उमाकांत जी के घर में दलित महिला बनाती थी खाना
उन्होंने बचपन से ही बच्चों को दी कविता लिखने-पढ़ने की ट्रेनिंग
कर्मचारी यूनियन में सक्रियता के कारण एजी ऑफिस से हुए थे निलंबित
- डॉ. इम्तियाज अहमद ग़ाज़ी
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नैनीताल के एक कवि सम्मेलन में काव्य पाठ करते उमाकांत मालवीय |
उमाकांत मालवीय अपने कार्य, चरित्र और स्वभाव से भी सच्चे साहित्यकार थे। उनके अंदर एक महान कवि, पिता, दार्शनिक, मंच संचालक और समाज सेवी समाहित था। उन्होंने अपने तीन बेटों को इंसानियत के लिए जीने का सबक दिया था। किसी भी बेटे पर किसी प्रकार का दवाब नहीं था। सभी ने अपने मन और रुचि के अनुसार पढ़ाई की, कविता लिखा और समाज को समझने के लिए कार्य किया। उनके अंदर समाजिक स्तर पर कोई भेद-भाव नहीं था। इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि उनके घर में खाना बनाने महिला भी दलित वर्ग से थी। इसकी जानकारी होने पर दोस्तों और रिश्तेदारों ने ऐतराज़ जताया, कई लोगों ने उनके यहां चाय-नाश्ता करना बंद कर दिया था, लेकिन उमाकांत जी ने उस खाना बनाने वाली को निकाला नहीं। इस मामले में उनकी पत्नी भी पूरी तरह उनके साथ खड़ी थीं।
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बीच में बैठी हुई हैं तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी। सबसे बाएं खड़े हैं उमाकांत मालवीय |
उमाकांत मालवीय अपने समय के जाने-माने कवि थे। देशभर के कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ के साथ-साथ मंच का संचालन भी करते थे। उनका मानना था कि कविता लिखने का प्रांरभ छंद से होना चाहिए और कविता का बेसिक ज्ञान होना चाहिए कि कविता क्या है ? जो लोेग बिना छंद को समझे ही कविता का लेखन कर रहे हैं, वे पूर्ण रूप से कभी कवि नहीं हो सकते, उन्हें सही ढंग से कविता लिखना नहीं आ सकता। कविता का प्रारंभ छंद से ही होना चाहिए, बाद में भले ही बिना छंद वाली कविता लिखें। कविता में एक मैसेज होना चाहिए, साथ ही उसमें आपका कमिटमेंट भी ज़रूरी है। उमाकांत जी के मझले पुत्र यश मालवीय बताते हैं कि हम तीनों भाइयों को वे अपनी कविताएं सुनाते थे और हमारी लिखी हुई कविता पर चर्चा करते थे। मुझे बड़े पिता जी, बसु को मझले पिताजी और अंशु को छोटे पिताजी कहकर बुलाते थे। उनका हमारे साथ पिता-पुत्र वाला संबंध नहीं था, बिल्कुल दोस्तों वाला संबंध था। वे अपने बच्चों को इसका प्रशिक्षण देते थे। छंद सिखाने के लिए शब्द बोलकर अपने बेटांे से पूछते थे कि बताओ इसमें कितनी मात्राएं हैं। कहते थे- जो सही बताएगा उसे चवन्नी मिलेगी।
उमाकांत मालवीय महालेखाकार ऑफिस में कार्य करते थे। कर्मचारी यूनियन में सक्रिय रहने के कारण वर्ष 1968 से 1971 तक निलंबित रहे थे। तब ख़ास तौर पर बच्चों की फीस जमा करने में उन्हें काफी दिक्कत का सामना करना पड़ा था। यश मालवीय इस घटना को याद करते हुए बताते हैं-‘हम तीनों भाई एक तरह से कविता के पाले हुए हैं। फीस न जमा होने के कारण कई बार स्कूल से नाम भी कटा। जब कवि सम्मेलन से पारिश्रमिक मिलता था तब फीस जमा हो पाती। कई बार पिताजी 500 से 600 रुपये में पूरा कविता संग्रह लिखकर दूसरों को दे देते थे, ताकि हम लोगों की पढ़ाई चलती रहे।
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मदादेवी वर्मा और रामजी पांडेय के साथ बैठे हुए उमाकांत मालवीय। |
एक बार की बात है। अंशु मालवीय के स्कूल में नामांकन के समय आवेदन-पत्र में यह भी भरना था कि आप अपने बच्चे को पढ़ा-लिखाकर क्या बनाना चाहते हैं ? किसी ने डाक्टर, किसी ने इंजीनियर और किसी ने आईएएस आदि लिखा था। उमाकांत जी ने लिखा- ‘नेक इंसान’। उनका यह आवेदन-पत्र स्कूल की प्रार्थना-सभा में लहराकर दिखाया गया कि एक आवेदन ऐसा भी आया ह,ै जिसमें पिता अपने बेटे को नेक इंसान बनाना चाहता है।
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आपस में बातचीत करते बाएं से- अशोक श्रीवास्तव ‘कुमुद’, डॉ. इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी और यश मालवीय। |
यश मालवीय जब हाईस्कूल में थे, तब परीक्षा का परिणाम आया तो बहुत ही सामान्य नंबर से पास हुए थे। तब डॉ. जगदीश गुप्त ने उमाकांत जी से कहा कि यश की पढ़ाई-लिखाई पर भी ज़रा ध्यान दीजिए, कविता से कुछ होगा नहीं। उमाकांत जी बोले- ‘कुछ नहीं होगा तो मेरा बेटा कविता की दिहाड़ी करेगा, गीतों की दिहाड़ी करेगा, बच्चा मेरा भूखों नहीं मरेगा।‘ आज यश मालवीय के साथ पढ़े-लिखे लोगों को कोई नहीं जानता, जबकि यश मालवीय की साहित्य के क्षे़त्र में एक ख़ास पहचान हैै।
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उमाकांत मालवीय की किताबों के कवर पेज। |
यश मालवीय की पहली कविता वर्ष 1971 में ‘दैनिक जागरण’ और ‘धर्मयुग’ में छप गई थी। इसी वर्ष पहली बार आकाशवाणी इलाहाबाद से इन्हें काव्य पाठ का अवसर मिला। तब से यह सिलसिला आज तक जारी है। मझले पुत्र बसु मालवीय का मुंबई में एक एक्सीटेंड के दौरान निधन हो गया था। छोटे भाई अंशु मालवीय कविताओं का सृजन करते हैं। उमाकांत मालवीय का 1982 में निधन हो गया था।
(गुफ़्तगू के अक्तूबर-दिसंबर 2024 अंक में प्रकाशित)
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