-इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी
पिछले दिनों गा़जि़याबाद की डाॅ. तारा गुप्ता की पुस्तक ‘भोर की संभावनाएं’ प्रकाशित हुई। इस पुस्तक में गीत और ग़ज़ल मिलाकर कुल 71 रचनाएं शामिल की गई हैं। पुस्तक संबंध में डाॅ. कुंअर बेचैन की भूमिका है, जिसमें वे लिखते हैं ‘डाॅ. गुप्ता की रचनाओं की भाषा विषयानुकूल है और जहां उत्साह की बात आई है वहां ओजगुण से युक्त है और जहां सुकोमल भाव आए हैं वहां माधुर्यणुसंपन्न है। क्योंकि इस संग्रह में गीत भी हैं और ग़ज़लें भी, गीत की भाषा और उसका छंदविधान ग़ज़ल की भाषा और उसके छंदविधान से भिन्न है, जो उचित ही है। ग़ज़ल एकदम बोलचाल की भाषा में कही जाती है इसलिए शब्दों के उच्चारण के बलाघात की दृष्टि से उसकी मात्राएं गिरती भी रहती हैं जो ग़ज़ल में जायज भी है। तारा जी ने अपनी ग़ज़लों में इस बात का ध्यान रखा है, इसलिए वे पूरी तरह बह्र अर्थात छंद में हैं।’ डाॅ.कुंअर बेचैन की टिप्पणी के बाद इनकी रचनाओं के छंद पर और कुछ कहने-सुनने की आवश्यकता नहीं है। पुस्तक में गीत और ग़ज़ल दोनों का समावेश बहुत शानदार ढंग से किया गया है। आम आदमी की जि़न्दगी से जुड़े हुए विषय वस्तु इन्हें पठनीय बनाते हैं। 120 पेज वाले इस सजिल्द पुस्तक को असीम प्रकाशन ने प्रकाशित किया है, जिसकी कीमत 200 रुपये है।
मुंबई की सक्रिय रचनाकार चित्रा देसाई की हाल में ‘सरसों से अतमलास’ नामक पुस्तक प्रकाशित हुई है। इस कविता संग्रह में आम जि़दगी के विषय वस्तु को रेखांकित करने का प्रयास किया गया है, जो कई जगहों पर बेहद सार्थक रूप में नज़र आता है। कहा जाता है कि असली भारत गांव में ही निवास करता है, भारत के असली परिदृश्य और परंपरा को जानना हो या लोक परंपरा की झलक मात्र भी देखनी हो तो आपको गांव में जाना पड़ेगा, क्योंकि किताबें पढ़कर, फिल्म या टीवी सीरियल देखकर गांव का लुत्फ नहीं उठाया जा सकता। चित्रा देसाई भले ही मुंबई में रहती हैं लेकिन उनका पूरा बचपन और उसके बाद का काफी समय गांव में ही गुजरा है, यही वजह है वे गांव का चित्रण मंझे खिलाड़ी खिलाड़ी की तरह करती हैं। जगह-जगह इस तरह का वर्णन करके उन्होंने अपनी कविताओं में जान डाल दिया है। इस लिहाज से यह पुस्तक बेहद पठनीय है। एक कविता में कहती हैं ‘ अभी तो बहुत-कुछ/अनदेखा है/सावन की तीज/फागुन का संगीत/ छुईमुइ का सकुचाना/ किसी पंखुरी पर.../ओस का अपने आप ठहरना/ कोई बात सुनकर बिल्कुल सहज मुस्कुराना।’ 110 पेज वाली इस सजिल्द किताब को राजकमल प्रकाशन ने प्रकाशित किया है, जिसकी कीमत 250 रुपये है।



उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले की रचना तिवारी की यूं तो कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। ग़ज़ल, गीत और मुक्तक आदि लिखती हैं। विभिन्न साहित्यिक और समाजिक सरोकारों से जुड़ी हुई हैं। हाल में इनका गीत संग्रह ‘सपना खरीदो बाबू जी’ प्रकाशित हुआ है। गोपाल दास नीरज इनकी कविताओं के बारे में लिखते हैं -‘रचना तिवारी अत्यंत संवेदनशील कवयित्री हैं। इसलिए इनकी रचनाएं श्रोताओं के दिल तक पहुंचती हैं। किसी भी रचनाकार का मूल्यांकन इसी आधार पर किया जाता है कि वह समाज की सुप्त भावनाओं को जागृत करता है। इनकी रचनाएं सामान्य जन के लिए तो हैं ही, साथ ही ज्ञानी के लिए भी ये अगम हैं।’ एक गीत से ही इनके लेखन का बखूबी अंदाज़ा लगाया जा सकता है-‘तुझे गा रही हूं/तुझे भा रही हूं/मेरे गीत तुझको/ जिये जा रही हूं/ खुदा है तू भगवान है/तू ईशू है/ तू मेरे ख्यालों का/वाहेगुरु है/ मैं प्यासी हूं मुझको/ पिये जा रही हूं।’ 144 पेज वाली इस सजिल्द पुस्तक की कीमत 300 रुपये है, जिसे अयन प्रकाशन ने प्रकाशित किया है।

(गुफ्तगू के महिला विशेषांक मार्च: 2016 अंक में प्रकाशित)