इस काव्य-संग्रह में रचनाकार ने अपने मनोभावों तथा अनुभूतियों को व्यक्त करने का प्रयास किया है। रचनाओं के वर्ण्य-विषय मुख्यतः वर्तमान समाज का चित्रण, जीवन का यथार्थ, सामाजिक सरोकार, स्त्री की हृदयगत भावनाएं, आम आदमी की व्यथा एवं वर्तमान राजनीतिक विसंगतियों का चित्रण आदि हैं। साथ ही वर्तमान बिगड़ते परिवेश के प्रति रचनाकार की चिंता भी दिखायी देती है। रचनाओं के अंतर्गत आज के जीवन में व्याप्त संत्रास, घुटन, वेदनाओं एवं अनुभूतियों को काव्य रूप में दर्शाने की चेष्टा की गयी है। इसके अतिरिक्त ग्रामीण जीवन एवं प्रकृति वर्णन भी दृष्टिगोचर होता है। यत्र-तत्र जीवन के अन्य विविध रंग भी चित्रित किये गये प्रतीत होते हैं।

  शिल्प की दृष्टि से रचनाएँ अधकचरी एवं अपरिपक्व प्रतीत होती हैं। वस्तुतः काव्य-सृजन की प्रत्येक विधा का एक अनिवार्य अनुशासन एवं शिल्प विधान होता है, जिसका पालन रचनाकार को करना होता है, लेकिन इस  पुस्तक में ठीक ढंग से पालन नहीं किया गया है।      पुस्तक में संग्रहीत अन्य रचनाओं के कुछ अंश इस प्रकार हैः-“काश कोई अपना भी जहां होता/जहां इस परिंदे का बसेरा होता।“, “समस्या का समाधान युद्ध हो नहीं सकता/निज गौरव अभिमान युद्ध हो नहीं सकता।“,“क्या मंदिर, क्या मस्जिद, क्या गुरूद्वारा/जहां देखो तो हर जगह इंसान है हारा।“,“ख़ौफ़ नहीं जिसको, वह देश हत्यारा है/अश्क बहे लोगों के, ये कैसी विचारधारा है।“ आशा की जा सकती है कि लेखक की आगामी कृतियाँ काव्यशास्त्र एवं भाषा व्याकरण के दोषों से मुक्त होंगी तथा और अच्छे एवं साहित्यिक रूप में पाठकों के समक्ष आयेंगी। 80 पेज की इस किताब को गुफ़्तगू पब्लिकेशन ने प्रकाशित किया है, जिसकी कीमत 100 रुपये है।

    प्रतिभा, लगन और ज़ुनून की कहानी



 ‘झंझावात में चिड़िया’ प्रतिभाशाली फ़िल्म अभिनेत्री और टॉप मॉडल तथा बैडमिंटन कोर्ट के ‘जेंटल टाइगर’ कहे जाने वाले पिता प्रकाश पादुकोण की पुत्री दीपिका पादुकोण पर आधारित एक जीवनी परक उपन्यास है। यह उपन्यास सुप्रसिद्ध लेखक प्रबोध कुमार गोविल द्वारा लिखा गया है, जिसके 23 भागों के माध्यम से उनकी सम्पूर्ण कहानी कही गयी है। पुस्तक में बैंडमिंटन खेल में सफलता के उच्चतम शिखर पर रह चुके दीपिका के पिता प्रकाश पादुकोण के जीवन एवं उनकी खेल-यात्रा के विषय में भी बताया गया है कि उनके बैडमिंटन रैकेट से बैडमिंटन कोर्ट में एक झंझावात-सा उत्पन्न हो जाता था, जिसमें “शटल कॉक“ चिड़िया“ कँपकँपा जाती थी। अपने पिता की इस कला से प्रेरित होकर दीपिका टॉप मॉडल एवं सफल अभिनेत्री बनी। उन्होंने पिता के नाम का सहारा लिये बिना अपने ही दम पर सफलताएँ अर्जित कीं। अपनी डेब्यू फ़िल्म ’ओम शांति ओम’ की अपार सफलता के बाद दीपिका को ’लेडी आफ द स्क्रीन’ कहा जाने लगा। दीपिका के फिल्मों में आगमन के समय फिल्म जगत में बहुत सी विश्व सुन्दरियों का बोलबाला था। इसके बावजूद दीपिका पर दौलत, शोहरत और पुरस्कारों की बारिश हुई। उन्हें ’गोलियों की रासलीला रामलीला’ के लिए फिल्मफेयर का बेस्ट एक्ट्रेस अवार्ड मिला। इसके अतिरिक्त वह बेस्ट एक्ट्रेस का आइफा अवार्ड, रणवीर कपूर के साथ वर्ष की सर्वश्रेष्ठ जोड़ी का पुरस्कार, बेहतरीन एंटरटेनर के पुरस्कार, स्टार स्क्रीन पुरस्कार, जी सिने पुरस्कार, आइफा सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार; स्टारडस्ट पुरस्कार, आईडिया जी फैशन पुरस्कार, किंगफिशर वार्षिक फैशन पुरस्कार जैसे अनेक सम्मान एवं पुरस्कारों की विजेता भी रहीं।

   अपनी क़द-काठी, अप्रतिम सौन्दर्य एवं आकर्षण के कारण उन्हें कई प्रतिष्ठित मॉडलिंग के प्रस्ताव प्राप्त हुए। उन्होंने लिरिल, डाबर, क्लोज-अप टूथपेस्ट और लिम्का जैसी प्रसिद्ध भारतीय ब्रांडों के लिए मॉडलिंग की। 5वें किंगफिशर वार्षिक फैशन पुरस्कार समारोह में उन्हें वर्ष की शीर्ष मॉडल के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वर्ष 2006 के किंगफिशर स्विमसूट कैलेण्डर के लिए एक मॉडल के रूप में उन्हें चुना गया और बाद में उन्होंने आईडिया जी फैशन पुरस्कार में दो ट्राफियाँ, फीमेल मॉडल ऑफ़ दी इयर (कॉमर्शियल असाइनमेंट) और फ्रेश फेस ऑफ़ दी इयर के पुरस्कार प्राप्त किए। दीपिका पादुकोण को किंगफिशर एयरलाइंस एवं लीवाइस और टिसॉट एसए की ब्राण्ड एम्बेसडर के रूप में चुना गया, और इस प्रकार वह देश की टॉप मॉडल बनीं। पारम्परिक भारतीय लुक वाली दीपिका पादुकोण ने मीडिया, जनता एवं फ़िल्म तथा मॉडलिंग इण्डस्ट्री- सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया था। उन्हें वर्ष 2010 में सबसे सेक्सी महिला कहा गया था।

उपन्यास की भाषा सीधी-सरल बोलचाल की आम भाषा है। लेखन-शैली रोचक एवं प्रवाहयुक्त है, जो कथानक के साथ पाठकों को पूरी तरह से जोड़े रहती हैं। पुस्तक को पढ़ते समय पाठकों के समक्ष दीपिका के जीवन से जुड़ी हर एक घटना सामने आती-जाती रहती है और पाठक उसमें डूब-सा जाता है। जिज्ञासा एवं कौतूहलवश वह एक के बाद दूसरा पन्ना पढ़ता जाता है। पुस्तक का मुद्रण एवं अन्य तकनीकी पक्ष उच्चकोटि का है। कवर पृष्ठ आकर्षक है। वनिका पब्लिकेशन्स, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित 110 पृष्ठों की इस पुस्तक का मूल्य 230 रूपये है।


अच्छी ग़ज़लों का सृजन है ‘उम्मीद’

    

                         

 हन्दी साहित्य की एक महत्वपूर्ण काव्य-विधा के रूप में ग़ज़ल निरन्तर लोकप्रिय होती जा रही है। यही कारण है कि वे रचनाकार, जिन्हें ग़ज़ल व्याकरण के कखग तक की जानकारी भी नहीं है और वे रचनाकार, जो ग़ज़ल व्याकरण को समझकर एवं तद्विषयक सम्यक् जानकारी प्राप्त कर ग़ज़ल विधा में लिख रहे हैं; दोनों ही प्रकार के रचनाकारों की लेखनी इस विधा की ओर अग्रसर है। ‘उम्मीद’ रीता सिवानी का प्रथम ग़ज़ल-संग्रह है, जिसका शिल्प एवं कथ्य श्रेष्ठ तथा सराहनीय है। ग़ज़ल के छन्दानुशासन एवं अन्य बन्दिशों के प्रति सजगता के कारण अच्छी ग़ज़लों का सृजन रचनाकार की रचनाधर्मिता एवं सृजनात्मकता को दर्शाता है। रचनाकार ने ग़ज़ल-लेखन के लिए आवश्यक तत्वों, यथा- अरूज़ (व्याकरण) क़ाफ़िया, रदीफ़, मतला, मक़्ता, एवं बह्रों तथा उनकी तक़्तीअ (मात्रा-गणना) के विषय में आवश्यक जानकारी प्राप्त कर इनका सृजन किया है। 

 कथ्य की दृष्टि से रचनाओं में वर्तमान समाज का चित्रण एवं जीवन के विविध पक्षों को भी उजागर करने का प्रयास किया गया है। ग़ज़लों में आज के युग की विडम्बना, सामाजिक विसंगतियों एवं आम आदमी के यथार्थ चित्रण को उकेरा गया है। इनके अतिरिक्त देश की कुव्यवस्था एवं अवसरवादी तथा गंदी राजनीति पर भी लेखनी चली है। प्रेम एवं श्रृंगार विषयक ग़ज़लें भी हैं। इनकी शायरी में दर्द, पीड़ा, आक्रोश की झलक भी परिलक्षित होती है। इसके साथ ही भक्ति, देशप्रेम, वात्सल्य, दूरदर्शिता, आशावादिता, आकांक्षाएं आदि की भावनाएँ विद्यमान हैं। पुस्तक में संग्रहीत ग़ज़लों के कुछ अंश दृष्टव्य हैं-‘देवता कौन है कौन इंसान है/कर्मों से ही यहाँ सबकी पहचान है।’, ‘भ्रष्टाचारी हर दफ़्तर में/ फिर भी देश महान बहुत है।’, ‘शहरी बिल्डिंग से हमेशा गांव का/अपना कच्चा घर मुझे अच्छा लगा।’, ‘फगुआ चौती सोहर बिरहा/पहले सा अब क्या होता है।’ लेखन के प्रति रचनाकार की यथासम्भव सतर्कता एवं सजगता के बावजूद संग्रह में ग़ज़ल-व्याकरण की दृष्टि से कहीं-कहीं दोष परिलक्षित होते हैं। यथा- ऐबे तनाफ़ुर- कम मत, फ़लक का, बस सुनो इत्यादि। तक़ाबुले रदीफ़- बंद हो (पृ0-77)। क़ाफ़िया दोष- चमन/भगवान (पृ0-19) आदि। ऐबे शुतुरगु़र्बा- ‘तुम्हें’ और ‘तेरे’ का एक ही शेश्र में प्रयोग (पृ0-111)। इन सबके बावजूद ‘उम्मीद’ पुस्तक यह दर्शाती है कि हिन्दी में अच्छी ग़ज़लें कही जा रही हैं। 


(गुफ़्तगू के अप्रैल-जून 2024 अंक में प्रकाशित)



 

शनिवार, 29 मार्च 2025

 मानव की शायरी में समाज का सच्चा मूल्यांकन: बसंत 

पुस्तक ‘अनिल मानव के चुनिन्दा अशआर’ का विमोचन और मुशायरा



प्रयागराज। अनिल मानव हमारे समाज के  युवा शायर हैं। इन्होंने ग़ज़ल की शायरी शुरू करने से पहले उस्ताद के ज़रिए इसकी छंद की बारीकी को सीखा है और उसी रूप में अपनी शायरी को ढ़ाला है, इसलिए इनकी शायरी परिपक्व और दोषरहित है। इनकी शायरी की ख़ास बात यह है कि उन्होंने समाज का सही आबजर्वेशन करके उसे शायरी में उतार दिया है। इसलिए इनकी शायरी बोलती है। इन्होंने समाज के दर्द को खूब अच्छी तरह से महसूस किया है और उसे अपनी शायरी में तार्किक ढंग से ढाल दिया है। यह बात उत्तर मध्य रेलवे के मुख्य यात्री परिहवन प्रबंधक बसंत कुमार शर्मा ने कही। 20 अक्तूबर की शाम साहित्यिक संस्था गुफ़्तगू की तरफ से विमोचन समारोह और मुशायरे का आयोजन सिविल लाइंस स्थित प्रधान डाक घर में किया गया। 

 गुफ़्तगू के अध्यक्ष डॉ. इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने कहा कि अनिल मानव अपनी शायरी में समाज के दर्द और अव्यवस्था को उकेरते हैं। एक तरह से उनकी शायरी अदम गोडंवी की शायरी के काफी करीब लगती है। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में मीडिया स्टडीज़ सेंटर के कोआर्डिनेटर डॉ. धनंजय चोपड़ा ने अनिल मानव के एक शेर का अंश ‘उम्रभर भरते रहो चांबियां विश्वास की’ को प्रस्तुत करते हुए कहा कि यह शायरी आज के समाज की हक़ीक़त है। शिक्षक हमेशा उपदेश देता है और अगर वह शिक्षक शायर भी हो जोए उसका उपदेश और अधिक तमन्यता से समाज के सामने आ जाता है। यही बात अनिल की शायरी में दिखाई देती है। डॉ. चोपड़ा ने यह भी आज के दौर में जब किताबें बहुत महंगी हो गई हैं, ऐसे में गुफ़्तबू पब्लिकेशन की यह किताब केवल 25 रुपये की है, यह देखकर मुझे बहुत ही प्रसन्नता हुई।

भारतीय डाक सेवा के एडीशनल डायरेक्टर-2 मासूम रज़ा राशदी ने कहा कि किसी भी शायर की पहली किताब का आना उसी तरह से है जैसे परिवार में एक नया सदस्य जुड़ गया। इनकी शायरी समाज और परिवार के कई मुद्दों को रेखांकित करती है। डॉ. वीरेंद्र कुमार तिवारी ने कहा कि अनिल की शायरी आज के समय में सबसे अलग है, इस किताब का अलग ढंग से मूल्यांकन किया जाएगा। नरेश महरानी ने भी अनिल मानव की शायरी की प्रशंसा की।

दूसरे दौर में मुशायरे का आयोजन किया गया। संचालन मनमोहन सिंह तन्हा ने किया। नीना मोहन श्रीवास्तव, शिबली सना, हकीम रेशादुल इस्लाम, धीरेंद्र सिंह नागा, अफ़सर जमाल, आसिफ़ उस्मानी, प्रभाशंकर शर्मा, शशिभूषण मिश्र, अजीत शर्मा आकाश, निखत बेगम, शिवनरेश भारती, विक्टर सुल्तानपुरी, देवी प्रसाद पांडेय, गीता सिंह, असद ग़ाज़ीपुरी और सुजीत जायसवाल आदि ने कलाम पेश किया।



शनिवार, 15 मार्च 2025

नई कविता के प्रवर्तक हैं डॉ. जगदीश गुप्त

घर में ही लगता था बड़े साहित्यकारों का जमघट

बेटे विभु ने बचपन से ही देखी है साहित्य मंडली

                                                                                 - डॉ. इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी 


डॉ. जगदीश गुप्त

 नई कविता के प्रवर्तकों में शामिल डॉ. जगदीश गुप्त हिन्दी साहित्य के प्रमुख लोगों में शामिल हैं, जिनकी वजह से समाज की प्रमुख धारा में साहित्य बना रहा है। नये लोगों को भी डॉ. गुप्त की वजह काफी प्रोत्साहन मिलता रहा है। उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में जन्मे डॉ. गुप्त का कर्मस्थल इलाहाबाद ही रहा है। इंटरमीडिएट की पढ़ाई करने के लिए हरदोई से यहां आए और फिर यहीं के होकर रह गए। पहले महादेवी वर्मा से जुड़े और फिर ये सिलसिला बढ़ता चल गया। बचपन में ही पिताजी का देहांत हो गया था। इसलिए पढ़ाई का खर्च भी खुद ही निकालना था। इस खर्च को पूरा करने के ये कई प्रतिष्ठित साहित्यकारों की किताबों का कवर पेज भी डिजाइन किया करते थे, शुरूआत महादेवी वर्मा की किताब से हुई थी। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में अध्यापन कार्य से जुड़ने के बाद गृहस्थ जीवन में जुड़ गए। शादी हुई और फिर परिवार बढ़ा। तीन बेटियों के बाद तीन बेटों का जन्म हुआ। तीन बेटियों के बाद सबसे बेटे विभु गुप्त का जन्म हुआ। विभु ने अपने पिता और उनके मित्रों को देखा है, उनका आना-जाना और साथ में घुलना-मिलना बचपन से ही रहा था।

 प्रतिष्ठित कवि होने के कारण अक्सर ही डॉ. जगदीश गुप्त के घर सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, महादेवी वर्मा, फ़िराक़ गोरखपुरी, दुष्यंत कुमार, सुमित्रानंदन पंत, नरेश मेहता, धर्मवीर भारती, विष्णुकांत शास्त्री, श्रीनारायण चतुर्वेदी, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, रामकुमार वर्मा, विजय देव नारायण शाही आदि साहित्यकारों को आना-जाना लगा रहता था। अक्सर ही डॉ. गुप्त के घर काव्य गोष्ठियों हुआ करती थीं, तब उस समय के प्रतिष्ठित और युवा कवियों का जमावड़ा होता था। साहित्यिक प्रतिष्ठा और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में अध्यापन कार्य के साथ-साथ डॉ. जगदीश गुप्त अपने सभी छह बच्चों का पालन-पोषण और शिक्षा-दीक्षा का भी विशेष ध्यान रखते थे। अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों से कभी विमुख नहीं हुए।


महादेवी वर्मा से अैठे हुए डॉ. जगदीश गुप्त

 विभु गुप्त ने स्नातक करने के बाद फोटोग्राफी में डिप्लोमा किया और इसके बाद अख़बारों में फोटोग्राफर हो गए। पहले ‘अमृत प्रभात’ अख़बार और उसके बाद ‘राष्टीय सहारा’ में बतौर फोटोग्राफर नौकरी करते हुए रिटायर हुए हैं। रिटायरमेंट के बाद से ही विभु अपने पिता के लेखन और पेंटिंग को संजोने में जुटे हुए हैं। इन्होंने वेबसाइट बनाकर अपने पिता के लगभग सभी लेखन और पेंटिंग को इस वेबसाइट पर अपलोड कर दिया है। वर्ष 2018 में इन्होंने ूूूण्रंहकपेीहनचजण्बवउ नाम से वेबसाइट बनाई है। इसमें डॉ. गुप्त की सारी चीज़े अपलोड करने में जुटे हुए हैं। डॉ. अटल बिहारी वाजपेयी की पुस्तक ‘मेरी 51 कविताएं’ की भूमिका भी डॉ. गुप्त ने ही लिखी है।

 विभु बताते हैं कि पिताजी खुद तो हमलोगों को नहीं पढ़ाते थे, लेकिन हम भाई-बहनों की पढ़ाई पर पूरा ध्यान रखते थे। किसकी पढ़ाई कैसी चल रही है, कैसे पढ़ाई करनी चाहिए आदि-आदि का ध्यान रखते थे। साथ ही उस ज़माने में भी ट्यूशन लगा दिया था। डॉ. जगदीश गुप्त के निर्देशन में हरिशंकर मिश्र शोध कार्य करते थे। हरिशंकर ही डॉ. गुप्त के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते थे। बाद में हरिशंकर मिश्र लखनउ यूनिवर्सिटी में हिन्दी के विभागाध्यक्ष भी हुए थे। विभु बताते हैं कि हम भाई बहनों की पढ़ाई पर अपना कोई विचार नहीं थोपते थे, जिसकी रुचि जिस क्षेत्र में हो उसे उसी क्षेत्र में आगे बढ़ाने के हिमायती थे। यही वजह है कि विभु अपनी रुचि अनुसार फोटोग्राफर बने।


बााएं से- भारत भूषण वार्ष्णेय, इम्तियाज़ अहमद ग़़ाज़ी और विभु गुप्त

विभु बताते हैं कि जब मैं कोई अच्छी तस्वीर खींचकर लाता था तो वे उसकी प्रशंसा भी करते थे। डॉ. गुप्त कवि होने के साथ बहुत ही अच्छा पेंटिंग और स्केच बनाते थे। उनके पास हमेशा काले स्याही वाली कलम होती थी। रास्ता चलते जब कोई अच्छी चीज़ देखते थे तो छोटे-छोटे कार्ड पर उसका रेखाचित्र बना लेते थे, जिस तरह आजकल लोग मोबाइल से फोटो खींच लेते हैं। 

विभु बताते हैं कि डॉ. जगदीश का पोेता जिसे वे ‘वासु’ नाम से बुलाते थे, उसी को केदिं्रत करते हुए एक किताब ‘वासुनामा’ लिखा है। वासु के बहाने उन्होंने बच्चों को केंद्रित यह किताब लिखी गई है, जिसका शीघ्र ही विभु गुप्ता प्रकाशन कराने जा रहे हैं। आदिकाल की मूर्तियों को एकत्र करने का भी डॉ. गुप्त को बहुत शौक़ रहा है। एक विशाल संग्रह उन्होंने अपने घर में किया था, जिसे विभु गुप्ता ने बहुत ही संजोकर रखा है।


पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से भारत-भारती सम्मान प्राप्त करते डॉ. जगदीश गुप्त।   

डॉ. गुप्त को उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की तरफ से भारत-भारती पुरस्कार मिला था, यह पुरस्कार पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने हाथ से दिया था। मध्य प्रदेश हिन्दी संस्थान की तरफ से मैथिली शरण गुप्त पुरस्कार के अलावा तमाम सम्मान से इन्हें नवाजा गया था। इनके निधन होने पर पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह भी घर आये थे। डॉ. गुप्त एक सफल चित्रकार भी थे, इसलिए उन्होंने चित्रमय काव्य की परम्परा को पुनर्जीवित किया। हिंदी काव्यधारा में महादेवी जी ने चित्र और काव्य का जो अंतः सम्बंध स्थापित किया उसका अगला विकास गुप्त जी की कविताओं मे दिखाई देता है। इनकी 28 पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। 


(गुफ़्तगू के अप्रैल-जून 2024 अंक में प्रकाशित)


शुक्रवार, 14 मार्च 2025

 बुद्धिसेन शर्मा हमारे समय के ख़ास शायर: पाठक

‘बुद्धिसेन शर्मा जन्मोत्सव’ पर पांच लोगों को मिला अवार्ड



प्रयागराज। बुद्धिसेन शर्मा हमारे समय के बहुत ख़ास और उल्लेखनीय शायर रहे हैं। उन्होंने अपनी शायरी से न सिर्फ़ प्रयागराज बल्कि देश और विदेश में पहचान बनाए। मुशायरों में काव्य पाठ के लिए उन्हें इंग्लैंड में भी बुलाया गया था। उनकी ग़ज़लें समय से सवांद करती थीं, जिसकी वजह से हर कोई सुनना-पढ़ना पसंद करता था। उनकी ग़ज़लें अपने समय के विभिन्न अख़बारों और पत्रिकाओं में प्रकाशित होती थीं। यह बात उत्तर प्रदेश सामान्य सचिवालय के संयुक्त सचिव अरिवन्द पाठक ने बतौर मुख्य अतिथि 26 दिसंबर को सिविल लाइंस स्थित पुस्तक मेले में गुफ़्तगू द्वारा आयोजित ‘बुद्धिसेन शर्मा जन्मोत्सव-2024’ के दौरान कही।

गुफ़्तगू के अध्यक्ष डॉ. इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने कहा कि बुद्धिसेन शर्मा की शायरी और व्यक्तित्व एक सच्चे शायर की तरह की थी। जहां के आज शायर-कवि मुशायरों और कवि सम्मेलनों में शामिल होने के लिए हद दजेऱ् की चम्मचगिरी करते हैं, वहीं बुद्धिसेन शर्मा अपनी पूरी ठसक के साथ ही मुशायरों में जाते थे, कभी किसी की चम्मचगिरी नहीं करते थे।

डॉ. एस.एम. अब्बास ने कहा कि बुद्धिसेेन बहुत ही लायक शायर थे। उनकी सेवा डॉॅ. केके मिश्र उर्फ़ इश्क़ सुल्तानपुरी ने एक शिष्य के रूप में की थी, वह बहुत उल्लेखनीय है। कल्पना पाठक ने भी बुद्धिसेन शर्मा की शायरी का उल्लेख करते हुए उन्हें बेहतरीन शायर बताया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार मुनेश्वर मिश्र ने कहा कि बुद्धिसेन शर्मा हमारे समय के उल्लेखित किए जाने वाले शायर थे। उनका व्यक्तित्व हर किसी के लिए उल्लेखनीय है। कार्यक्रम का संचालन मनमोहन सिंह तन्हा ने किया।

दूसरे सत्र में मुशायरा और कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। डॉ. इश्क.सुल्तानपुरी, नरेश कुमार महरानी, मासूम रज़ा राशदी, हकीम रेशादुल इस्लाम, नीना मोहन श्रीवास्तव, मंजु लता नागेश, अर्चना जायसवाल ‘सरताज’, शैलेंद्र जय, शिवाजी यादव, धीरेंद्र सिंह नागा, शिबली सना, डॉ. अरुणा पाठक, मंजू मौर्या, क्षमा द्विवेदी, डॉ. रंजीत सिंह, सुजीत विश्वकर्मा, दीक्षा सिंह, श्रेया सिंह, जान्हवी यादव, मनीष सिंह, मिली श्रीवास्तव, विवके संत्यांशु, नयन यादव, इंदू जौनपुरी, पुष्कर प्रधान, असद ग़ाज़ीपुरी, योगाचार्य धर्मचंद और डॉ. अजय प्रकाश ने काव्य पाठ किया।


इन्हें मिला बु़िद्धसेन शर्मा अवार्ड

आसिफ़ उस्मानी (प्रयागराज), डॉ. कृष्णावतार त्रिपाठी ‘राही’(भदोही), सरिता सिंह (गोरखपुर), अजीत शर्मा ‘आकाश’ (प्रयागराज) और अफ़सर जमाल (प्रयागराज)