ज़िंदगी की तर्जुमानी करती ‘खुशबू’
- डॉ. वारिस अंसारी
अदब की तमाम सिंफ़ हैं, जिसमें से एक सिंफ है अफ़साना निगारी। दरअस्ल अफ़साना निगारी देखने में तो आसान है, लेकिन अफसाने का हक़ अदा करना उतना ही मुश्किल काम है। चंद ही ऐसे लोग मिलते हैं, जिनके अफसानों से अदबी दुनिया को नाज़ होता है। उन्हीं में एक नाम इरफान अहमद अंसारी का है, जो कि एक बकामाल अफ़साना निगार हैं। ‘खुशबू’ उनका पहला मजमूआ है। इरफान अहमद का तअल्लुक शाहजहांपुर से है। जो कि शहीदों की सरज़मीन रही है, लेकिन फरहत एजाज़, मुज़फ्फर अंसारी, मीम. ऐन. गम, डॉ. इज़हार सहबाई जैसे चोटी के अफसाना निगार भी इसी सर ज़मीन से हुए हैं। दौरे-हाज़िर में इरफान अहमद अंसारी शिद्दत के साथ अफसाना निगारी का हक़ अदा कर रहे हैं। वह एक साधी पसंद अफसाना निगार हैं, इसीलिए अदबी दुनिया में नुमाया मुकाम रखते हैं। उनकी ज़बान सादा और आसान है। जिससे क़ारी (पाठक) को पढ़ने और समझने में कोई परेशानी नहीं होती। उनके अफसानों में खुदा ने वह असर बख्शा है कि पढ़ने वाले के दिलो-दिमाग पर एक कैफियत सी छा जाती है। इसी मजमुआ (संग्रह) का पहला अफसाना ‘नई जिं़दगी’ की चांद लाइन बतौर नमूना देखते चलें-‘एक दिन की बात है घर के सब लोग शादी की तकरीब में गए हुए थे और वह लड़की किसी वजह से उस तकरीब में न जा सकी थी। घर पर ही थी। दोपहर का वक़्त था, वह सो रही थी। उसके कानों में खट-खट की आवाज़ आई और वह हड़बड़ा कर उठी। चूंकि गहरी नींद में सो रही थी। आंखें मालती हुई दरवाज़़े पर पहुंची, दरवाज़ा खोला तो वह लड़का सामने खड़ा था।’
इन चंद लाइनों से उनकी सादह ज़बानी का अंदाज़ा बखूबी लगाया जा सकता है। अफ़साना निगारी के मुश्किल फ़न को उन्होंने बड़ी आसानी के साथ समाज को सौंपा जो कि अदबी दुनिया में तादेर याद किया जायेगा। इरफान अहमद अंसारी का ये अफसानवी मजमूआ ‘खुशबू’ में 136 पेज हैं जिसकी कीमत केवल सौ रुपए है। इस संग्रह में अठारह अफसाने हैं जो कि बहुत ही दिलनशीं हैं। किताब की कंपोजिंग फहीम बिस्मिल ने की है, जबकि जिल्द को हिना शकील ने अपनी आर्ट से सजाया है और इस किताब को राही प्रिंटर्स शाहजहांपुर से सन 2014 में फखरुद्दीन अली अहमद मेमोरियल कमेटी लखनऊ के माली इमदाद से प्रकाशित किया गया है ।
इब्ने सफी और उनके किरदार
नावेल की दुनिया में इब्ने सफी वह नाम है जिसके बारे में हिंदोस्तान पाकिस्तान ही नहीं बल्कि जहां जहां उर्दू बोली जाती है वहां-वहां उनके बारे में खूब लिखा गया और ये लिखने का सिलसिला आज भी जारी है। तैयब फुरकानी ने भी इब्ने सफी पर लिखा, लेकिन फुरकानी के लिखने का अंदाज़ सबसे जुदागाना रहा। उन्होंने इब्ने सफी के अलावा उनके नावेल में जो किरदार रहे उन पर भी लिखा और उन्होंने बड़े मुनफरिद अंदाज़ में अपना कलम चलाया। उन्होंने अपने मखसूस (विशेष) अंदाज़ और मेहनत से तहरीरी काम करके अदबी दुनिया में अपनी शिनाख्त कायम की। तैयब फुरकानी का शुमार भले ही नई नस्ल के लिखने वालों में किया जाता हो लेकिन उनके तहरीर में जो पुख्तगी (परिपक्वता) है, वह काबिले तारीफ है। ‘इब्ने सफी किरदार निगारी और नुमाइंदा किरदार’ किताबी शक्ल में उनकी पहली कामयाब कोशिश है। इस किताब को उन्होंने चार हिस्सों में तकसीम किया है। मुकदमा के बाद पहले हिस्से में इब्ने सफी की शख्सियत और उनकी हयात पर रोशनी डाली है। दूसरे हिस्से में उन्होंने उनकी किरदार निगारी का पुर लुत्फ जिक्र किया है। तीसरे हिस्से को उन्होंने इब्ने सफी की किरदार निगारी और नुमाइंदा किरदार को अपना मरकजे सुखन बनाया और चौथे हिस्से में उन्होंने इब्ने सफी के नावेल में जो किरदार हैं उनका बड़े सलीके़ से जिक्र किया है। यही नहीं उन्होंने मर्द ,औरतों के किरदार को अलग अलग पेश किया है। उनकी ज़बान में सलासत है और आसान अल्फाज़ के इस्तेमाल भी। जिससे कारी रवानगी के साथ बिना बोझिल हुए उनके मजमून पढ़ता चला जाता है।
नमूने के तौर पर चंद लाइन-‘शौकत की मां हमारे खानदान की न थीं लेकिन वह किसी निचले तबके से भी ताल्लुक न रखती थीं। उनमें सिर्फ इतनी खराबी थी कि उनके वालदैन हमारी तरह दौलतमंद न थे।’ नावेल नसरी किस्से के जरिए इंसानी जिंदगी की तर्जुमानी करता हैं। वह बजाए एक शायराना व जज़्बाती नजरिया ए हयात एक फलसफाना साइंटिफिक या कम से कम एक ज़हनी तनकी़द-ए-हयात पेश करता है। यह किताब स्कॉलर्स तलबा के लिए भी बड़ी कारामद साबित होगी। किताब के मुसन्निफ (लेखक) तैयब फुरकानी ने इस किताब को पश्चिम बंगाल उर्दू अकादमी के माली मदद से अंजला ग्राफिक्स से कंपोज करा कर भारत आर्ट प्रेस कलकत्ता से सन 2022 में प्रकाशित किया है। खूबसूरत हार्ड जिल्द के साथ इस किताब में 496 पेज हैं जिसकी कीमत मात्र 500 रुपया है।
(गुफ़्तगू के जुलाई-सितंबर 2024 अंक में प्रकाशित)
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