शनिवार, 30 नवंबर 2024

 नई कविता के प्रवर्तक हैं डॉ. जगदीश गुप्त

घर में ही लगता था बड़े साहित्यकारों का जमघट

बेटे विभु ने बचपन से ही देखी है साहित्य मंडली

                                      - डॉ. इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी

 नई कविता के प्रवर्तकों में शामिल डॉ. जगदीश गुप्त हिन्दी साहित्य के प्रमुख लोगों में शामिल हैं, जिनकी वजह से समाज की प्रमुख धारा में साहित्य बना रहा है। नये लोगों को भी डॉ. गुप्त की वजह काफी प्रोत्साहन मिलता रहा है। उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में जन्मे डॉ. गुप्त का कर्मस्थल इलाहाबाद ही रहा है। इंटरमीडिएट की पढ़ाई करने के लिए हरदोई से यहां आए और फिर यहीं के होकर रह गए। पहले महादेवी वर्मा से जुड़े और फिर ये सिलसिला बढ़ता चल गया। बचपन में ही पिताजी का देहांत हो गया था। इसलिए पढ़ाई का खर्च भी खुद ही निकालना था। इस खर्च को पूरा करने के ये कई प्रतिष्ठित साहित्यकारों की किताबों का कवर पेज भी डिजाइन किया करते थे, शुरूआत महादेवी वर्मा की किताब से हुई थी। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में अध्यापन कार्य से जुड़ने के बाद गृहस्थ जीवन में जुड़ गए। शादी हुई और फिर परिवार बढ़ा। तीन बेटियों के बाद तीन बेटों का जन्म हुआ। तीन बेटियों के बाद सबसे बेटे विभु गुप्त का जन्म हुआ। विभु ने अपने पिता और उनके मित्रों को देखा है, उनका आना-जाना और साथ में घुलना-मिलना बचपन से ही रहा था।

डॉ. जगदीश गुप्त

प्रतिष्ठित कवि होने के कारण अक्सर ही डॉ. जगदीश गुप्त के घर सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, महादेवी वर्मा, फ़िराक़ गोरखपुरी, दुष्यंत कुमार, सुमित्रानंदन पंत, नरेश मेहता, धर्मवीर भारती, विष्णुकांत शास्त्री, श्रीनारायण चतुर्वेदी, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, रामकुमार वर्मा, विजय देव नारायण शाही आदि साहित्यकारों को आना-जाना लगा रहता था। अक्सर ही डॉ. गुप्त के घर काव्य गोष्ठियों हुआ करती थीं, तब उस समय के प्रतिष्ठित और युवा कवियों का जमावड़ा होता था। साहित्यिक प्रतिष्ठा और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में अध्यापन कार्य के साथ-साथ डॉ. जगदीश गुप्त अपने सभी छह बच्चों का पालन-पोषण और शिक्षा-दीक्षा का भी विशेष ध्यान रखते थे। अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों से कभी विमुख नहीं हुए।

महादेवी वर्मा से बैठे हुए डॉ. जगदीश गुप्त

विभु गुप्त ने स्नातक करने के बाद फोटोग्राफी में डिप्लोमा किया और इसके बाद अख़बारों में फोटोग्राफर हो गए। पहले ‘अमृत प्रभात’ अख़बार और उसके बाद ‘राष्टीय सहारा’ में बतौर फोटोग्राफर नौकरी करते हुए रिटायर हुए हैं। रिटायरमेंट के बाद से ही विभु अपने पिता के लेखन और पेंटिंग को संजोने में जुटे हुए हैं। इन्होंने वेबसाइट बनाकर अपने पिता के लगभग सभी लेखन और पेंटिंग को इस वेबसाइट पर अपलोड कर दिया है। वर्ष 2018 में इन्होंने ूूूण्रंहकपेीहनचजण्बवउ नाम से वेबसाइट बनाई है। इसमें डॉ. गुप्त की सारी चीज़े अपलोड करने में जुटे हुए हैं। डॉ. अटल बिहारी वाजपेयी की पुस्तक ‘मेरी 51 कविताएं’ की भूमिका भी डॉ. गुप्त ने ही लिखी है।

 विभु बताते हैं कि पिताजी खुद तो हमलोगों को नहीं पढ़ाते थे, लेकिन हम भाई-बहनों की पढ़ाई पर पूरा ध्यान रखते थे। किसकी पढ़ाई कैसी चल रही है, कैसे पढ़ाई करनी चाहिए आदि-आदि का ध्यान रखते थे। साथ ही उस ज़माने में भी ट्यूशन लगा दिया था। डॉ. जगदीश गुप्त के निर्देशन में हरिशंकर मिश्र शोध कार्य करते थे। हरिशंकर ही डॉ. गुप्त के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते थे। बाद में हरिशंकर मिश्र लखनउ यूनिवर्सिटी में हिन्दी के विभागाध्यक्ष भी हुए थे। विभु बताते हैं कि हम भाई बहनों की पढ़ाई पर अपना कोई विचार नहीं थोपते थे, जिसकी रुचि जिस क्षेत्र में हो उसे उसी क्षेत्र में आगे बढ़ाने के हिमायती थे। यही वजह है कि विभु अपनी रुचि अनुसार फोटोग्राफर बने।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से भारत-भारती सम्मान प्राप्त करते डॉ. जगदीश गुप्त। 


 विभु बताते हैं कि जब मैं कोई अच्छी तस्वीर खींचकर लाता था तो वे उसकी प्रशंसा भी करते थे। डॉ. गुप्त कवि होने के साथ बहुत ही अच्छा पेंटिंग और स्केच बनाते थे। उनके पास हमेशा काले स्याही वाली कलम होती थी। रास्ता चलते जब कोई अच्छी चीज़ देखते थे तो छोटे-छोटे कार्ड पर उसका रेखाचित्र बना लेते थे, जिस तरह आजकल लोग मोबाइल से फोटो खींच लेते हैं। 

विभु बताते हैं कि डॉ. जगदीश का पोेता जिसे वे ‘वासु’ नाम से बुलाते थे, उसी को केदिं्रत करते हुए एक किताब ‘वासुनामा’ लिखा है। वासु के बहाने उन्होंने बच्चों को केंद्रित यह किताब लिखी गई है, जिसका शीघ्र ही विभु गुप्ता प्रकाशन कराने जा रहे हैं। आदिकाल की मूर्तियों को एकत्र करने का भी डॉ. गुप्त को बहुत शौक़ रहा है। एक विशाल संग्रह उन्होंने अपने घर में किया था, जिसे विभु गुप्ता ने बहुत ही संजोकर रखा है।

भारत भूषण वार्ष्णेय, डॉ. इम्तियाज़ अहमद ग़़ाज़ी और विभु गुप्त

डॉ. गुप्त को उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की तरफ से भारत-भारती पुरस्कार मिला था, यह पुरस्कार पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने हाथ से दिया था। मध्य प्रदेश हिन्दी संस्थान की तरफ से मैथिली शरण गुप्त पुरस्कार के अलावा तमाम सम्मान से इन्हें नवाजा गया था। इनके निधन होने पर पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह भी घर आये थे। डॉ. गुप्त एक सफल चित्रकार भी थे, इसलिए उन्होंने चित्रमय काव्य की परम्परा को पुनर्जीवित किया। हिंदी काव्यधारा में महादेवी जी ने चित्र और काव्य का जो अंतः सम्बंध स्थापित किया उसका अगला विकास गुप्त जी की कविताओं मे दिखाई देता है। इनकी 28 पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। 



( गुफ़्तगू के अप्रैल-जून 2024 अंक में प्रकाशित )


गुरुवार, 28 नवंबर 2024

 गुफ़्तगू के अप्रैल-जून 2023 अंक में



4. संपादकीय-स्तरीय साहित्य सामने आना चाहिए

5-7. उर्दू वर्तन एवं उच्चारण में हमज़ा का महत्व - अमीर हमज़ा

9-10. मुनव्वर के आंसुओं से तैयार हुआ एक जलमहल - यश मालवीय

11-19. ग़ज़लें: आर.डी.एन.श्रीवास्तव, सरफ़राज़ अशहर, तलब जौनपुरी, वीरेंद्र खरे अकेला, शमा फ़िरोज., राहिब मैत्रेय, अरविन्द असर, मंजुला शरण मनु, शगुफ़्ता रहमान सोना, डॉ. शबाना रफ़ीक़, प्रवीण परीक ‘अंशु’, अरविंद अवस्थी, विवके चतुर्वेदी, डॉ. सोनिया गुप्ता, पंकज सिद्धार्थ, शादाब शब्बीरी, मुकेश सिंघानिया, आबिद बरेलवी,

20, दोहा- राज जौनपुरी

21-26. कविताएं: यश मालवीय, अमर राग, डॉ. प्रकाश खेतान, डॉ. प्रमिला वर्मा, खेमकरण सोमान, डॉ. मधुबाला सिन्हा, केदारनाथ सविता, डॉ. नरेश सागर

27-30. इंटरव्यू: अखिलेश निगम अखिल

31-35. चौपाल: कविता के नाम पर लतीफ़ेबाजी और बतकही करने वालों को कवि कहना चाहिए ? 

36-40. तब्सेरा: मोहब्बत का समर, उदय उमंग, आगे फटा जूता, सुलगता हुआ सहरा, अपने शून्य पटल से

41-43. उर्दू अदब: खलिस, हर्फ-हर्फ खुश्बू, मुकद्दस यादें

44-45. गुलशन-ए-इलाहाबाद: असद क़ासिम

46-47. ग़ाज़ीपुर के वीर:फ़रीदुल हक़ अंसारी

48-52. अदबी ख़बरें 

53-84. परिशिष्ट-1  निहाल चंद्र शिवहरे

55. अपने परिवेश की कविताएं- डॉ. दामोदर खड़से

56 कविताओं की भाषा रोचक, सहज और प्रवाही - साकेत सुमन चतुर्वेदी

57. मौलिकताओं के चितेरे: निहाल चंद्र शिवहरे - डॉ. रामशंकर भारती

58. निहाल चंद्र शिवहरे के काव्य में पर्यावरण चेतना - डॉ. मिथिलेश दीक्षित

59-84. निहाल चंद्र शिवहरे की कविताएं

85-115. परिशिष्ट-2: ख़ान हसनैन आक़िब

86-88. प्रेम और मानवीय संवेदना से भरपूर सम्मिश्रण - अशोक श्रीवास्तव ‘कुमुद’

89-90. इश्क़-मोहब्बत से भरपूर अशआर - डॉ. शैलेष गुप्त ‘वीर’

91-93. शायरी में ज़िन्दगी का हर रंग नुमाया - अनिल मानव

94-95. सशक्त संदेश संग प्रवाहित होती कविताएं - नीना मोहन श्रीवास्तव

96-115. ख़ान हसनैन आक़िब की ग़ज़लें

116-144. परिशिष्ट-3: मधुकर वनमाली

117-119. भाषागत और शैलीगत की परिपक्वता- डॉ. वीरेंद्र कुमार तिवारी

120. कविताओं में समय के विविध रंग - डॉ. मधुबाला सिन्हा

121-122. साहित्य के उपवन का मधुकर वनमाली - डॉ. इश्क़ सुल्तानपुरी

123-144. मधुकर वनमाली की कविताएं




बुधवार, 27 नवंबर 2024

 मानव की शायरी में समाज का सच्चा मूल्यांकन: बसंत 

पुस्तक ‘अनिल मानव के चुनिन्दा अशआर’ का विमोचन और मुशायरा



प्रयागराज। अनिल मानव हमारे समाज के  युवा शायर हैं। इन्होंने ग़ज़ल की शायरी शुरू करने से पहले उस्ताद के ज़रिए इसकी छंद की बारीकी को सीखा है और उसी रूप में अपनी शायरी को ढ़ाला है, इसलिए इनकी शायरी परिपक्व और दोषरहित है। इनकी शायरी की ख़ास बात यह है कि उन्होंने समाज का सही आबजर्वेशन करके उसे शायरी में उतार दिया है। इसलिए इनकी शायरी बोलती है। इन्होंने समाज के दर्द को खूब अच्छी तरह से महसूस किया है और उसे अपनी शायरी में तार्किक ढंग से ढाल दिया है। यह बात उत्तर मध्य रेलवे के मुख्य यात्री परिहवन प्रबंधक बसंत कुमार शर्मा ने कही। 20 अक्तूबर की शाम साहित्यिक संस्था गुफ़्तगू की तरफ से विमोचन समारोह और मुशायरे का आयोजन सिविल लाइंस स्थित प्रधान डाक घर में किया गया। 

 गुफ़्तगू के अध्यक्ष डॉ. इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने कहा कि अनिल मानव अपनी शायरी में समाज के दर्द और अव्यवस्था को उकेरते हैं। एक तरह से उनकी शायरी अदम गोडंवी की शायरी के काफी करीब लगती है। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में मीडिया स्टडीज़ सेंटर के कोआर्डिनेटर डॉ. धनंजय चोपड़ा ने अनिल मानव के एक शेर का अंश ‘उम्रभर भरते रहो चांबियां विश्वास की’ को प्रस्तुत करते हुए कहा कि यह शायरी आज के समाज की हक़ीक़त है। शिक्षक हमेशा उपदेश देता है और अगर वह शिक्षक शायर भी हो जोए उसका उपदेश और अधिक तमन्यता से समाज के सामने आ जाता है। यही बात अनिल की शायरी में दिखाई देती है। डॉ. चोपड़ा ने यह भी आज के दौर में जब किताबें बहुत महंगी हो गई हैं, ऐसे में गुफ़्तबू पब्लिकेशन की यह किताब केवल 25 रुपये की है, यह देखकर मुझे बहुत ही प्रसन्नता हुई।

भारतीय डाक सेवा के एडीशनल डायरेक्टर-2 मासूम रज़ा राशदी ने कहा कि किसी भी शायर की पहली किताब का आना उसी तरह से है जैसे परिवार में एक नया सदस्य जुड़ गया। इनकी शायरी समाज और परिवार के कई मुद्दों को रेखांकित करती है। डॉ. वीरेंद्र कुमार तिवारी ने कहा कि अनिल की शायरी आज के समय में सबसे अलग है, इस किताब का अलग ढंग से मूल्यांकन किया जाएगा। नरेश महरानी ने भी अनिल मानव की शायरी की प्रशंसा की।

दूसरे दौर में मुशायरे का आयोजन किया गया। संचालन मनमोहन सिंह तन्हा ने किया। नीना मोहन श्रीवास्तव, शिबली सना, हकीम रेशादुल इस्लाम, धीरेंद्र सिंह नागा, अफ़सर जमाल, आसिफ़ उस्मानी, प्रभाशंकर शर्मा, शशिभूषण मिश्र, अजीत शर्मा आकाश, निखत बेगम, शिवनरेश भारती, विक्टर सुल्तानपुरी, देवी प्रसाद पांडेय, गीता सिंह, असद ग़ाज़ीपुरी और सुजीत जायसवाल आदि ने कलाम पेश किया।